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जानबूझकर छोड़े गए कार्यों को पूर्ण करने का बीड़ा उठा लिया देश की वर्तमान सरकार ने

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मित्रों , देश में जबसे 2019 का जनादेश प्राप्त सरकार बनी है, तभी से यह प्रतीत हो रहा है कि अतीत के अधूरे छुटे अथवा जानबूझकर छोड़े गए कार्यों को पूर्ण करने का बीड़ा वर्तमान सरकार ने उठा लिया है। यदि यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कांग्रेस द्वारा उत्पन्न और अवहेलना प्राप्त समस्याओं के निराकरण करने का प्रण वर्तमान सरकार ने कर लिया है।

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एक-एक करके 1200 से अधिक निर्रथक कानूनों को समाप्त करना , बांग्लादेश से लंबे समय से प्रतीक्षारत संधि कर कुछ ग्रामों और भूमि का आदान प्रदान करना, करतारपुर साहब की यात्रा, धारा 370 और 35 ए को जम्मू कश्मीर से समाप्त कर उस राज्य का भारत मे पूर्ण विलय करना, लद्दाख की वर्षों से की जा रही केंद्र शासित प्रदेश बनाने की माँग, राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण की न्यायालयीन प्रक्रिया को त्वरित गति से पूर्ण करने में सहयोग करना अर्थात शासन की ओर से कोई देरी अथवा अवरोध उत्पन्न नही करना, मुस्लिम महिलाओं को 1986 से प्रतीक्षित तीन तलाक को कानून बना कर समाप्त करना और अभी अभी नागरिकता संशोधन विधेयक लाकर नेहरू लियाकत समझौते की असफलता को दूर कर 1947 के पूर्व से प्रताड़ित और शोषित समुदाय को इस्लामिक साम्प्रदायिकता के चंगुल से मुक्त करने का कार्य करना। ऐसे अनेक बहुप्रतीक्षित एवं अंधी सुरंग में पड़े विषयों को चुन-चुन कर आने वाले भविष्य के लिए अतीत के इन काले दागों को समाप्त करने का समुचित कार्य वर्तमान सरकार द्वारा किया जाना प्रशंसनीय है।
इन समस्त कार्यों के पूर्ण होने के दौरान एक राजनीतिक घटनाक्रम भारतीय राजनीति के रंगमंच पर घटा। उसने इस देश के एक सड़न और बदबू मारते फोड़े के समान विषय को सदैव के लिए पटाक्षेप कर दिया वह विषय था धर्मनिरपेक्षता का। इस धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने देश मे कई सरकारों का निर्माण किया। कई सरकारों का विध्वंस किया। कई बार देश को अनावश्यक अरबों रुपए के चुनावों में धकेला और कई योग्य राजनीतिज्ञों को उनके योग्य पदों से वंचित किया। कई राजनीतिज्ञों का राजनैतिक जीवन समाप्त कर दिया और एक संपूर्ण युवा पीढ़ी को राष्ट्र के प्रति अलगाव के लिए प्रेरित किया। महाराष्ट्र में घटे घटनाक्रम में वर्तमान भाजपा नेतृत्व ने राजनैतिक कौशल से शिवसेना जैसी अराजक हिंदुत्व की घोर समर्थक। 1992 के बाबरी ढांचे के विध्वंस का उत्तरदायित्व लेने वाली राजनीतिक पार्टी को कांग्रेस के साथ मिलन कराकर सदैव के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धर्मनिरपेक्ष सरकार बनाने के समस्त द्वार बंद कर दिए। हिन्दू सम्प्रदायिकता को रोकने के लिए मुस्लिम साम्प्रदायिकता के सभी समर्थकों द्वारा धर्मनिरपेक्षता का ओढ़ा जाने वाला बुर्का अब छिन्न भिन्न हो गया। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि देश के प्रत्येक राजनीतिक दल, संगठन और व्यक्तियों को धर्मनिरपेक्ष और साम्प्रदायिक होने का प्रमाणपत्र जारी करने वाले धर्मनिरपेक्ष ब्राम्हण (अटलबिहारी वाजपेयी जी द्वारा घोषित) देखते रह गए और उनकी तो जीवनभर की अर्जित संपत्ति ही इस भूकंप में भूगर्भ में समा गई। भारत जैसे राष्ट्र में इस काल्पनिक और पश्चिम के राष्ट्रों द्वारा परिभाषित धर्मनिरपेक्ष शब्द को जिस तरह से दुरुपयोग किया जाकर भारत की मूल आत्मा और संस्कृति ” हिंदुत्व “को शासन व्यवस्था से दूर रखा गया। वह काल वर्तमान राष्ट्रवाद प्रेरित शासन ने समाप्त ही कर दिया। इस विषय की समाप्ति का श्रेय यदि किसी संगठन को जाता है तो वह भारतीय जनता पार्टी नहीं अपितु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके समविचारी संगठनों की तपस्या को जाता है , जिसने धैर्यपूर्वक निरंतर राष्ट्र के जनमानस में राष्ट्रवाद का बीजारोपण कर उसके पुष्पित, पल्लवित और विकसित होने तक विश्राम नहीं किया और आज ऐसा वातावरण और जनमानस , समाज निर्माण किया जिसके फलस्वरूप वर्तमान शासन देश के सबसे विकृत विषय धर्म निरपेक्षता को विसर्जित करने का साहस कर सका। अंत में आरिफ मोहम्मद खान जैसे इस्लामिक विद्वान को उधृत करते हुए कहा जा सकता है कि यह देश पंथनिरपेक्ष है ही इसलिए क्योंकि इसकी आत्मा हिंदुत्व है। इसलिए हिंदुत्व का विचार और संस्कृति सुरक्षित रहना इस देश के भविष्य के अति आवश्यक है।

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