वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे शख्सियत : कविता में सर्वाधिक प्रभावित करती है कल्पना, पाठकों की कमी बहुत चिंताजनक -

शख्सियत : कविता में सर्वाधिक प्रभावित करती है कल्पना, पाठकों की कमी बहुत चिंताजनक

1 min read

कवयित्री, कथाकार तथा उपन्यासकार रीता मिश्रा तिवारी का कहना

नरेंद्र गौड़

’साहित्य दुनिया और समाज का आइना है। जिसमें हर दौर के इतिहास का अक्स दिखाई पड़ता है और वह दौर दुनिया और समाज के लिए फिर चाहे सकारात्मक रहे या नकारात्मक! अपने आसपास घटित घटनाओं को कलमबध्द कर समाज के अनछुए पलों को शब्दों की माला में पिरोकर समाज ही के समक्ष पेश करना ही साहित्य है।’

यह बात जानी मानी कवयित्री, कथाकार तथा उपन्यासकार रीता मिश्रा तिवारी ने कही। इनका मानना है कि जीवन से जुड़े कथ्य में भारी ऊर्जा होती है। कवि के आसपास नया अनुभव, नई दृष्टि है तो वह उसे बेचैन करती है। नया कथ्य, नई दृष्टि कविता के लिए अंततः उपयुक्त शिल्प और भंगिमा खोज लेती है। शिल्प की खोज में कथ्य से उत्पन्न आवेग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नए शिल्प की सृष्टि को इसी आधार पर समझा जा सकता है कि क्या पूर्व का रचना शिल्प कथ्य विशेष के लिए अधूरा या अक्षम था।

कविता में कल्पना करती है प्रभावित

एक सवाल के जवाब में रीता मिश्रा ने कहा कि कविता में कल्पना हमें सर्वाधिक प्रभावित करती है। यथार्थवादी कलाओं में कल्पना अत्यंत संश्लिष्ट रूप में सामने आती है। कविता में कल्पना के योग को समझकर हम उसका महत्व अधिक आंक सकते हैं। कल्पना के साथ हमेशा यथार्थ का सामंजस्य होता है, लेकिन कोरा यथार्थ जड़ता लाता है। यथार्थ और कल्पना के बीच ही कोई कलाकार जीवन के तनावों को सही तरीके से व्यक्त कर सकता है। ये परस्पर व्दंव्दरत होकर संतुलित रूप में कविता को श्रेष्ठता प्रदान कर सकते हैं।

प्रकृति के हैं अपने नियम

रीता जी का कहना है कि अनेक बार हम ऐसी कविताएं पढ़ते हैं, जिनमें जीवन का कोई कार्य व्यापार जैसे का तैसा व्यक्त होता है और वे हमें प्रभावित भी करती हैं। प्रकृति के अपने नियम हैं और उनसे हम प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं। ऐसी कविताओं में इन्हीं प्रकृत कार्य व्यापारों को अभिव्यक्ति दी जाती है।

पाठकों की भयंकर कमी

एक सवाल के जवाब में रीता मिश्रा ने कहा कि आज लिखा तो बहुत जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है। यहां तक कि अनेक प्रकाशक उन रचनाकारों की भी किताबें छाप रहे हैं जिनकी यह पहली पुस्तक है, वहीं नित नई पत्रिकाओं का भी प्रकाशन हो रहा है। किताबों के विमोचन हो रहे हैं और साहित्यिक विमर्श के दौर भी चल रहे हैं, लेकिन फिर भी पाठकों की भयंकर कमी है। फेसबुक ने तो और भी हालत खराब कर दी है। आज हालत यह है कि हम जिस पाठक को अपना समझकर रचनाओं के लिए परिपक्व बनाते हैं, चन्द दिनों बाद पता लगता है कि वह भी कविता लिखने लगा है। इस दौर में रचनाकारों का जितना शोषण हो रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। कला और संस्कृति को शासन की तरफ से प्रोत्साहन मिलना चाहिए, लेकिन इसके लिए यह शर्त नहीं लादी जाए कि रचनाएं सत्ता के पक्ष में ही होना चाहिए। हालांकि ऐसा होना असंभव है।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी

भागलपुर बिहार में रह रही रीता मिश्रा का जन्म भागलपुर में ही श्री रामनारायण मिश्रा और स्व. श्रीमती चंद्रकना मिश्रा के यहां वर्ष 1967 में हुआ। इन्होंने इतिहास में एमए किया और बीएड भी। आप सेवनिवृत्त अध्यापिका हैं। इनकी रूचि पढ़ना, लिखना, कढ़ाई बुनाई, कुकिंग, बागवानी में अधिक रही है। आप बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं।

प्रकाशित तथा चर्चित रचनाएं

रीता मिश्रा कविता, हाइकू, दोहा, गीत, लघुकथा, कहानी, संस्मरण तथा आलेख लेखन के क्षेत्र में खासा दखल रखती हैं। इनका एकल कहानी संकलन ’अविता’ प्रकाशित तथा चर्चित हुआ है। यह संग्रह अमेजॉन पर भी उपलब्ध है। डायरी पब्लिकेशन से साझा संकलन ’दीपाली’ भी चर्चित हो रहा है। एक और कविता संकलन ’साहित्य सुधा’ प्रकाशित है जिसमें सामाजिक, पारिवारिक परिवश को लेकर इनकी अर्थ प्रधान तथा जीवंत कविताएं हैं। इनके और भी साझा काव्य संकलन प्रकाशित हुए हैं जिनमें ’महाकाल काव्य वृष्टि’, ’वक्त की बातों में न आना’, ’मधुशाला’, साहित्य एक नजर’, ’अनुभति’, ’काव्यकुम्भ’, तथा ’पलाश’ शामिल हैं। इनकी रचनाएं ’हिंदी गूंज’, साहित्य कुंज’, ’अमर स्तम्भ’, प्रवासी संदेश मुम्बई’, ’साहित्य वसुधा’, ’इंदौर समाचार’, सहित देश विदेश की अनेक चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।

मिल चुके अनेक पुरस्कार

रीता मिश्रा को अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, जिसकी फेहरिस्त बहुत लम्बी है। प्रमुख सम्मानों में ’मधुशाला गौरव सम्मान’, ’कालचक्र सम्मान’, ’नीलकंठ सम्मान’, ’साहित्य विस्तार’ व्दारा सम्मान’, गुजरात का ’कलम बोलती है सम्मान’, उत्तरप्रदेश का ’साहित्य बोध’, सरस रत्न’ आदि प्रमुख हैं।


चुनिंदा कविताएं



भ्रमजाल

ये दुनिया एक रंगमंच है,
जिंदगी एक मायाजाल,
किरदार निभाते रहें,
कुछ भी समझ न आया
जिन्दगी के फलसफा को
जितना समझना चाहा,
उतना ही उलझता गया
फंसता गया भ्रमजाल में
छोड़ो सब भ्रमजाल है
और कुछ भी नहीं.!
पलक झपकते चेहरे पर
कई चेहरों को लगते देखा
रंग बदलती इस दुनिया में
रंग बदलते अपनों को देखा
रिश्तों की मिठास में
नमक को घुलते देखा ,
खट्टे मीठे रिश्तों को
फंसते देखा भ्रमजाल में
छोड़ो सब भ्रमजाल है
और कुछ भी नहीं..!
जिंदगी की राह में चलते हुए
मात पिता को भूल आए
हीरे की तालाश में
घर कुंदन को छोड़ आए
आईने में निहारते रहे
मन को झांकना भूल गए
दुनिया के रंगमंच पर
उलझ गए सब माया में
छोड़ो सब भ्रमजाल है
और कुछ भी नहीं..!
नहीं है इलाज इस दुनिया में
भ्रम से ग्रसित रोगों का
वास्तविकता से दूर
काल्पनिक संसार में जीते देखा
सोचता रहता हूं कैसे
बच पायेगा इस कहर से
कुंठित मानसिकता का
शिकार बनते देखा
सोचता हूं मैं कैसे
दिलाऊं उन्हें विश्वास,
कुछ भी तो नहीं
सब भ्रमजाल है।

क्यूंकि मैं एक लड़की थी

एक लड़की..
कितना अजीब है न..?
अभी जुबान से मैंने कुछ कहा नहीं..
वो बात जो दिल में थी.
विराम लबों को था,मगर..
आँखें बोलती रही..!
एक भोली भाली सी लड़की.
सादगी के हद तक एतवार था
बंद आँखों में दीदार करती रही
खामोशी की एक वजह थी
क्यूंकि मैं एक लड़की थी
दर्द लिए दिल में मुस्कुराती रही
भाव लय नहीं कलम उतारे थे.
कोरे कागज पर
पन्ने बिकते रहे
करमजली, कुलक्षणी तो कभी
कुलनाशिनी से नवाजी गई..!
क्यूंकि मैं एक लड़की थी..!!
दबी जो आवाज थी आई अभी
लड़की नहीं तुम शक्तिस्वरूपा हो
लड़की क्या लड़कों की सृजिता
पालनहार हो तुम..!
कमजोर नहीं तुम चंडी हो
बरछी,ढाल,कृपाण, तलवार चलाती हो
दुष्टों का संहार करती हो
लड़की नहीं तुम दुर्गा हो..!
यह देश है भ्रष्टाचारियों का..
जहां भूख की आग में सिंकती है रोटी!
यह देश सफेदपोशों का नहीं..
कफन में लिपटे लाशों का है..!
यहां निर्धन को कुचला जाता है
ईमान को बेचा जाता है
जहां डॉक्टर खरीदे जाते हैं
कानून यहां पर बिकता है
बसते हैं वहशी दरिंदे भेड़ियें यहां
तितलियों के पंख काटे जाते हैं
खिलने से पूर्व कलियों को
मसला जाता है
लड़की नहीं तुम देवी हो
अंधे कानून में न्याय की मूर्ति हो
पापियों का संहार करती हो
उठो जागो लड़की नहीं तुम
रौद्ररूप महाकाली हो..!

जिंदा रहना है

मैं जीना चाहती हूं चिरंत शब्दों में,
कविता और कहानियों में !
मरने से पहले कुछ तो नहीं
बहुत कुछ लिखकर मरना है
सदियों तक लोगों की जुबां ही नहीं ,
यादों में रहना है
शेरों शायरी और गजलों में ही नहीं,
संगीत में सुर ताल बनके सजना है
पन्नों के पुलिंदों में नहीं,
किताबों में युगों- युगों तक
जिंदा रहना है !
लेखकों के शुमार में
नाम दर्ज करके मरना है।

पतझड़

एक पत्ता बचा नहीं था पेड़ पर
बसंत की सांझ में !
पतझड़ जो आ गया था..ओ
अलग कर दिया हर पत्ते को पेड़ से
पेड़ की हर एक भूरी कत्थई शाखाएं..
नंगी हो रही थी हवा के स्पर्श से
ओस की बूंदों में भीगकर
पुरानी सूखी खुरदरी काया
चमक रही थी धूप की किरण से
किसी तपस्वी की जटाओं की तरह
लिपटी थी शाखाएं पेड़ से
नई कोंपलों से भरी हरी टहनियां..
झूमती रही श्रावण की बारिश में
पुरातन है तो नूतन है..
आस है तो जीवन है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *