साहित्य सरोकार : ‘घर के जोगी’ पुस्तक रतलाम का साहित्य संदर्भ कोश साबित होगी

आशीष दशोत्तर की पुस्तक का हुआ विमोचन

आशीष ने इस पुस्तक के माध्यम से समुद्र से सुई निकालने का किया है कार्य : वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर अजहर हाशमी

रतलाम के साहित्य जगत की पहचान है यह पुस्तक : प्रोफेसर रतन चौहान

हरमुद्दा
रतलाम, 30 दिसंबर। साहित्य, संस्कृति और सद्भाव के लिए पहचाने जाने वाले शहर रतलाम के साहित्य जगत को एकत्रित कर आलोचकीय दृष्टि से प्रस्तुत करती पुस्तक ‘ घर के जोगी ‘ का विमोचन पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, कैलाश मंडलेकर, डॉ. जवाहर कर्नावट के हाथों हुआ। पुस्तक विमोचन करते हुए अतिथियों ने कहा कि आशीष दशोत्तर की यह पुस्तक रतलाम का साहित्य संदर्भ कोश साबित होगी।

वैचारिकता की दूरदृष्टि का दूरबीन लगाकर छानबीन की आशीष ने : प्रोफेसर हाशमी

पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अज़हर हाशमी ने कहा कि यह श्रमसाध्य और समयसाध्य कार्य है। आशीष ने इसमें वैचारिकता की दूरदृष्टि का दूरबीन लगाकर छानबीन की है , तब यह संग्रह सामने आया है।  इतने रचनाकारों के साहित्य को एकत्रित करना बहुत कठिन कार्य है । मेरे मत में यह अपने आप में एक रिसर्च है । इससे काफी लोग लाभान्वित होंगे और भविष्य में कई पीढ़ियां शोध कार्य में इसकी सहायता लेगी।  यह पुस्तक संदर्भ कोश साबित होगी । यह रतलाम के साहित्य की डिक्शनरी भी है , कविता का कोश भी है और परिचय माला भी है।  आशीष ने इस पुस्तक के माध्यम से समुद्र से सुई निकालने का कार्य किया है।

रतलाम के साहित्य जगत की पहचान है यह पुस्तक : प्रोफेसर रतन चौहान

प्रो. रतन चौहान ने कहा कि यह पुस्तक रतलाम के साहित्य जगत की पहचान है। इसमें आलोचकीय दृष्टि और रचनात्मक श्रम दिखाई देता है। इस पुस्तक के माध्यम से इतने रचनाकारों की रचनाओं को समेटकर आशीष ने अपने कवि दायित्व को पूरा किया है।

आलोचना की इस पुस्तक में आशीष ने की एक अभिनव पहल : श्री उपाध्याय

सुरेश उपाध्याय ने कहा कि‌ आलोचना की इस पुस्तक में आशीष ने एक अभिनव पहल की है, आज के संदर्भ में अपने शहर ‘रतलाम’ के ज्ञात, अल्पज्ञात व अज्ञात रचनाकारो के कविकर्म से वाबस्ता करने की महती कोशिश की है। किसी शहर की रचनाधर्मिता को लेकर मेरी जानकारी में यह प्रथम पहल है।

किताब पढ़ कर लेगा सब कुछ हो उठा जीवन : डॉ. दशोत्तर

स्व. सुभाष दशोत्तर जी के अनुज डॉ.अरविन्द दशोत्तर ने कहा कि किताब को पढ़कर लगा सभी कुछ जीवन्त हो उठा। निश्चय ही बड़ा चुनौती भरा काम था । आशीष ने बहुत कुशलता से इसे पूरा किया है। बहुत से नए चेहरे लगा चित परिचित हैं। हर कवि को पाठकों से इतनी सहजता से मिलवाना, आशीष के ही बस का काम है।

कविताओं को पढ़ पाना मुझे तिहरी खुशी से सराबोर कर गया : डॉ. पंचोली

डॉ. किसलय पंचोली ने कहा कि आशीष दशोत्तर द्वारा लिखित आलोचना की साझा पुस्तक ‘घर के जोगी’ में स्वयं की कविताओं को पढ़ पाना मुझे तिहरी खुशी से सराबोर कर गया। एक तो रतलाम से जुड़े आत्मीयता के तार झंकृत होने की खुशी, दूजे इस पुस्तक में शहर के पुराने और नए नामचीन कवियों के साथ मेरा अदना सा नाम जुड़ने की खुशी, तीसरे किसी ने मुझे कविता विधा से पहचान के घेरे में ला खड़ा किया है इस बात की खुशी। यह बहुत महत्वपूर्ण कार्य आशीष ने किया है।

हर दशक में निकली है यहां विभूतियां : रमानी

श्रीमती रश्मि रमानी ने कहा कि रतलाम का एक विस्तृत फलक़ है। हर दशक में यहां से विभूतियां निकलीं हैं। रतलाम साहित्यकारों का गढ़ रहा है। बेहद खुशी होती है जब अपने घर के लोगों में हम भी शामिल हों। आशीष का यह कार्य रतलाम की पहचान बनेगा।

यह थे मौजूद

पुस्तक की विषय वस्तु और इसमें समाहित किए गए रचनाकारों की रचनाओं के प्रति निष्पक्ष रूप से आलोचकीय दृष्टि डालने के लिए अन्य सुधिजनों ने भी अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। इस अवसर पर विष्णु बैरागी, महावीर वर्मा, संजय परसाई ‘सरल’, नरेंद्र सिंह पंवार, नीरज कुमार शुक्ला, नरेंद्र सिंह डोडिया, विनोद झालानी , कीर्ति शर्मा सहित सुधिजन मौजूद थे।

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