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विचार सरोकार : साहित्य रूपी आकाश के”ध्रुव तारा” प्रो अज़हर हाशमी

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नमकीन और शुद्ध सोने के लिए देश भर में अपनी विशेष पहचान बना चुका रतलाम साहित्य रूपी रत्नों से भी मालामाल है।  डॉ. चांदनीवाला हो, प्रो. रतन चौहान हो, डॉ. देवव्रत जोशी या फिर प्रो. अजहर हाशमी सभी ने रतलाम का नाम सुनहरी अक्षरों में आसमान पर लिख दिया है।

इन्दु सिन्हा “इन्दु”

रतलाम की प्रसिद्धि के बारे में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो नही जानता हो। शुध्द सोने की नगरी है तो बस रतलाम। उस पर शहर की नमकीन उसे चटपटा बना देती है।”रतलाम जा रहे हो तो नमकीन लेते आना “ये आम डायलॉग है लोगो का। भोजन की थाली में सेंव जरूर मिलेगी।


नमकीन और शुद्ध सोने के लिए देश भर में अपनी विशेष पहचान बना चुका रतलाम साहित्य रूपी रत्नों से भी मालामाल है।  डॉ. चांदनीवाला हो, प्रो. रतन चौहान हो, डॉ. देवव्रत जोशी या फिर प्रो. अजहर हाशमी सभी ने रतलाम का नाम सुनहरी अक्षरों में आसमान पर लिख दिया है।
लेकिन इन साहित्यकारों के जीवन और व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलू और उनके व्यवहार की ऐसी बातें होती है,जो उनको अलग पहचान देती है, जिनसे वो पाठकों और लोगो मे बेहद लोकप्रिय हो जाते है। उनकी अलग ही छबि बन जाती है या फिर यूँ कहे उनका नाम ही शहर की पहचान बन जाता है।  प्रो.  अज़हर हाशमी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा ही है।
लगभग बाइस, तेईस वर्ष पूर्व की बात है। 

एक खुशनुमा, ताजगी भरी सुबह थी।  लगभग साढे पाँच बजे का समय होगा। मैं रोटरी गार्डन से स्टेशन रोड की तरफ वॉक करते हुए जा रही थी। यूँ भी सुबह सुबह टहलने वालो की अच्छी खासी भीड़ होती है। शिवजी होटल तक जाकर मै पलट गई वापस घर के लिये,कोई ट्रेन आयी होगी यात्रियों की भीड़ आ गयी थी,कुछ टेक्सी,कुछ खुद के वाहन से,कुछ पैदल यात्री भी थे|दस पंद्रह मिनिट चलने के बाद मुझे लगा मेरे पीछे भी कुछ लोग चल रहे है उनकी बातचीत सुबह की खामोशी को भंग कर रही थी।

जैसा सुना वैसा ही प्रस्तुत है—

क्यो यार, तू तो पहली बार आया है रतलाम ?पहला स्वर
हाँ यार, एग्जाम का सेंटर रतलाम दिया इसलिए आया। तू भी रतलाम था, इसलिए सोचा तेरे घर रुक जाता हूँ।
चल एग्जाम के बहाने ही तू रतलाम आया। पहला स्वर।
नमकीन और गोल्ड बहुत फेमस है, दूसरा स्वर,
बिल्कुल, पहला स्वर, सुना है अज़हर हाशमी भी यहीं रहते है रतलाम में, सुना है बहुत फेमस है,”राम वाला हिंदुस्तान चाहिए” कविता, उन्ही की है,।

मै धीमे धीमे चल रही थी, कि ये सुनकर रुक गई। मैंने  बोला सही है आप, हाशमी सर यहीं के है, हमारे रतलाम के। फिर दोबत्ती तक हम साथ साथ आये बातचीत का विषय था,सिर्फ प्रो अज़हर हाशमी। कैसे दिखते है क्या लिखते है,विवाहित है या नही?यही चर्चा चली।

ये चर्चा प्रो. हाशमी की लोकप्रियता को बताती है।
कुछ बातें ऐसी होती हैं जो उनके व्यक्तित्व को महान बनाती है। यह बातें सामान्य हर बड़े लेखक महान व्यक्ति में हो ये जरूरी नहीं। वह है ज़मीन से जुड़ा होना और अपने संपर्क में रहने वाले या अनजान व्यक्ति। सबको सम्मान देना। कुछ बातें मैंने तब महसूस की जब मैं कभी उनसे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली थी। दैनिक अखबारों में जब उनके जन्मदिन की खबरें आती थी और फोटो भी छपते थे तो उनके द्वारा आभार प्रदर्शन भी किया जाता था|लेकिन जो प्रशंसक उनको डाक द्वारा जन्मदिन की बधाई के ग्रीटिंग भेजते थे। उनको वह व्यक्तिगत रूप से डाक से धन्यवाद कार्ड भेजते थे। उन किस्मत वालों में मैं भी एक हूँ। मेरे पास अनेकों ग्रीटिंग कार्ड है जिन पर हाशमी सर जी के हस्ताक्षर है। जो अनमोल धरोहर के रूप में सुरक्षित है। इतना सरल व्यक्तित्व हाशमी सर का ही हो सकता है।

तब मिले बड़े ही उत्साह पूर्वक वे

एक ओर बात भी उनके व्यवहार को बताती है, झाबुआ से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका नव सुरभि में, मैं सह संपादक थी। तब उस पत्रिका के संपादक शीतल प्रसाद गुप्ता जी ने मुझे हाशमी सर से उनकी कविता लाने के लिए कहा वो मेरी पहली मुलाकात थी हाशमी सर से। मेरा लेखन छिटपुट रूप में चल रहा था। नवभारत,चेतना,चौथा संसार, नई दुनिया दैनिक भास्कर में पत्र नियमित प्रकाशित होते थे। कहानियां कविताएं, चौथा संसार, चेतना प्रकाशित होती रहती थी। एक दिन मैं बड़ी हिम्मत जुटाकर ऑफिस से आने के बाद उनके इंदिरा नगर स्थित घर गई वह बड़े ही उत्साह पूर्वक मिले।

मैंने मन ही मन डरते डरते उनसे पूछा सर आपकी एक कविता चाहिए। एक साहित्यिक पत्रिका के लिए। उन्होंने तुरंत कहा “अरे मैं तो आपका पाठक हूँ” आपको पढ़ता रहता हूँ। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि इतने बड़े लेखक मुझे पढ़ते हैं। आपके पत्र, लेख, नवभारत और चौथा संसार में आते हैं चौथा संसार में आपकी कहानी भी पढ़ी है।

मुझे ऐसा अनुभव हुआ, मेरी कलम सार्थक हो गई है। फिर उन्होंने मुझे अपनी कविता भी दी बड़ी देर तक कहानी,लेख कविताओं पर चर्चा भी की। उन्होंने कहा “इन्दु तुम्हारी कहानियाँ ही अच्छी होती है कविताएं नही”मुझे अच्छा लगा सुनकर। मैं पत्रिका भी उनको देने घर गई थी और वो खुश हुए थे।

विद्यार्थियों ने नहीं होने दिया रिलीव

एक और वाकया है जो उनकी लोकप्रियता को बताता है, ये 1992-93 की बात है। एक बार प्रो. हाशमी का स्थानांतरण रतलाम से बाहर किया गया था, तो कॉलेज के विद्यार्थियों ने राजेश मूणत जी (जो प्रेस क्लब के अध्यक्ष थे,वर्तमान में आरोग्यम हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर है) के मार्गदर्शन में धरना आंदोलन शुरू किया था। कई महीने चला था। प्रशासन को फिर उनका स्थानांतरण निरस्त कर वापस रतलाम किया गया था। विद्यार्थियों ने रतलाम से प्रो हाशमी को रिलीव ही नहीं होने दिया था। इससे साबित होता है कॉलेज के विधार्थियो में प्रो. हाशमी का जबरदस्त क्रेज है।
इसके अलावा कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक गीत एक मूवी एक रचना से लेखक गीतकार इतना प्रसिद्ध हो जाता है कि वही गीत उसकी पहचान बन जाता है। प्रो. हाशमी सर को भी एक गीत ने इतना प्रसिद्ध कर दिया कि वह उनकी पहचान बन गया। लगभग 48 वर्ष पहले लिखा गया यह गीत देश ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय हुआ कि”मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए”इस गीत की रचना 1976 में की गई थी यह गीत उसे समय के हालातो पर लिखा गया था। जो बिल्कुल सही था। उस वेदना की अभिव्यक्ति इस गीत में है। इस गीत को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोफेसर हाशमी को प्रसिद्ध कर दिया दूरदर्शन पर ये गीत 26 जनवरी 1991 को प्रसारित किया था। जिसे कई देशों ने देखा और सराहा था। इस गीत को युवा पीढ़ी भी पसंद करती है।”रॉक ऑन हिंदुस्तान”एल्बम में यह गीत यूट्यूब पर भी है। गायक रूप कुमार राठौर ने इस गीत को आवाज दी हैऔर संगीत से सजाया सिद्धार्थ कश्यप ने। इसका इसका विमोचन फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर ने किया था। राजस्थान के झालावाड़ जिले के ग्राम पिड़ावा में जन्मे संत परंपरा के वाहक और भारतीय संस्कृति के अध्येता,ओजस्वी वक्ता,प्रखर लेखक प्रो. हाशमी ने राष्ट्रीय स्तर की व्याख्यामालाओं में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है।”राम वाला हिंदुस्तान”के अलावा “बेटियां पवन दुआएं”कविता भी लोकप्रिय हुई है। मध्य प्रदेश शासन ने बेटी बचाओ अभियान जब शुरू किया था। मध्य प्रदेश बोर्ड की कक्षा दसवीं में हिंदी की पाठ्य पुस्तक में भी यह कविता सम्मिलित है।

यादों की प्यारी दुनिया में संस्मरण

प्रो. हाशमी की पुस्तक “संस्मरण का संदूक समीक्षा के सिक्के” में देश के प्रसिद्ध साहित्यकार और लेखकों ,योग विशेषज्ञ आदि से संबंधित संस्करण है। इसमें यादों का शानदार साहित्यिक भाषा में विवरण है।  प्रधान संपादक गुलाब कोठारी,पद्मश्री मेहरूनिशा परवेज़ से लेकर डॉक्टर विकास दवे, व्यंग्यकार शरद जोशी जी के बारे में जो जानकारियां मिलती है। उससे पुस्तक सुंदर बन गयी है। प्रो हाशमी की रचना प्रक्रिया इतनी सुंदर और प्रबल है कि शब्द हृदय में उतर जाते हैं। प्रो हाशमी की ये पुस्तक पढ़कर आपको लगेगा कि आप दूसरी दुनिया में पहुँच गए हैं। संस्मरण, यादों की प्यारी दुनिया में।

प्रेम की कोई भाषा नहीं, कोई मज़हब नहीं

अखिल भारतीय निर्मल पुरस्कार भी इस पुस्तक को प्राप्त हो चुका है। व्यंग्य प्रो हाशमी की प्रिय विद्या रही है। “मैं भी खाऊं तू भी खा”पुस्तक के व्यंग्य नेताओं के दोहरे चरित्र की पोल खोलते हैं। देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित व्यंग्य प्रो हाशमी की सुक्ष्म,पैनी दृष्टि को बताते हैं। इस पुस्तक में नेताओं के व्यवहार पर तीखे व्यंग्य हैं। व्यंग्य के ऐसी तीर जो सीधे सीने में जाकर लगते हैं लेकिन सीने के पार नहीं जाते सीने में धंस जाते हैं और चुभते रहते हैं। प्रो हाशमी की दृष्टि से शायद ही कोई नेता बचा हो। जिसका चरित्र इसमें उजागर नहीं हो। “मखमल में जूता लपेटा होगा तो चोट तो जूते की होगी लेकिन एहसास मखमल का होगा” “अपना ही गणतंत्र है बंधु” की कविताऐ भारतीय संस्कृति के अनेकों पक्षो को कुशलता से बताती है। हर कविता में एक जोश और ओज़ है। इंसानियत का पाठ पढ़ाती है कविताएं। मनुष्य को प्रेम करना सिखाती हैं। प्रेम करने के लिए जीवन छोटा पड़ता है तो उसमें नफरत की जगह कहाँ होगी? इस पुस्तक की कविताएं देवता के सामने जल रहे दीपक के समान पवित्र है। उनके गीता ज्ञान को लोग जीवन में उतारने के साथ जीवन में ये प्रेरणा पाते हैं, की प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, कोई मज़हब नहीं होता।

विराट व्यक्तित्व के मालिक प्रो. हाशमी

देश भर के महत्वपूर्ण सम्मानों से सम्मानित प्रो.  हाशमी विराट व्यक्तित्व के मालिक हैं। नवभारत दैनिक के स्तंभकार हैं। प्रोफेसर हाशमी की पुस्तक, रचनाओं व्यंग्य गीत, गज़ल, कविताओं पर अनेकों विद्यार्थियों ने पीएचडी की है।
प्रो. हाशमी का व्यक्तित्व और उनका लेखन संसार आकाश में सबसे अधिक चमकने उस “ध्रुव तारे”के समान है जिसकी चमक ब्रह्मांड तक कायम रहेगी। नयी पीढ़ी के रचनाकारों के लिए प्रो हाशमी प्रेरणादायी है, मार्गदर्शक हैं। यह लेख लिखना सीख रहे विद्यार्थी का सिर्फ प्रयास भर है।

इन्दु सिन्हा “इन्दु”

कहानीकार,कवयित्री
रतलाम (मध्यप्रदेश)

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