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जैविक खेती अपनाकर खेती की लागत कम की है किसान लोकेंद्रसिंह ने, ले रहे हैं अधिक उत्पादन

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हरमुद्दा
रतलाम, 11 नवंबर। रासायनिक उर्वरक तथा दवाइयों के दुष्परिणामों से रतलाम जिले के किसान भी अब भली-भांति अवगत हो रहे हैं। बड़ी संख्या में किसान जैविक खेती की ओर जा रहे हैं। जैविक खेती से जहां स्वाद के साथ-साथ शुद्ध एवं स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सब्जियां, अनाज व फल मिलते हैं, वही खेती की लागत भी कम हो जाती है। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर विकासखंड जावरा के किसान लोकेंद्रसिंह सोलंकी भी जैविक खेती की ओर अग्रसर हुए हैं। ग्राम उपलाई निवासी लोकेंद्रसिंह का गांव जावरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जैविक खेती की देन है अधिक उत्पादन

लोकेंद्रसिंह विगत 3 सालों से जैविक खेती कर रहे हैं और सोयाबीन, गेहूं, लहसुन, प्याज आदि का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। वह प्रति बीघा 5 क्विंटल सोयाबीन, 16 क्विंटल गेहूं, 20 से 25 क्विंटल लहसुन और 70 से 90 क्विंटल प्याज प्राप्त करते हैं। उनका कहना है कि अधिक उत्पादन जैविक खेती की देन है। मैं जब रासायनिक खाद का प्रयोग करता था तब मेरी कृषि भूमि की परत कठोर हो जाने के कारण 45 हॉर्स पावर ट्रैक्टर का उपयोग करना पड़ता था लेकिन आज जैविक खेती की बदौलत 25 हॉर्स पावर क्षमता के ट्रैक्टर से जमीन में हकाई हो जाती है। वे ट्राइकोडर्मा 1 किलोग्राम की मात्रा 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेतों में फैलाव कर देते हैं। नीम की पत्ती, धतूरा और छाछ का उपयोग कर कीटनाशकों को नियंत्रित करते हैं। चने में बीमारी के नियंत्रण के लिए हींग 1 ग्राम व 1 दिन पुरानी छाछ दोनों मिलाकर खेत में स्प्रे करते हैं।

खाद पर हो रही एक लाख रुपए की बचत

लोकेंद्रसिंह ने बताया कि पूर्व में उनके द्वारा खाद पर करीबन 80 हजार तथा कीटनाशकों पर 40 हजार रुपए वार्षिक खर्च किया जाता था लेकिन जैविक खेती के रूप में गोबर खाद, केंचुआ खाद का उपयोग करने से एक साल का खर्चा अब मात्र 20 हजार रुपए हो गया है। वास्तविक रूप से आज कम लागत और अधिक उत्पादन की ओर उनकी खेती अग्रसर हो गई है। उनका दूसरे सभी किसानों से भी यही कहना है कि जैविक खेती अपनाएं, खेती लाभ का धंधा बन जाएगी। साथ ही सेहत के लिए लाभदायक अनाज, फल, सब्जियां आप दूसरों को भी उपलब्ध कराएंगे।

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