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पुस्तक चर्चा : गागर में सागर है ‘मन्वन्तर’

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संजय परसाई ‘सरल’

सामाजिक समरसता, सद्भाव एवं विकास की पहल करती अनियतकालीन पत्रिका ‘मन्वन्तर’ का नवीन अंक हाल ही में प्रकाशित हुआ है। ‘मन्वन्तर’ के इस अंक में कविताएं, कहानी, व्यंग्य, लघु कथा सहित अन्य आलेख समावेश है।रचनाओं के साथ-साथ पत्रिका का आकर्षक कलेवर, आवरण पृष्ठ, पुस्तक की साज-सज्जा के लिए प्रांशु वट और यश वट की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। इतनी आकर्षक प्रिंटिंग और साफ-सुथरी छवि वाली यह पुस्तक पाठकों को अवश्य आकर्षित करेगी।


 रचनाओं के बेहतरीन चयन के लिए हरिशंकर वट बधाई के पात्र हैं। स्थापित रचनाकारों के साथ ही नवोदित रचनाकारों को भी स्तरीय रचनाओं के साथ पुस्तक में स्थान देना रचनाओं के न्याय के साथ ही रचनाकारों को भी प्रोत्साहित करने का तारीफेकाबिल कार्य है। मोबाइल और डिजिटल युग में जहां व्यक्ति किताबों से दूर होता जा रहा है, ऐसे में ‘मन्वन्तर’ अपनी रचनाओं के जरिए पाठकों को पुस्तकों से जोड़ने का कार्य करेगी, ऐसा विश्वास प्रतीत होता है। डॉ. माणिक वर्मा के नवगीत से पत्रिका का आरंभ होता है। प्रथम रचना में ही वर्तमान परिवेश पर कटाक्ष करते हुए वह कहते हैं-


देख लिया है सबको हमने
मन में कोई शेष नहीं है
लोग मिले निःस्वार्थ भाव से
अब ऐसा परिवेश नहीं है
संतोष नेमा के दोहे भी मन को अंतस तक छूते हैं-
कथनी करनी में नहीं, जिनकी बात समान
कभी भरोसा ना करें, उन पर श्रीमान।

मालवी बाल साहित्य की पैरवी करता हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’ का आलेख हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर चिंता व्यक्त करता है। वह अपने आलेख में बाल साहित्य, पारंपरिक खेल- छिपम छाई, पकड़म पाटी, चंगपो, चौपड़, घोड़ा बदाम छाई जैसे खेलों के विलुप्त होने जैसी स्थिति पर चिंता जाहिर करती दिखाई देती है। साथ ही टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल युग ने शिक्षा और खेलों का स्वरूप ही बदल दिया है इसी बात का रोष भी इस आलेख में जाहिर करती है।
शहर की चकाचौंध और घुटन भरी जिंदगी से तंग आकर गांव लौट जाने की पैरवी करती रमाकांत निगम की कविता सोचने पर विवश करती है-
पीपल, बरगद, पनघट
मंदिर याद बहुत आए
खेत, खलिहान
खेरमाता हमने क्यों बिसराए
जहरीली बस्ती में हम
कितना रोज गले
चलो सखी गांव चले।
       सकारात्मक सोच लिए यूसुफ़ जावेदी की रचना एक नए वातावरण को निर्मित करने की पहल करती नजर आती है।
तुम मेरी बात सुनोगे, तो खुशी होगी तुम्हें
ख्वाब कोई जो बुनोगे, तो खुशी होगी तुम्हें
कोई भूखा ना रहे और यह रातें गुजरे
राह चिरागों की चुनोगे, तो खुशी होगी तुम्हें।
साथ ही यश वट, डॉ. लता अग्रवाल, रमेश मनोहरा, हरिशंकर वट, मिथिलेश राय, रंजना फतेपुरकर की रचनाएं भी पाठकों को मोहित करती है। अतः कहा जा सकता है कि ‘मन्वन्तर’ का यह अंक मात्र चालीस पृष्ठों का होते हुए भी रचनाओं के माध्यम से ‘गागर में सागर’ का कार्य है। संपादकीय टीम के हरिशंकर वट सहित तमाम सहयोगी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।

संजय परसाई ‘सरल’ 118, शक्ति नगर, गली नंबर 2
     रतलाम, मोबा. 98270 47920

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