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पुस्तक समीक्षा : रावण सी नैतिकता भी होती तो -?

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उस रावण दहन के साथ जिसके समान कोई ज्ञानी, चरित्रवान नहीं है। जो खुद को सर्वश्रेष्ठ मानता था। सैकड़ो चेहरे वाला मुखौटा लगाए खुद को तपस्वी कहता है। तपस्वी तो था। क्योंकि वर्तमान में जो हालात है उसमें नन्ही बच्ची भी सुरक्षित नहीं। इसी दुनिया उस तपस्वी की दुनिया ही बेहतर थी। ⚫

⚫ इन्दु सिन्हा”इन्दु”

हमारे अपार्टमेन्ट की अस्सी वर्षीय बूढ़ी अम्मा जी मेरी कहानियां अक्सर पढ़ती रहती है। एक बार वो बोली,आपका लिखा समझ आ जाता है। बडे बडे साहित्यकारो की लिखी रचनाएं सर के ऊपर से निकल जाती है। क्या कहना चाहते है कुछ पल्ले नही पडता। ये सुनकर मैने राजस्थान के लेखक सुनील पँवार जी की उपन्यास”तपस्वी”उनको पढ़ने के लिए दी|ये पुस्तक भी सरल भाषा मे है। कुछ दिनों बाद ही उन्होंने”तपस्वी”मुझे लौटा दी। ये कहकर”हेभगवान रावण को भेज दे धरती पर”उसी का राज अच्छा था।


इतनी बूढ़ी अम्मा ये विचार रख सकती है तो?”तपस्वी”में क्या होगा समझ गए आप। देवसाक्षी पब्लिकेशन से प्रकाशित सुनील पँवार की उपन्यास”तपस्वी”विवादों के साथ चर्चाओं में भी है। वजह है इसका धमाकेदार प्रचार और इसकी विषयवस्तु धमाकेदार इसलिये कहा कि सुनील जी पुस्तक प्रकाशित होने तक पुस्तके के संवाद अपने चिरपरिचित गम्भीर अंदाज में सोशल मीडिया में पोस्ट करते रहते थे, जिससे पाठकों में उत्सुकता बनने लगी। पाठक “इंतहा हो गयी इंतजार की”के अंदाज में इंतजार करने लगे।दूसरा कारण इसका विषय, जिसे कभी नारी विरोधी कहा गया तो कभी पुरुष की विकृत मानसिकता। पुस्तक आते ही चर्चा का विषय बनी। धर्मग्रंथों के अनुसार(मेरे अनुसार भी)कर्म ही श्रेष्ठ है। बाकी ढकोसला है। कहानी शुरू होती है दशहरे के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत से। रावण दहन के साथ।


उस रावण दहन के साथ जिसके समान कोई ज्ञानी, चरित्रवान नहीं है। जो खुद को सर्वश्रेष्ठ मानता था। तपस्वी मानता है। सैकड़ो चेहरे वाला मुखौटा लगाए खुद को तपस्वी कहता है। तपस्वी तो था। क्योंकि वर्तमान में जो हालात है उसमें नन्ही बच्ची भी सुरक्षित नहीं। इसी दुनिया उस तपस्वी की दुनिया ही बेहतर थी, उसे तपस्वी से होकर वर्तमान के तपस्वी के चेहरों की पढ़ने हटाते हुए उपन्यास रोचक है नोटों के ढेर कामदेव सा सुंदर वरिष्ठ तपस्वी अहंकारी है यह बात किया और तपस्वी के इंटरव्यू के दौरान मिलती है हिंदी मूवी के समान बड़ी कंपनियों की पोल खोलता है। तपस्वी यह बताता है कि युवती फिजिकली रूप से आकर्षक होनी चाहिए। उसकी डिग्रियां बेकार है। माया “तपस्वी” के पास है ही, वही उसे”काया”भी उपलब्ध करवाती है। ज्यादातर यही हालत”माया”वालों के हैं। “काया” तो आजकल सोशल मीडिया पर भी कुछ समय की चैटिंग के बाद मिल जाती है “माया” हो तो।


“काया” को गुंडों का छेड़ने वाला दृश्य साउथ की मूवी के समान दिखता है। नौकरी के दौरान सिर्फ न्यूज़ पढ़ पढ़ कर सुनाना,उन युवतियों की पोल खोलता है,जो नौकरी के नाम पर कठपुतली बनी रहती है,और मोटी सैलेरी लेती है।नास्तिक और आस्तिक के तराजू में लटका तपस्वी “माँ”का नाम बीच में आने से क्रोध में भर जाता है।  कहीं-कहीं उन टपोरियों का प्रतिनिधित्व भी करता है, जिसे मोहल्ले वाले कभी आवारा कहते थे,और वह महिलाओं का रक्षक बन जाता है, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि तपस्वी उन पर तीखा प्रहार करता है जो श्री राम के नाम को जपते रहते हैं, उनके आदर्शो की बात करते रहते हैं, लेकिन उनके काम निंदनीय है। उनसे बेहतर रावण है जो अपने आदर्शों पर अडिग रहा। माता सीता उसके राज्य में सुरक्षित रही। यह रावण का चरित्र था।


कुछ संवाद देखिए”नारी को अपने समर्पण में रखकर उसकी अस्मत बचाए रखना रावण का समर्पण था”। “देखने में वह कामदेव की तरह खूबसूरत रावण की तरह बलिष्ठ और ओजस्वी नजर आ रहा था”। पेज न 13)” बहन की पढ़ाई घर की जिम्मेदारी माँ की बीमारी और डायन बेरोजगारी तुम्हें बहुत परेशान कर रही है,है ना काया?” उसका  लहजा शांत किंतु असाधरण था”(पेज न. 35) वैसे भी मेरे यहां लड़कियों का चयन क्वालिटी बेसिस पर नहीं बल्कि अपने लुकऔरअदाओं के बेसिस पर होता है। आकर्षण ही पहले अनिवार्य शर्तें है|फाइल रिज्यूम,डिग्रियां,क्वालिफिकेशन सब कागज के टुकड़े हैं और इन कागज़ों के दम पर यहाँ जॉब नहीं मिलती”। (पेज 38) तुमने अभी दुनिया देखी नहीं है काया,स्वार्थ को मजबूरी का नाम देना उचित नहीं है, उन्हें धन चाहिए था और मुझे जिस्म। सौदा दोनों तरफ से हुआ इसमें इतना बवाल क्यों?कूल अंदाज में”तपस्वी”ने जवाब दिया।

“तपस्वी”की भाषा सरल है। आम पाठक समझ सकता है। लेखक क्या कहना चाहता है। कवर पेज आकर्षक है। अलग प्रकार का है। देवसाक्षी की छपाई उत्कृष्ट है अंत भी रावण दहन से होता है। फिर भी रावण सी नैतिकता और संस्कार भी होते देश मे तो हालात यूँ ना होते, जो आज  बच्चियों और नारियों के साथ हैं। “तपस्वी”को जरूर पढा जाना चाहिए।


⚫ इन्दु सिन्हा”इन्दु”
कहानीकार/समीक्षक
रतलाम(मध्यप्रदेश)

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