एक्शन में सुप्रीम कोर्ट : हाई कोर्ट जज की विवादित टिप्पणी पर सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट, जज ने लिखा था यह ‘ब्रेस्ट पकड़ना’ और पजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं

⚫ हाई कोर्ट जज के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
⚫ 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर बुधवार को हुई सुनवाई
⚫ सुप्रीम कोर्ट का कहना संवेदनशीलता की कमी नजर आई फैसले में
⚫ देश भर में हो रही थी टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रियाएं
हरमुद्दा
नई दिल्ली 26 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि ‘ब्रेस्ट पकड़ना’ और पजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश का स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में संवेदनशीलता की कमी दिखाई देती है।

जस्टिस भूषण आर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के आदेश को देखा है। हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैराग्राफ जैसे 24, 25 और 26 में जज द्वारा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है। ऐसा भी नहीं है कि फैसला जल्द में लिया गया है। इस मामले में सुनवाई पूरी होकर निर्णय रिजर्व होने के 4 महीने बाद निर्णय सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उसकी याचिका को भी इसके साथ ही जोड़ा जाए। उससे दोनों पर साथ सुनवाई आगे बढ़ेगी।
17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर बुधवार को हुई सुनवाई
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की कुछ टिप्पणियों पर रोक लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र, उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी करते हैं। कोर्ट ने कहा कि हम दो हफ्ते बाद मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे।
आखिर क्या फैसला सुनाया था इलाहाबाद कोर्ट ने
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़ित के ब्रेस्ट को पकड़ना, और पाजामे के नाड़े को तोड़ने के आरोप के चलते ही आरोपी के खिलाफ रेप की कोशिश का मामला नहीं बन जाता। फैसला देने वाले जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह कहा था कि इन आरोप के चलते यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो बनता है, लेकिन इसे रेप का प्रयास नहीं कह सकते।
महिला समाज के मुद्दे को समझा सुप्रीम कोर्ट ने
इस मुद्दे पर देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही थी मगर जज के आदेश पर कुछ भी टिप्पणी करना भी कोर्ट ऑफ कंटेंट की श्रेणी में आता है। कोर्ट ऑफ़ कंटेंट का मतलब है, अदालत की अवमानना या न्यायालय की अवहेलना। यह एक कानूनी अवधारणा है। अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध है और इसके लिए जुर्माना या जेल हो सकता है। इसलिए कोई भी खुलकर नहीं बोला। तीखी प्रतिक्रियाएं हुई मगर जबानी। इसीलिए महिला समाज के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने एक्शन लिया।