खरी खरी : प्रधानमंत्री जी, जिम्मेदारों को निलंबन नहीं, अब बर्खास्त करने का कानून करें पास, चाहे वह आईएएस हो या फिर आईपीएस हो, देश में अभी भले न करें, लेकिन रतलाम के लिए है जरूरी, आमजन के मालिक बने बैठे हैं नौकर

हेमंत भट्ट

प्रधानमंत्री जी, मध्य प्रदेश के रतलाम के लोग बहुत ही शांति प्रिय, सद्भावना वाले हैं, इतना ही नहीं सहनशील भी है मगर उनकी सहनशीलता की परीक्षा इतनी भी न लीजिए कि दिक्कत हो जाए। खास बात यह है कि आम जनता की सुविधा के लिए आपके माध्यम से तीन नए काम कानून पास किए गए हैं और लागू भी हो गए हैं मगर जनहित में एक और कानून पास करना जरूरी है। वह है जिम्मेदारों को बर्खास्त करने का। निलंबन से काम नहीं होगा। निलंबन के बाद तो और उन्हें ऊंचा ओहदा दे दिया जाता है। भले ही देश में यह कानून लागू न करें लेकिन पायलट प्रोजेक्ट के तहत रतलाम के लिए बेहद जरूरी है। नौकरी से हाथ धोने की तलवार लटकी रहेगी, तभी यह सुधरेंगे। यहां के आईएएस और आईपीएस सहित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक आम जनता के सेवक न होकर मालिक बने बैठे हैं। इतना ही नहीं जो ठेके पर कर्मचारी काम कर रहे हैं, उनके भी हौसले काफी बुलंद हैं। उनको तो किसी बात का डर है ही नहीं।

माणक चौक जैसे व्यस्त मार्ग के यह आलम

प्रधानमंत्री जी यह बात दिल की गहराइयों से लिख रहा हूं। क्योंकि मुख्यमंत्री जी भी प्रदेश पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।  इसलिए आपको कहना पड़ रहा है कि जितने भी सरकारी अधिकारी चाहे वे आईएएस हो या आईपीएस। सभी वर्ग कर्मचारी हो या और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। सफाई कर्मचारी और आउटसोर्स के माध्यम से सरकारी विभागों में कार्य करने वाले तक। वह सब बेलगाम हो गए हैं। जितनी तनख्वाह उनको दी जा रही है। उसका 10% भी काम नहीं कर रहे हैं। नेतागिरी और दादागिरी होती है सो अलग। शिकायत करने पर निलंबन हो जाता है, मगर इसके बाद और वह सीना तान के घूमते हैं और कुछ माह में वरिष्ठ अधिकारी उनको पदोन्नति करते हुए तोहफा दे देते हैं गुनाह करने का। यह कहां तक न्यायोचित है। यानी कि उनको कमाई वाली टेबल दे दी जाती है।

बर्खास्तगी से ही लगेगी लगाम

बात यह है कि अब निलंबन से काम नहीं चलेगा जितने भी सरकारी अधिकारी कर्मचारी हैं, वह आम जनता के मालिक बन बैठे हैं। उनकी “इच्छा” होती है तो काम करते हैं, वरना काम नहीं करते हैं। “इच्छा” का मतलब यहां पर केवल और केवल गांधी दर्शन से है यानी कि उनको भेंट दीजिए, तब कुछ सुनवाई होगी, वरना आमजन इनकी टेबल के सामने याचक की मुद्रा में ही नहीं अपितु एक गुनाहगार की तरह खड़े रहते हैं कि उन्होंने आवेदन करके गुनाह कर दिया हो। और थानों में तो उनकी मदद के लिए जाने पर भी आरोपी की नजरों से ही देखा जाता है। जानते कुछ नहीं और नियमों की धौंस देते रहते हैं। वह ऐसे पेश आते हैं। ऐसे कर्मचारियों पर लगाम लगाना जरूरी है।

सबके सब झेल रहे भाजपाई होने का दंश और दर्द

कर्मचारियों की रक्षा और सुरक्षा के लिए तो अपने कानून बना दिए मगर आम जनता के लिए कुछ भी नहीं। वह निरीह प्राणी की तरह सब कुछ सहन कर रहे हैं। इतना तो जानवर भी सहन नहीं करता क्योंकि रतलाम में जानवर भी खुलेआम सड़कों पर बैठे रहते हैं और आम जनता चलने के लिए सड़क ढूंढती रहती हैं। रास्ते ढूंढते रहते हैं। गोबर और गंदगी से गुजरने को मजबूर होते रहते हैं मगर जिम्मेदार नगर निगम के आयुक्त, कलेक्टर, पार्षद, महापौर, विधायक, मंत्री सब के सब नकारा सिद्ध हो रहे हैं। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है लेकिन रतलाम के रहवासी  सबके सब भाजपाई होने का दंश झेल रहे हैं। दर्द झेल रहे हैं।

आम जनता को तो यह ऐसे हड़काते हैं जैसे कुत्ते को दुत्कार कर रहे हो

बाजार में अतिक्रमण पसरा हुआ है। ऑटो और मैजिक वाले किसी की सुनते नहीं है। आंख दिखाते हैं। अधिकारी उनसे याराना निभाते हैं। जिम्मेदार अधिकारी उनसे याराना निभाने के लिए है या फिर आम जनता की सुख सुविधाओं का ध्यान रखने के लिए। ऐसे जिम्मेदार अधिकारियों को तो शिकायत मिलने के बाद तत्काल सेवा से बर्खास्त करने का ही कानून बनना चाहिए, तब जाकर यह अधिकारी और कर्मचारी आम जनता के लिए काम करेंगे वरना आम जनता को तो यह ऐसे हड़काते हैं जैसे कुत्ते को दुत्कार कर रहे हो।

सरकार के जमाई नहीं, कमाई करने वाली औलादें

न्यायोचित बातों  के लिए आम जनता की इज्जत की धज्जियां उड़ाने वाले कर्मचारियों पर बर्खास्तगी का कानून लागू होना ही चाहिए, तभी जाकर यह मालिक बन बैठे नौकरों को सबक मिलेगा, वरना निलंबन उनके लिए सजा नहीं बल्कि मजा है। देश भ्रमण करेंगे। वेतन भी लेंगे। कुछ महीने बाद आकर फिर सर पर बैठेंगे और शिकायत करने वाले व्यक्ति को नाक चिढ़ाएंगे कि तुमने क्या उखाड़ लिया हमारा, सब है हमारे। तुम्हारी सरकार भी तुम्हारा साथ नहीं देती। हम तो सरकार के जमाई नहीं, कमाई करने वाली औलादें है।

मूलभूत सुविधाओं से आमजन महरूम

आखिर शांतिप्रिय रतलाम के लोगों का क्या गुनाह है कि उन्होंने भाजपा में विश्वास व्यक्त किया? आज से नहीं चार दशक से केवल और केवल भाजपा को चुनते गए, लेकिन भाजपा के जिम्मेदार महापौर, विधायक, मंत्री सबके सब निठल्ले साबित हो रहे हैं। उन्हें शहर की कोई फिक्र नहीं है। केवल, केवल और केवल कमीशन बाजी में सब तल्लीन हैं। इतना ही नहीं प्रदेश सरकार के मंत्री हो या फिर नगर सरकार के एमआईसी मेंबर सब के सब अपने-अपने दड़बे में बैठे हैं। मूलभूत सुविधाओं से आमजन महरूम है। तो फिर इनसे विकास की उम्मीद करना तो बेमानी ही साबित होगा। एमआईसी मेंबर को उनके शहर की साफ सफाई, यातायात, जल वितरण की कोई परवाह नहीं है। मकान निर्माण की सामग्री सड़कों पर बिखरी हुई है तो होने दो, लोग परेशान हो रहे हैं तो होने दो, शिकायत करने वालों की ऐसी की तैसी। आखिर यह कब तक चलेगा?

मगर व्यवस्था नहीं आ रही पटरी पर

कई महीने हो गए मगर पेयजल वितरण व्यवस्था पटरी पर लौटने को तैयार नहीं है। गंदगी चारों ओर पसरी पड़ी हुई है। सफाई कर्मचारी की इच्छा होती है, तो झाड़ू लगाने आते हैं। कचरा संग्रहण वालों का भी यही आलम है। उनकी इच्छा हुई तो गाड़ी लेकर घूम गए, वरना डीजल की बंदर बांट तो होनी ही है। यातायात व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। मन चाहे जहां पर लोग चार पहिया वाहन खड़े करके चले जाते हैं। खासकर नगर सेवा देने वाले ऑटो और मैजिक वाले। ठेला गाड़ी वालों की तो बात ही मत पूछो। उनकी तो शहर में बाढ़ आई हुई है। सड़के उनकी बपोती हो, ऐसा लगता है और आमजन सड़क पर चलने के लिए दिक्कतों का सामना करते हैं। नगर निगम की नकारा यातयात समिति केवल नाम की है। काम की बिल्कुल नहीं। यही बात यातायात अमले पर भी लागू होती है।

धृतराष्ट्र बने जिम्मेदारों को कुछ भी नजर नहीं आता।

शिकायत करने के बावजूद भी सफाई विभाग के मेंबर ध्यान देने को तैयार नहीं है। वह केवल और केवल याराना निभाने में लगे हुए हैं। एक बोरिंग खुदवाने वाला सड़क पर कीचड़ कर देता है, उसे पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। मुंह में दही जमा कर  बैठने वाले जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अधिकारी कर्मचारी किसी को कोई परवाह नहीं है कि सड़क की सूरत बद से बदत्तर हो रही है। लोग उस कीचड़ में फिसल रहे हैं। लोग अपने घरों के सामने फैले का कीचड़ साफ कर करके परेशान हो रहे हैं। लेकिन धृतराष्ट्र बने जिम्मेदारों को कुछ भी नजर नहीं आता। नालियों की गंदगी भी ऐसे ही सड़कों पर फैल रही है।

हम नहीं सुधरेंगे

चार दिन पहले हुई झमाझम बारिश में लोगों का जीवन बेहाल हो गया मगर जिम्मेदार आराम से भजिया खाते रहे। अगले दिन खाना पूर्ति के लिए नालों पर चले गए। फोटो खिंचवाने के लिए। बाढ़ नियंत्रण कक्ष पर भी जानकारी मांगी तो उनको भी जानकारी नहीं थी कि रतलाम में कहाँ-कहाँ पर लोग परेशान है। कितने घरों में पानी घुसा है। कितने लोग हाल बेहाल हैं कुछ पता नहीं। कहां-कहां की शिकायत आई है। यहां तक की 3 घंटे में कितनी बारिश हुई है। यह आंकड़े भी उनके पास नहीं थे।

बिल्कुल हंसते रहते हैं बेशर्मों की तरह

शहर में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। हर साल तेज बारिश होती है। 5 से 6 इंच एक साथ भारी वर्षा के बाद जन जीवन प्रभावित होता है, मगर बारिश के पहले ना तो नालों की सफाई होती। ना ही जल निकासी की व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता। एक बार तो ठोकर खाकर सब सुधर जाते हैं मगर रतलाम के जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। बिल्कुल बेशर्मों की तरह हंसते रहते हैं। यही सोचकर कि आज भी हमने कोई काम नहीं किया फोकट की तनख्वाह ले ली, ऊपर की कमाई हुई सो अलग। जनता जाए भाड़ में। सरेआम सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए नजर आएंगे।

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