साहित्य सरोकार : हवाओं से उड़ते कचरे को एक दिन ज़मीन पर ही आना है

व्यंग्य रचनाओं को तीन घण्टे तक सुना गया

ज्ञान जी का किया सम्मान

हरमुद्दा
रतलाम, 23 दिसंबर। इक्कीसवीं वीं सदी में चालाकी बढ़ गई है। बुद्ध ने कहा था कि एक ही नदी में दूसरी बार कदम नहीं रख सकते। समय की नदी में उतरना आसान नहीं। रोज़ बदल जाती है । मूर्तियों की राजनीति बदल रही है।मार्केट का सीधा असर राजनीति और विचारधाराओं पर पड़ता है। हमें अराजकता के स्त्रोत पर प्रहार करना चाहिए। परोक्ष ताकतों की पहचान के लिए अध्ययन ज़रूरी है। हम धर्म के फेरे में सही गलत का अंतर नहीं कर पाते। छद्म राष्ट्रीयता वाले मल्टी नेशनल कंपनीज़ से प्रभावित हैं।

यह बातें पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य लेखक समिति वलेस द्वारा आयोजित राष्ट्रीय व्यंग्य सम्मान समारोह के तहत आयोजित व्यंग्य पाठ समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने अपने व्यंग्य पढ़ते हुए कहा कि हवा के दम पर उड़ते कचरे को एक दिन ज़मीन पर ही आना है।

व्यंग्यकारों ने किया रचना पाठ

व्यंग्य रचना पाठ सत्र में देश के महत्वपूर्ण व्यंग्यकारों ने रचना पाठ किया । वरिष्ठ व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने हवाओं के दम पर उड़ता कचरा और अन्य व्यंग्य रचनाएं सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। कैलाश मंडलेकर ने ‘ आई  ग्रीष्म चोर घर आए, प्रमोद ताम्बट ने ‘फ़र्ज़ी डिग्री के दम पर’ व्यंग्य का पाठ किया।  शशांक दुबे ने अपनी रचना ‘घूमने वाले बाबूजियों की किस्में’ , बृजेश कानूनगो ने ‘साहित्य समारोह के कुछ नए कायदे’,  ऋषभ जैन ने ‘कवि और शेयर’, मुकेश राठौर  ने ‘जब अब लड़की देखने जाए श्रीमान से’, अनीता श्रीवास्तव ने  ‘छुट्टी की एप्लिकेशन’ का पाठ किया।  सुनील जैन ‘राही’ , अलका अग्रवाल सिगातिया , सारिका गुप्ता  , सुनील सक्सेना , मलय जैन , विजी श्रीवास्तव , शांतिलाल जैन , आशीष दशोत्तर , राजेंद्र बज (हाटपिपल्या) ने अपनी व्यंग्य रचनाओं से आनंदित कर दिया। संचालन सुनील जैन ‘राही’ने किया तथा आभार विष्णु बैरागी ने व्यक्त किया।

ज्ञान जी का किया सम्मान

इस अवसर पर डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी का शहर के साहित्यकारों प्रो. रतन चौहान, डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, विष्णु बैरागी, यूसुफ़ जावेदी, नरेन्द्र सिंह पंवार, नरेंद्र सिंह डोडिया, संजय परसाई ‘सरल’, महावीर वर्मा, विनोद झालानी, रणजीत सिंह राठौर ने सम्मान किया। शहर की सक्रिय संस्था ‘हम लोग’ की ओर से संस्था अध्यक्ष सुभाष जैन और साथियों ने सम्मान किया। नरेन्द्र सिंह पंवार ने अपनी पुस्तक भेंट की।

व्यंग्य की इन पंच लाइनों ने दिया आनंद

“घूमना मेमसाब का ‘पैशन’ नहीं होता, वे फैशन के कारण घूमती हैं। कुछ बहनजियाँ तो ‘कैट वॉक’ करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखती हैं कि उनकी टी शर्ट या कुर्ती का रंग, जूतों और छाते के रंग से मैच हो। इन्हें ‘रंग मिलावनी वॉकराइन’ कहने में क्या हर्ज है!”   

शशांक दुबे, उज्जैन

“वैवाहिक रिश्ता पक्का करने की प्रक्रिया वैज्ञानिक पद्धति की तरह चरणबद्ध चलती है|”

मुकेश राठौर, भीकनगांव

“कविता के शेयर लाना संभव नहीं है यार। वर्तमान में भी कुछ फेस वैल्यू हो चीज की तब तो शेयर बने उसका। कवि ने सोचा गुड़ के शेयर के दीवाने कबीर की कविता भी काहे सुनने लगे।

ऋषभ जैन, दुर्ग

“अगर आप कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि या अध्यक्षता का दायित्व संभालने हेतु आमंत्रित किए गए हों तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि आप पूरी तैयारी के साथ जाएं। याने वह कुर्ता कदापि न पहनें जिसे पिछली गोष्ठी में पहनकर गए थे।”
ब्रजेश कानूनगो, इंदौर

“मुड़ – मुड़ के देखने का हमारे यहां इतना अच्छा रिवाज़ है , जो पूरे हिंदुस्तान में नहीं मिलेगा । जिसको भी चलते-चलते कहीं वाहन को मोड़ना होता है, वह साइड नहीं लेता , हाथ भी नहीं दिखाता। बस!  मुड़- मुड़ के पीछे की तरफ देखता है । उसके मुड़ – मुड़ के देखने से आप समझ जाइए कि यह मुड़ने वाला है । किधर मुड़ने वाला है यह उसकी इच्छा । आप तो पीछे चलते अपने वाहन को धीमा कर लीजिए और भलाई चाहते हों तो रोक ही लीजिए , क्योंकि वह एकदम यू टर्न भी ले सकता है।”

आशीष दशोत्तर, रतलाम

“अर्दली और बाबू को टोकन मनी नहीं मिली तो भैंस को नई तारीख दे दी। भैंस ने अहिंसा धर्म अपनाया और धरने पर बैठ गई। भैंस मुंह ऊपर करके डकरा रही थी और अदालत की कार्रवाई उसके सामने बीन बजा रही थी।”

सुनील जैन ‘राही’, नई दिल्ली

“इन दिनों डाटा चोरी का मामला जोर पकड़ रहा है । चोरी की दुनिया मे यह नया और विश्वव्यापी कीर्तिमान है । ऐसी घटनाएं देशी और पारंपरिक चोरों को विचलित कर देती हैं । वे हीनता बोध से ग्रसित होने लगते हैं । हीनता इस बात की ,  कि चोरी का धंधा कहाँ से कहाँ पहुंच गया और एक हम हैं कि अभी भी नुक्कड़ की दुकान से मुमफली के दाने और गरममसाला ही चुरा रहे हैं । लानत है हम पर और ऐसी चोरी पर ।”

कैलाश मंडलेकर, खंडवा

“कुछ पूजनीय किस्म के बहाने हैं जिन्हें बनाने वाले के पैर छूने का मन करता है। जैसे रास्ते में एक बुढ़िया मिल गई थी, बोली बेटा घर छोड़ दो। बुढ़िया के पहले गरीब, लाचार और बोल दिया जाय तो बढ़िया असर करता है। न जाने कब मेरे भीतर कामचोरी का वायरस प्रवेश कर गया। छुट्टी लेने के सौ तरीके जैसी किताब लिखें ताकि भावी पीढियाँ अवकाश पर जाना सीख सकें।”

अनीता श्रीवास्तव, टीकमगढ

“दुनिया की किसी भी यूनिवर्सिटी के किसी भी कोर्स की फर्ज़ी डिग्रियों के दम पर हम अपने इस देश को दुनिया का सिरमोर बना कर ही दम लेंगे।”

प्रमोद ताम्बट, भोपाल

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