आसमान से नहीं टपकती कविता : निरुपमा मिश्रा
हरमुद्दा
शाजापुर, 18 दिसंबर। कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, गजल इत्यादि विधाओं की दुनियां में निरुपमा मिश्रा ‘नीरू’ एक उभरता हुआ नाम है। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले में रानापुर हैदरगढ़ एक छोटा सा कस्बा है। जहां निरूपमा बैसिक शिक्षा विभाग में प्रधान अध्यापक है।
हमारी उनसे उन्हीं के निवास स्थान पर मुलाकात हुई थी। निरुनपमाजी ने बताया कि उनकी रचनाएं अभी तक अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। उन्हें प्रत्येक विधा में दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
अंतर्मन की अनुभूति होती है कविताएं
इनका कहना है कि कविता अंतरमन की अनुभूति होती है और वह आसमान से नहीं टपकती। शैक्षणिक क्षेत्र में भी उन्होंने विशेष उपलब्धि अर्जित की है। “हरमुद्दा” को बताया कि लेखन की प्रेरणा पिताजी से मिली जो कि स्वयं भी गीत लिखते रहे हैं।
स्कूल के समय से ही रचनाओं का प्रकाशन प्रारंभ
रचनाओं का प्रकाशन अध्ययनकाल के दौरान स्कूल- कॉलेज की पत्रिकाओं में प्रारंभ हुआ था। जिनमें लेख और कविताओं का प्रकाशन हुआ। बाद में अनेक पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट आदि में रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं।
दोनों सुख एक साथ
इनकी शिक्षा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, रायबरेली और कानपुर जिले में हुई। इतिहास और अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर करने के बाद डाइट गनेशपुर बाराबंकी से बीटीसी की शिक्षा प्राप्त की। लगभग शादी और शासकीय सेवा दोनों साथ ही हुई। पहले शादी हुई और उसके कुछ समय बाद शासकीय सेवा में आई।
जीवन का अभिन्न हिस्सा है लेखन
साहित्य के पठन-पाठन और लेखन जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। सबसे ज्यादा रुचि साहित्य और कला के विभिन्न क्षेत्रों में ही रही है। जिसके लिए घर-गृहस्थी और नौकरी के बीच भी समय निकालना ज्यादा मुश्किल नहीं रहता है। सभी को समान रूप से समय देती हूं।
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प्रस्तुत है इनकी कविताएं
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(1) दो आँखें
यूँ तो जब मिलती हैं
दो आँखों से फिर कहीं
दो आँखें तो अचानक ही
आसमान नीला दिखाई
देने लगता है ,
धरती पर चारो तरफ
हरियाली ही हरियाली
फैल जाती है और रंग-बिरंगे
फूलों के बगीचे लहलहाने लगते हैं,
यही तो है असली जादू
दो जोड़ी आँखों का
वैसे तो आकाश हमेशा
सुनसान , वीरान नहीं होता
मगर जब तक एक दूजे से
नहीं टकराती निगाहें
तब तक तो न हवाओं में
तैरती खुशबू महसूस होती
और न तो आकाश में
चाँद-तारों की बारात नज़र आती
और तो और नदियों – झरनों
की आवाज में घुला संगीत
भी सुनाई नही देता
जब तक दो जोड़ी आँखों का जादू मन पर नहीं असर करता
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(2) एक कविता
स्याही से बहने लगते हैं धारे
कलम की आँखों से
एहसास के पन्नों पर
जमी हुई किसी घुटन में तरबतर
तभी लिखी जाती है एक कविता,
कई बार यूँ भी देखा जाता कि
बेहया से अर्थ समेटे
इठलाते हुए तर्कहीन
अपने ही शब्दों की पीठ थपथपाते हुए खुश दिखाई देते लिखने वाले ही,
ऐसे में कहीं कोई परिपक्व लेखनी मचल उठती
और फिर रचने लगती है
लिखावट की तस्वीर के
दूसरे पहलू के गौरतलब,
ओढ़ा देती है परिपक्व लेखनी
कागज़ के कैनवास पर
स्याही में लिपटी हुई
तहज़ीब की चादर
एक बार फिर से मुस्करा उठती है एक कविता,
बिखरे हुए जज़्बात तो कभी
पक्की जमीन के
अनुभवी सच के बीच उलझते
उभरती हुई सम्वेदना को
तहज़ीब की ऊंचाई के साथ छूना चाहती एक कविता
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