क्या पानी बचाओ और नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं सिर्फ कोरे नारे है ….?
हरमुद्दा
रतलाम, 9 दिसंबर। क्या पानी बचाओ और नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं सिर्फ कोरे नारे है ….? कम से कम लोकेंद्र टाकीज चौराहे से शहर सराय तक के नागरिकों का तो यही मानना है ……पिछले 10 दिनों से सभी के नल बिना सूचना के काट दिए है। पिछले 5 साल में तीसरी बार ऐसा हो रहा है। पहले सीमेंट फुटपाथ बनाने वालों ने फिर सीवरेज वालो ने जेसीबी से खोद कर पाइप तहस नहस कर दिए।
मुद्दे की बात तो यह है कि सभी माननीयो के दखल के बाद जैसे तैसे जोड़े गए …….
व्यापार प्रभावित
अभी फिर पाइप लाइन डालने के नाम पर खोद दिए है …..10 दिनों से पानी सड़क और नाली में बह कर व्यर्थ जा रहा है और जल बचाओ अभियान को पलीता लगाया जा रहा है। दुकानदारों का व्यापार प्रभावित हो रहा है।
जनता जाए भाड़ में उनकी तरफ से
उनकी तरफ से नागरिकों को यह तक नहीं बताया जा रहा कि नल जोड़ेगा कौन और जब तक नई लाइन से नहीं जोड़ेंगे तब तक पानी कैसे मिलेगा ….. जनता जाए बेहद में।
मनमानी की तो हो रही हद
मूलभूत अधिकारों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन से महिलाएं एवं बच्चे सबसे ज्यादा परेशान है ….? क्योंकि उन्हें गंदी नाली के पास से पानी भरना पड़ रहा है ……
अभी तक तो किसी भी प्रिंट और टीवी मीडिया वालों का ध्यान इस न्यूज़ की ओर नहीं गया है। या फिर उन्हें ध्यान नहीं देना है। जबकि ये मुख्य सड़क है …..
कीचड़ में फिसलकर वाहन गिर रहे है और खुदी सड़क व गड्ढो के कारण यातायात भी बार-बार जाम लगकर बाधित हो रहा है ………?
पता नहीं जिम्मेदार कब जागेंगे ..…..
या फिर चक्का जाम या ज्ञापन का इंतजार कर रहे है …।
जागरूकों की कोई सुन नहीं रहा
विडंबना तो यह है कि शहरवासी भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है या फिर इनकी कोई सुन नहीं रहा है।नगर निगम आयुक्त और महापौर मक्कारी का तमगा हांसिल करने में लगे हुए हैं। उनकी तरफ से तो सालों से यही चल रहा है कि अपन अपनी मस्ती में, आग लगे रतलाम की बस्ती में। हमें कोई लेना देना नहीं। शहरवासी धूल खाएं। नालियों का गंदा पानी पीए। सड़क पर यातायात मेंं रेंगते हुए जहरीला धुआं खाते हुए हाथ पैर तुड़वा कर घर जाएं। जिम्मेदारों को कोई लेना देना नहीं है चाहे वह पार्षद हो इंजीनियर हो दरोगा हो सब के सब वरदहस्त प्राप्त है।
भरा हुआ है आक्रोश का लावा
क्षेत्र के दुकानदारों का भी कहना है कि ऐसे लापरवाह गैर जिम्मेदार आयुक्त और महापौर रतलाम की जनता ने आज तक नहीं देखे हैं। जनता ने यही सोचकर महापौर चुना था कि कुछ पढ़ी-लिखी महापौर मिलेगी, लेकिन यह तो सब्जी बेचने वाली से भी निकम्मी साबित हो रही है। शहर वासियों में आक्रोश का लावतो भरा पड़ा है।
चित्रों के माध्यम से बर्बादी का नजारा