शख्सियत : सभी कलारूपों में प्रेमतत्व अनिवार्य
⚫ फिल्म पटकथा लेखिका तथा कवयित्री माया धोटकर का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
’आधुनिक जीवन जितना जटिल है, उतनी ही आधुनिक कला और कविता भी जटिल है। कला तथा साहित्य के एक आंदोलन में ही दूसरे आंदोलन के बीज विद्यमान होते हैं। दूसरा आंदोलन किस तरह पहले आंदोलन व पूर्व इतिहास से संबंधित होता है इसका विश्लेषण कला तथा साहित्य के इतिहास में मिलता है। जीवन को संपूर्णता में न देख पाने और अपनी पक्षधरता को निर्णीत करने की अंर्तदृष्टि के अभाव में अनेक कृतिकार भटकाव के शिकार हुए हैं। आधुनिक कविता में जीवन से स्वर मुखर होकर बोलते हैं।’
यह बात फिल्मों की पटकथा लेखिका तथा कवयित्री माया धोटकर जी ने कही। इनका मानना है कि कला में कोई भी परिवर्तन आकस्मिक नहीं होता। उस परिवर्तन का पोषक वातावरण होता है, लेकिन इस धरती पर जितने भी कला रूप हैं, उन सभी में प्रेम तत्व महत्वपूर्ण है। प्रेम के बिना कला अधूरी है। एक सवाल के जवाब में माया जी ने कहा कि ‘प्रेम’ ये शब्द उच्चारण में जितना आसान लगता है, उतना ही कठिन है उसे वास्तविकता में जीना। प्रेम की व्याख्या करना भी आसान नहीं। क्या कोई सच्चे प्रेम की व्याख्या कर सकता है, जो राधा ने और मीरा ने कृष्ण से किया था? शायद आज के समय में असंभव सा है। जो प्रेम राधा का कृष्ण से था, मीरा का कृष्ण से था। जहाँ कृष्ण के प्रेम में राधा राधा नहीं रही और मीरा भी मीरा नहीं रही। दोनो ही कृष्णमय हो गई थी। कृष्ण प्रेम में दोनो व्याकुल हो गई थी। मीरा कृष्ण के नाम में व्याकुल हो कर गलियों मे घूमती रही, वहीं राधा कृष्ण की बांसुरी की तान में सराबोर होने लगी।
मीरा और राधा का अमर प्रेम
एक सवाल के जवाब में माया धोटकर ने कहा कि मीरा तथा राधा ने कृष्ण से केवल और केवल प्रेम ही किया था। इसीलिए दोनों प्रेम में सर्वश्रेष्ठ रही। कृष्ण से प्रेम करनेवाली केवल अकेली राधा नहीं थी। कृष्ण की रानियों समेत गोकुल की अन्य गोपिकाएं भी थी पर प्रेम में सर्वश्रेष्ठ राधा और मीरा ही रही। युग बदले साल बदले पर दोनो का प्रेम अजरामर रहा। क्यों की उनका प्रेम निरपेक्ष था। माया जी का मानना है कि अगर आपका प्रेम सही मायने में निरपेक्ष है तो जिससे आप प्रेम करते हैं, उस से किसी भी प्रकार की इच्छा मत रखिए। प्रेम के अनेक रूप होते हैं। जरूरी नहीं कि वह शरीर रूप से ही आपके साथ रहे। किसी को प्रेम करने के लिये उसका नाम ही काफी होता है। कोई उसकी तस्वीर को पूजेगा या कोई उसकी कला से प्रभावित होकर उसके प्रेम में डूबेगा। और अपने प्रेम को निरंतर उसकी छवि को सायें की तरह इर्दगिर्द पायेगा। और हमेशा ही आपके कल्पनाओं में रहेगा उसमे आदर सम्मान के साथ प्रेमभाव भी रहेगा। उसमें शक का कोई बीज नहीं होगा।
कविता के साथ फिल्मों की पटकथा भी
नागपुर महाराष्ट्र में स्व. लक्ष्मणराव फुटाणे तथा श्रीमती प्रमिला के यहां जन्मी माया जी की शिक्षा इसी राज्य की तहसील देवली(वर्धा) में हुई। इनके पिता ने आयुर्वेदिक दवाओं का वहां कारखाना स्थापित किया था जिसे इन दिनों इनके भाई तथा भतीजा मिलकर चला रहे हैं। मायाजी ने बहुत सा ज्ञान स्वाध्याय रूप से प्राप्त किया। उल्लेखनीय है कि इन्होंने कविता लेखन के साथ ही ’हिच ती श्यामची आई, मिस कॉल और आनंदधाम’ नाम से तीन मराठी फिल्मों की पटकथा भी लिखी है। लेकिन अनेक कारणों से इन पर फिल्में नहीं बन सकीं। यह तीनों कथाएं रजिस्टर अवश्य करा दी हैं। इन दिनों मायाजी बीना में रहते हुए स्वतंत्र लेखन कार्य कर रही हैं। उस में कविताएं,गीत,गज़ल है।
चुनिंदा ये ग़ज़ल
किस की सिसकियां
सुनाई देती किस की सिसकियाँ हैं
मुझे क्यूँ हो रही बेचैनियाँ हैं
न जाने कौन- सी हलचल सुलगती
यहाँ कैसी ये गुमसुम बस्तियाँ हैं
कहाँ पर गड़ गई पीतल की हांडी
किसी खंडहर की ये अशर्फियाँ हैं
मुझे क्यूँ लग रहा है डर अभी तक
मुझी पर उठ रही कुछ उंगलियां हैं
किया है किसने दिल से याद मुझको
मुझे क्यों आ रही अब हिचकियाँ हैं
ये कैसा शोर है ये चीख कैसी
डराती सर कटी परछाइयाँ हैं
चलो भागें यहाँ से अब ए माया
हवा के साथ गिरती बिजलियाँ हैं
ऐसा बंधन
कभी छूटे ना साथ ऐसे
उस से मैं थी बंध गई
यूँ रेत की तरह फिसलती
जिंदगी निकल गई
कुछ बंधी थी उम्मीदें साथ
उसके वो चली गई
हुआ क्या था कसूर मेरा
खुद में ढूंढती रह गई
कहा था चाँद उसने
जिंदगी अमावस बन गई
उन काली अंधेरी रातों में
कई बार रुलाई गई
मिले थे तो लगा था
खुद से मुलाकात हो गई
उन मुलाकातों के पन्ने
गुम हुए ढूंढती रह गई
बिन दस्तक के आई थी
बिन आहट चली गई
वक्त पे पाँव पड़ा मुंह के
बल जिंदगी गिर गई
हदसे बढ़कर मेरी उससे
कुछ दिल्लगी हो गई
इस तरह उसकी बेरूखी से
मैं शायरा बन गई
इरादा था दूर तक चलने का
साथ चलती गई
बीच रास्ते में शायद
उस की पसंद बदल गई
रिश्तों को करते रहिए रफू
फटे हुए रिश्तों को
करते रहिए रफू
कुछ दूर और साथ- साथ
चलते चलेंगे
पता है अगर गाँठ पड़
जाए एक बार
तो समय तो लगेगा ही
सुलझाने में
सुलझेंगे भी तो क्या
पूर्ववत बन पाएँगे
न कर उम्मीद,
सिलवटें निशान छोडेंगी
फिर ये रिश्तों की खामोशी
और उदासी
सोचिए हमें कहाँ तक
ले कर जाएँगी
प्यार ना सही ईर्ष्या भी
किस काम की
बेमन से ही घोल दो
दो बूँद शहद की
मत करो उम्मीद
किसी भी बात की तुम
उम्मीदों ने ही
घर को लंका बना दिया
पहुंची हो घर तक आग,
घर बचाने में हो कामयाब
आपका प्रयास ही,
करेगा रफू का काम
फटे हुए रिश्तों को
करते रहिए रफू
कुछ दूर और
साथ- साथ चलते चलेंगे।