विचार सरोकार : पूरी तरह से क्रियाशील कर्त्तव्य प्रणेता का परिचायक है धर्म

धर्म बहुत व्यापक है। उसको संकुचित अर्थ में लेना मूर्खता होगी। धर्म मानव मात्र में एकता और सद्भावना है। धर्म का विचार विवेक से किया जा सकता है, हृदय से नहीं। ⚫

दीपा शर्मा

एक शब्द में “नियम” और थोड़ी व्याख्या में जाएं तो धर्म का अर्थ “जीवन जीने का तरीका” या “जीवन जीने का नियम” ही धर्म है।  धर्म का अर्थ मात्र साधना करना नहीं है या फिर किसी मंदिर में शंख बजाना या मस्जिद में अजान देना नहीं है। धर्म का अर्थ है कि इस धरा पर जिस रूप में ईश्वर ने आपको भेजा है, उसी रूप के अनुसार अपने कर्म को करना अपने कर्त्तव्यों को प्राप्त संसाधनों द्वारा पूरा करना और प्रसन्न रहना है।

धर्म कहता है कि आपको अपने कर्म करते हुए समाज और अपने आसपास के वातावरण को भी स्वस्थ रखना है। धर्म निष्क्रियता नहीं है। धर्म पूरी तरह से क्रियाशील कर्त्तव्य प्रणेता का परिचायक है। धर्म गलत का विरोध करता है तो सही के साथ खड़े होना भी धर्म है। एक पूजा करने वाले व्यक्ति को हम धार्मिक मान लेते हैं, जबकि धर्म का अर्थ धैर्य धारण करना है।

बहुत व्यापक है धर्म

“मानवता “धर्म है। इसी कारण प्रत्येक जीव का धर्म अलग हो सकता है। उसके देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार एक सैनिक का धर्म देश की रक्षा करते हुए किसी (दुश्मन) के प्राण लेना  जबकि दूसरी तरफ किसी भी जीव की हत्या करना पाप है। इसलिए धर्म कर्म प्रधान है। काल प्रधान है। स्थिति प्रधान है। धर्म बहुत व्यापक है। उसको संकुचित अर्थ में लेना मूर्खता होगी। धर्म मानव मात्र में एकता और सद्भावना है। धर्म का विचार विवेक से किया जा सकता है, हृदय से नहीं। और अंत में धर्म भय से मुक्ति दिलाता है
और भय मुक्त वातावरण तैयार करना भी धर्म है।
धन्यवाद।

दीपा शर्मा, प्राचार्य, फरीदाबाद, हरियाणा (यह लेखक के अपने मत और विचार हैं)

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