हरमुद्दा
उत्तर प्रदेश गाजीपुर जनपद की रहने वाले आनंद अमित साहित्य सेवा में सक्रिय हैं। इन्होंने अनेक क्षेत्रों में दायित्व का निर्वहन किया है। आनंद अमित के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। वही अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादकीय कार्य भी बखूबी निभाया है। साहित्य में सक्रिय भागीदारी व प्रेरणादायी रचनाओं के लिए अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया है।

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आज तक व दूरदर्शन आकाशवाणी से कविता पाठ का प्रसारण होता रहता है। दैनिक जागरण, यूथ एजेंडा, संचार वेग, साहित्य सम्पदा, प्रणाम पर्यटन, ट्रू मीडिया, संचार सारिका, तरुण मित्र, निष्पक्ष ज्योति आदि पत्र पत्रिकाओं में नियमित कविता, लेख और समीक्षा आदि का प्रकाशन होता रहता है।

प्रकाशित कृतिया आनंद अमित की

🔳 आनन्द रस (काव्य संग्रह)
🔳 नव काव्यांजलि (साँझा काव्य संग्रह)
🔳 कविता अनवरत 1 (साँझा काव्य संग्रह)
🔳दोहा कलश (साँझा दोहा संग्रह)
🔳 ग़ज़ल इक जिज्ञासा (साँझा ग़ज़ल संग्रह)
🔳 नायाब सखी संग्रह (साँझा काव्य संग्रह)
🔳 वर्तमान सृजन (साँझा काव्य संग्रह)
🔳 निराला सखी साहित्य संग्रह (साँझा संग्रह)
🔳 नवल सखी संग्रह (साँझा) इत्यादि
साहित्यिक पत्रिकाओं का किया संपादन

निराला सखी संग्रह (पद्य), निराला सखी संग्रह (गद्य), सखी सुधा (त्रैमासिक), नवल सखी काव्य संग्रह (साँझा), नवल सखी गद्य संग्रह (साँझा) का संपादन किया है। नायाब सखी साहित्य संग्रह के सह संपादक भी रहे। इसके अलावा भारतीय साहित्य उत्थान समिति (उ.प्र.) के प्रदेश प्रभारी एवं सखी साहित्य परिवार के राष्ट्रीय महासचिव भी है।

मिले हैं कई सम्मान

आनंद अमित जी को अब तक कई सम्मान मिल चुके हैं जिनमें प्रमुख रूप से साहित्य श्री 2018 – श्री भारतेन्दु हरिश्चन्द्र समिति, कोटा, राजस्थान, देश राज गहिले सम्मान- सरदार शोभा सिंह चित्रकार सोसाइटी, भटिण्डा, पंजाब, प्रीतोत्सव सम्मान – भारतीय साहित्य उत्थान समिति, साहित्य सोम – शैली साहित्यिक मंच, रोहतक, हरियाण, विशिष्ट साहित्य सम्मान- सखी साहित्य परिवार, गुवाहाटी, असम के अतिरिक्त अन्य कई और सम्मान मिले हैं।

आनंद अमित की कुछ रचनाएं

ऐसा दीप जलाना प्रिय तुम।

जो कलुषित विचार को हर ले।
ईर्ष्या, द्वेष, खार को हर ले।
झगड़े, युद्ध, रार को हर ले।
मन के अन्धकार को हर ले।
ऐसा दीप जलाना प्रिय तुम।

जो फैलाये सघन उजाला।
हो प्रकाश, सम-जीवन वाला।
कट जाए मुश्किल का जाला।
मिट जाए तम का घन काला।
ऐसा दीप जलाना प्रिय तुम।

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ग़ज़ल
ज़ुल्म, इल्लत, ग़म, ख़लिश ये, सब मिटा दो राम जी।
प्यार की जो रौशनी दे, लौ जला दो राम जी।

हो नहीं जिस राह पर उस, खौफ़ का नामो निशाँ।
राह ऐसा इस मुसाफिर को दिखा दो राम जी।

नींद आती ही नहीं है, जागता हूँ रात भर।
मेरी आँखों में ज़रा सी, नींद ला दो राम जी।

मिट गयी हैं बेवज़ह ही, सब लकीरें हाथ की।
मेरे माथे की शिकन को भी मिटा दो राम जी।

मत बताना तुम किसी को, राज़ जन्नत का कभी।
पर दीवाने इस अमित को, तो बता दो राम जी।

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होली

रंग घोल के
लोगों पर छिड़क देना,
गुलाल उड़ा देना ।
भगवान शिव के
चरणों में
भंग धतूरा पीसकर
चढ़ा देना।
निकल जाना
टोली बनाकर
मस्ती में
गीत गाते हुए,
मृदंग बजाते हुए।
बस याद रखना
प्रीत घुला हो,
रंग में…
भंग में..
गीत में,
और उस ढम- ढम बजते
मृदंग में।

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प्यारी गौरैया

वो अब नहीं दिखती,
अपनी नन्हीं चोंच से,
तिनका लाते हुए,
अपना घोंसला
बनाते हुए।
वो अब नहीं दिखती,
मेरे घर के आँगन में,
चहचहाते हुए।
चुल्लू भर पानी में,
फुदक-फुदक कर
नहाते हुए।
वो अब नहीं दिखती,
जमीन पे पड़े दानों पर
मंडराते हुए।
अपने प्यारे-प्यारे
बच्चों को
दाना चुगाते हुए।

वो अब नहीं दिखती,
यदि आपको दिख जाए,
कहीं भी भैया,
वो प्यारी गौरैया,
मेरी प्रार्थना है,
उसे अपने परिवार का
सदस्य बना लेना।
विलुप्त होती
प्यारी गौरैया को
बचा लेना।

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