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विचार सरोकार : हजारों वर्ष पूर्व रचित वेदों में वर्णित बातें अति तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से हो रही सत्य साबित

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भारतीय जनमानस ही नहीं विश्व के विश्व के कोने -कोने में श्री कृष्ण के भक्त फैले हैं, क्योंकि ये सहज भी हैं और संपूर्ण भी। ये सोलह कलाओं के साथ अवतरित माने गए है।

नीति झा

हम भारतीय एक उत्कृष्ट, उदार, विस्तृत विवेचित सनातन
धर्मावलंबी हैं। हजारों वर्ष पूर्व रचित वेदों में वर्णित बातें अति तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य साबित हो रहा है ।अफसोस आज शिक्षित होकर भी हम अंग्रेजी तो पढ़ लेते हैं लेकिन संस्कृत में संग्रहित तथ्य से अनभिज्ञ हैं । जो दुर्भाग्यपूर्ण है। यही वजह है कि बहुत से जीवनोपयोगी मूल्यों को बिना समझे तिरस्कृत कर खुद को आधुनिक मान बैठे हैं। खैर…।

भारतीय जनमानस ही नहीं विश्व के विश्व के कोने -कोने में श्री कृष्ण के भक्त फैले हैं, क्योंकि ये सहज भी हैं और संपूर्ण भी। ये सोलह कलाओं के साथ अवतरित माने गए है।

“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति
भारत अभ्युथानम धर्मस्य तदात्मानाम सृजान्महम”।

उपरोक्त श्लोक श्री मद गीता के चौथे अध्याय का 7 वाँ श्लोक है जिसमें श्री कृष्ण कहते हैं कि जब- जब पृथ्वी पर धर्म का ह्रास होगा।  मैं तब-तब इसकी पुनर्स्थापना  को अवतरित होऊँगा। हम आज तक उस सदभाव के साक्षात स्वरुप के जन्मदिन को जन्माष्टमी हर्षोल्लास के साथ मनाकर आल्हादित होते हैं।

कूटनीति का दिया विलक्षण परिचय

देवकी के सातो पुत्रों को मारने वाला भाई कंस कैसा निष्ठुर उत्पाती था। कृष्ण ने जन्म लेते ही कला और कूटनीति का विलक्षण परिचय दिया। मध्य रात्रि में अवतरित होकर अंधेरी रात में ही मैया यशोदा तक पहुंचने की हठ वसुदेव से की गई। और  उमड़ती यमुना को पार किया पिता पुत्र ने।
गोकुल में बाललीला की। जिसका, अत्यंत जीवंत  वर्णन सूरदास के पद में मिलता है।


“मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो” या “मैया मोरी दाऊ बहुत खिजायो” या “मैय्या मेरी कबहि बढेगी चोटी किती बार मोहि दूध पियत भई ये आजहू है छोटी”..वात्सल्य की अद्भुत धारा दिखती है  इन पदों में।

इनकी  रास लीला मे गोपियों का संरक्षण है ,वहीं सुदामा से मित्रता अद्भुत है। हम देखते हैं कृष्ण गोकुल में रसिक हैं, तो कुरुक्षेत्र में परमज्ञानी। जो निष्काम कर्म की व्याख्या करते हैं। कृष्ण कोमल है, कठोर भी। सहज सरल ग्वाल बाल, ,बाँसुरी वाले हैं। शांतिदूत बनकर महाभारत युद्ध रोकने की हद तक प्रयत्न करते हैं। तो युद्ध से विमुख होने पर अर्जुन को दिव्यज्ञान देकर युद्ध को धर्मं बताते हैं। आत्मज्ञान को विवेचित करते हैं।

गुणों  को करें आत्मसात

कृष्ण सखा हैं द्रोपदी के, वो संबल है उस व्यथित स्त्री के। जो, शूरवीरों की पत्नी होकर भी अपमानित होती है।
ऐसे अनेक गुण हैं श्री कृष्ण में जो अनुकरणीय है । आज भी माँ अपने बच्चों को बाल गोपाल बना कर आनंदित होती है। युवक खुद को कृष्ण कन्हैया समझ प्रेम स्वांग करते भी नजर आते हैं। मैथिली भाषा में बिद्यापति ने भी सौन्दर्य भाव के मनोहारी गीत रचना की है। यथा –

“कुंज भवन सँओ निकसल रे ..रोकल गिरिधारी …संगक सखी अगुआइली रे हम एसगर नारी ..हरिजी के संग किछू डर नहीं रे तोहे परम गँवारी।” 

तात्पर्य घर से निकलते कान्हा, राधा को रोकते हैं और अपनी बातों में उलझाते है,वो डरती है। कारण सखियां आगे बढ चूकी है।  वह अकेली है, लेकिन कवि कहते हैं कि पुरुषार्थ से पूर्ण परमेश्वर के सरण में डरने की तो बात ही कहां है, राधा अनबूझ सी बातें कर रही है।हमें भगवान के व्यक्तित्व का सूक्ष्म अवलोकन कर गुणों को आत्मसात करना चाहिए। श्री कृष्ण की कृपा सब पर बनी रहे।

नीति झा

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