वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे खरी खरी : शिक्षा-सुरक्षा फेल, जान पर हावी भ्रष्टाचार का खेल, कौन कसेगा नकेल, आमजन के लिए बोलेगा कौन, आयोग भी है मौन, इनके लिए मास्क और उनके लिए टास्क, ऐसे कैसे जिम्मेदार, शहर हो रहा है शर्मसार, सितंबर बना सितमगर -

खरी खरी : शिक्षा-सुरक्षा फेल, जान पर हावी भ्रष्टाचार का खेल, कौन कसेगा नकेल, आमजन के लिए बोलेगा कौन, आयोग भी है मौन, इनके लिए मास्क और उनके लिए टास्क, ऐसे कैसे जिम्मेदार, शहर हो रहा है शर्मसार, सितंबर बना सितमगर

1 min read

हेमंत भट्ट

सितंबर रतलाम के आमजन के लिए सितमगर साबित हुआ है। महीने की शुरुआत से लेकर अंत तक शिक्षा और सुरक्षा में जिम्मेदार फेल हुए हैं। वजह सिर्फ यही है कि भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। कोई नकेल कसने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं मानव अधिकार आयोग, बाल आयोग, महिला आयोग भी इस मामले में मौन है। स्वच्छता अभियान शुरू हुआ तो माननीय के लिए तो मास्क रहे मगर शहर में हर दिन सफाई का जिम्मा निभाने वालों के लिए तो केवल बिना मास्क के सफाई का टास्क ही हो रहा है। शहर के ऐसे कैसे जिम्मेदार हैं कि सबको शर्मसार होना पड़ रहा है। पैसे की भूख के आगे संवेदनाएं शून्य हो रही है। चाटुकारिता का अचार खा रहे हैं और जनता लाचार है।

चिकित्सा महाविद्यालय में हरामखोरी की मिल रही ट्रेनिंग

कहने को तो रतलाम के चिकित्सा महाविद्यालय में चिकित्सा का शिक्षण प्रशिक्षण ले रहे। मगर असलियत तो विद्यार्थियों को हरामखोरी की ट्रेनिंग मिल रही है। आधी रात को विद्यार्थियों का बाहर जाना, शराबखोरी करना, आमजन के साथ मारपीट, बिना रुपए चुकाए हराम का भोजन करना ही भविष्य के होने वाले चिकित्सकों का उद्देश्य रहा। इस पूरे घटनाक्रम में केवल और केवल राठौर परिवार का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ। अव्वल बात तो यह है कि जिम्मेदारों का बाल भी बांका नहीं हुआ। चिकित्सा महाविद्यालय की डीन नियंत्रण करने में असफल रही, वार्डन असफल रहे। बावजूद इसके संभाग आयुक्त ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। इससे साफ जाहिर होता है कि हर छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों पर बड़ों का पूरा-पूरा वरद हस्त है। आमजन केवल, केवल और केवल इस तंत्र से त्रस्त है। संवेदना से भरे इस मुद्दे पर मानव अधिकार आयोग की चुप्पी भी उनके क्रियाकलाप पर प्रश्न चिह्न लगाती है। कुल मिलाकर किसी की भी जान चली जाए, जिम्मेदारों पर सरकार पूरी तरह से मेहरबान है।

तबादले  और निलंबन पद्मश्री से कम नहीं

आमजन की सुरक्षा का जिन पर पूरा जिम्मा है। उन्होंने न केवल आमजन की हड्डी पसली एक कर दी, अपितु न्यायालय को ताक पर धरकर जेल भी भेज दिया गया। श्री गणेश जी की स्थापना पर जो जिम्मेदारों ने जो खेल खेला, वह अक्षम्य है। मगर उनकी सेहत पर कोई असर नहीं क्योंकि तबादले और निलंबन तो इनके लिए पद्मश्री से कमतर नहीं है। जरूरत है देश में ऐसा कानून बने की सीधे सेवा से बर्खास्त हो, जिस तरीके से अब तक बुलडोजर चला कर मकान गिराए जा रहे हैं, ठीक उसी तरह। ऐसे अधिकारियों पर मानवता, संवेदना भावना, कोई मायने नहीं रखती। जनता के लिए दिया गया सुरक्षा का पावर ही इनके लिए ढाल बन गया। मासूम बच्चों के सामने ही आमजन की धना धन धुलाई हुई। उसके बाल मन पर क्या असर हुआ होगा? यह सोचने समझने की शक्ति तो इन आततायियों के पास है नहीं। आम जन फिर पीटा गया, तोड़ा गया, मरोड़ा गया। फिर भी मानव अधिकार आयोग, बाल आयोग और महिला आयोग के कान में आवाज नहीं पहुंची। 

इनके लिए मास्क उनके लिए टास्क

स्वच्छता पखवाड़े की शुरुआत करते हुए माननीय ने साफ सड़क पर झाड़ू लगाने की रस्म अदायगी करने के लिए हैंड ग्लव्स भी पहने,  मास्क भी लगाया क्योंकि वे माननीय हैं जबकि हर दिन सफाई करने वालों के लिए यही टास्क है कि बिना बूट, बिना मास्क, बिना हैंड ग्लव्स के काम करें, चाहे गंभीर बीमारी का भी शिकार क्यों ना होना पड़े। कई बार तो अर्धनग्न की स्थिति में भी वह काम करने को मजबूर हैं।

जान भी चली जाती है मगर जिम्मेदारों की सेहत पर कोई असर नहीं। वह तो गनीमत रही कि कुछ आर्थिक मदद मिल गई। मगर जान की कीमत के आगे अर्थ तो व्यर्थ ही है। उनकी सुरक्षा का कोई भान नहीं है। बड़े-बड़े औहदों पर ऐसे वैसे संवेदनहीन जिम्मेदार अधिकारी रहेंगे तो आम जनता का जीवन तो बद से बत्तर होना स्वाभाविक है। सड़क किनारे गड्ढे खोद कर भूल जाओ,  महीनो तक ध्यान मत दो। बनी बनाई सड़क खोद दो, उसकी मरम्मत मत करो, जो राशि मरम्मत की है, उसको डकार जाओ, यह तो इन सबकी आदतों में शुमार है। ठेकेदार नगर निगम के हो या लोक निर्माण विभाग के सड़क बनाना किसी को नहीं आता। करोड़ों खर्च होने के बाद भी सालों तक सड़क की सुविधा को आम जनता तरसती रहे।

जिनको चुना रहनुमा, वे सब हो गए लफंगे

चाहे आपकी जान पर सांड हमला करें, श्वान हमला करें, नाली में गिरो, गड्ढे में गिरो, वाहनों की ओवरलोडिंग में गिरकर मरो, वे कुछ नहीं करेंगे। केवल आश्वासन की बीन बजा के चले जाएंगे। उन बूढ़े मां-बाप का दुःख देखने वाला कोई नहीं है। उनका लाल जिम्मेदारों की लाल फीता शाही के आगे काल के गाल में समा गया। किसी का पिता, किसी का भाई, किसी की मां, किसी की बहन इसी तरह जान गवा रहे हैं। सद्भावना पूर्ण जीवन बिताने वाले शहर के बाशिंदों के साथ ऐसा हश्र क्यों हो रहा है? लगता है इसका एक ही जवाब है जिनको रहनुमा चुना है वह सब के सब लफंगे हो गए हैं।

संवेदनशील मामलों में बाल आयोग न जाने कहां सोया?

कुछ माह पहले भी शिक्षण संस्थान पर संचालक द्वारा ही यौन शोषण का मामला सामने आया था। जिम्मेदारों ने चार-छह दिन रस्मअदायगी की, फिर मामले को ठंडे बस्ते में फेंक दिया गया। कोई निरीक्षण नहीं। परीक्षण नहीं। शिक्षण संस्थानों पर कोई नियंत्रण नहीं। क्योंकि सबके पेट बहुत बड़े हो गए हैं और खिलाने वालों के पास कोई टोटा नहीं है। तभी तो अपने कर्तव्य का निर्वहन ना करते हुए कर्तव्यों को खूंटी पर टांग दिया गया है और आमजन के साथ खिलवाड़ करने का रास्ता साफ कर दिया है। नन्हीं मासूम के साथ जो घटना हुई वह तो बिल्कुल अक्षम्य है। फिर भी ऐसे लोग जिन पर समाज निर्माण की जिम्मेदारी, भविष्य सृजन की जिम्मेदारी, नवनिहालो को संवारने की जिम्मेदारी है, वे भी 4 दिन बाद फिर मुस्कुराते हुए शहर में सम्मान प्राप्त करते रहेंगे। मुख्य अतिथि की आसंदी को सुशोभित करते रहेंगे। भविष्य और पढ़ाई के लिए चिंतित बेटियां आंदोलन कर रही है, जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि वह चाटुकार बन गए हैं। खट्टा मीठा अचार चाट रहे हैं और आमजन लाचार है। ऐसे संवेदनशील मामले में भी बाल आयोग न जाने कहां पर सोया है?

कलंक हैं. कलंक हैं.. कलंक हैं…

समझ नहीं आता है ऐसा सब करने में  सभी का जमीर गवारा क्यों हो जाता है। आखिर क्यों उन्हें आत्मा नहीं कचौटती। क्या पैसे की भूख वास्तव में इतनी बढ़ गई है कि जो सब कुछ नाजायज है, वही उनके लिए जायद साबित हो रहा है। जब जिम्मेदारों के पास नैतिक जिम्मेदारी नहीं बची है तो, वह समाज के नाम पर, मनुष्य के नाम पर कलंक हैं. कलंक हैं.. कलंक हैं…। ऐसे कलंकित लोग तो आत्महत्या भी नहीं करते क्योंकि उनकी आत्मा ही नहीं है। उन्होंने अपनी आत्मा को, जमीर को, ईमानदारी को, जिम्मेदारी को, अपने पालनहार को, संस्कार को, सदाचार को, व्यापार और व्यभिचार के बाजार में नीलाम कर दिया है। कुछ अनुकरणीय करने का अवसर मिला है, उसे करो, कुछ तो शर्म करो, जिम्मेदार।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed