भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त स्व. नरेश मेहता को भूलता जा रहा है शाजापुर

🔳 याद में होना चाहिए भव्य आयोजन

हरमुद्दा
शाजापुर, 17 दिसंबर। शाजापुर जिले में अनेक प्रख्यात कवियों, पत्रकारों एवं कलाकारों ने जन्म लिया है। इन्हीं की वजह से जिले को प्रदेश ही नहीं वरन् देश में ख्याति मिली है। पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन और नरेश मेहता शाजापुर की आन, बान और शान है। नवीन जी को तो हर साल याद कर लेते हैं लेकिन मेहता जी की साहित्य सेवा को विस्मृत सा कर दिया है यह साहित्य प्रेमियों के लिए अच्छा संकेत कतई नहीं कहा जा सकता।

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उनके लिए तो होते हैं आयोजन

पं.बालकृष्ण शर्मा नवीन सुप्रसिद्ध कवि एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका जन्म जिले की शुजालपुर तहसील के ग्राम भ्याना में हुआ था। उनकी स्मृति में मप्र साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा 8 दिसंबर को भ्याना स्थित नवीनजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं शुजालपुर में काव्यपाठ के आयोजन किए जाते हैं।

स्मृति में कोई स्मारक नहीं

साहित्य सेवक नरेश मेहता का जन्म भी शाजापुर नगर के भट्ट मोहल्ला में 15 फरवरी 1922 को शाजापुर में हुआ। नरेशजी सुप्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार, कथाकार एवं पत्रकार थे। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा पुरस्कृत किया गया। यह मेहता जी का सम्मान नहीं अपितु ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान था जो मेहता जी जैसे साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर के हाथों में गया। नरेशजी की वजह से भले ही शाजापुर नगर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हो, लेकिन उनकी स्मृति में शाजापुर नगर में ऐसा कोई स्मारक नहीं है और न ही कोई आयोजन नहीं होता।

होना चाहिए साहित्यिक आयोजन की शुरुआत

साहित्य अकादमी का कर्त्तव्य है कि नरेशजी की स्मृति में शाजापुर शहर में साहित्यिक कार्यक्रम करें। नगर पालिका परिषद द्वारा भी नरेश मेहता की याद में कोई कार्यक्रम नहीं किया जाना अत्यंत खेद एवं निराशाजनक है।

वरना दैदीप्यमान नक्षत्र साहित्यकाश से हो जाएंगे ओझल

शाजापुर के सुधीजन, साहित्य प्रेमी, समाजजन साहित्य संस्कार की संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, यह अच्छा संकेत नहीं है। साहित्य से सरोकार ही सक्रिय समाज की सतह है। सतह से ही सरोकार नहीं होगा तो फिर शाजापुर के दैदीप्यमान नक्षत्र साहित्यकाश से ओझल हो जाएंगे। इस दिशा में सामाजिक सक्रियता की शुरुआत जरूरी है।

विडंबना है की मांग पर नहीं दिया ध्यान

प्रगतिशील लेखक संघ की जिला इकाई के अध्यक्ष नरेंद्र गौड़ के माध्यम से विगत अनेक वर्षों से यह मांग उठाई जाती रही है। विडंबना ही है कि साहित्यिक पुरुष की के लिए की जा रही मांग पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है।

आधुनिक कविता को नई व्यंजना के साथ दिया नया आयाम

यशस्वी कवि नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में से हैं, जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आधुनिक कविता को नई व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार भी नवाजा गया है। साहित्य के सेवक 22 नवम्बर 2000 को इस जहान को अलविदा कह गए। 19 साल बीत गए लेकिन उनकी साहित्य साधना को याद करने के लिए युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए कोई भी आयोजन न होना साहित्य समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें दी श्री मेहता ने

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उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में पुरूष, कितना अकेला आकाश, अरण्या, उत्तरकथा, डूबते मस्तूल आदि प्रसिद्ध है। निश्चित रूप से नरेशजी की स्मृति में शाजापुर शहर में कोई भव्य आयोजन होना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी नरेशजी के व्यक्तित्व एवं रचनाओं से परिचित होकर प्रेरणा ग्रहण कर सके।

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