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धार्मिक आस्था से परे नर्मदा के प्रति हम कितने गंभीर?

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आज नर्मदा जयंती पर विशेष

आज फिर पूरे भारत में नर्मदा जयंती मनाई जाएगी। नर्मदा के तट पर भक्तगण स्नान करेंगे, माँ की पूजा-अर्चना करेंगे और उसके पवित्र जल में अपने पापों को धो कर पुण्य का आह्वान करेंगे।कई भक्त नर्मदा की परिक्रमा करेंगे।

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🔳 कारुलाल जमड़ा, कवि एवं साहित्यकार

नर्मदा भारत की प्रमुख और पवित्र नदियों में से एक है लेकिन अमरकंटक से सागर मिलन तक की अपनी यात्रा में जगह-जगह स्थित तीर्थ स्थलों पर हर सुबह, हर त्यौहार और हर जयंती पर स्नान करने वाले भक्तगण क्या यह सोच पाए हैं कि जो पुण्य सलिला उनके पापों को नष्ट करती है,जिसके पवित्र जल का आचमन कर वे स्वयं को धन्य महसूस करते हैं, जिसके तीर्थं में अवगाहन कर अपना कल्याण करते हैं उस पुण्य सलिला की स्वयं की स्थिति कितनी दयनीय हो गई?

कई किनारों पर तो पानी आचमन लायक तक नहीं

अमरकंटक से लेकर सरदार सरोवर तक यदि बांधों के पानी को छोड़ दिया जाए तो निचले इलाकों में इस पुण्य सलिला की वास्तविक स्थिति क्या दर्शाती है? वह रेवा जो अनादि काल से निरंतर बहती रही है जिसमें पानी की धारा कभी बाधित नहीं हुई, वही रेवा गर्मी आते-आते जगह-जगह से रिक्त लगने लग जाती है और कई किनारों पर तो पानी आचमन लायक तक नहीं रहता। धार्मिक आस्था और विश्वास अपनी जगह पर सही है परंतु यह सोचना होगा कि अपने विभिन्न कार्यकलापों से मां को प्रदूषित करने वाले भक्तगण स्वयं कितने पाप के भागी होंगे ?

प्रदूषित करना जन्मसिद्ध अधिकार मानते

जगह-जगह से मांँ का आंचल मैला हो चुका है। विदेशों में जहाँ धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से नदियों का महत्व उतना नहीं है जितना कि हमारे देश में है, परंतु वहाँ पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ जल की उपलब्धता की दृष्टि से भी अपनी नदियों को साफ रखने के प्रति नागरिक प्रतिबद्ध है। पर हमारे यहाँ नदी में स्नान के साथ उसे प्रदूषित करना जैसे कि अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं हम।जनजागरुकता के सरकारी और गैर सरकारी समस्त प्रयास सिर्फ आम श्रद्धालुओं की लापरवाही के कारण विफल साबित होते नज़र आते हैं।

नर्मदा मैया के प्रति व्यवहारिक होने की जरुरत 

वस्तुत:चाहे रेवा के किनारे प्रतिदिन स्नान करने वाले लोग हो या पर्यटन के लिए बाहर से आने वाले,माँ नर्मदा के प्रति धार्मिक आस्था से परे उनमें उत्तरदायित्वबोध का सदैव अभाव प्रकट होता है। हमारी आस्था और व्यवहार के बीच में जब अंतर दिखाई दे तो इसे सिर्फ पाखंड का बोलबाला ही कहा जा सकता है|वैसे भी नर्मदा के सीने पर बनाये गये बांध उसके अविरल प्रवाह को लील गये है,उस पर फिर भक्तों की उदासीनता,उत्तरदायित्वहीनता यह संदेश देती है कि धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था से परे अब लोगों को नर्मदा मैया के प्रति व्यवहारिक होने की ज्यादा जरुरत है। केवल तभी नर्मदा अपने उद्गम से अंत तक स्वच्छ और अविरल रह पाएगी। इस नर्मदा जयंती पर मैया से कुछ मांगने की बजाय उसके प्रति अपनी कृतज्ञता
प्रकट करें जो उसके संरक्षण के प्रति केवल व्यवहारिक बदलाव से ही संभव है।

 

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