फास्टैग : टोल प्लाज़ा या सड़क पर महाजनी व्यवस्था ?
🔲 हरमुद्दा के लिए शशिभूषण
राष्ट्रीय राजमार्ग पर बने डिजिटल टोल प्लाज़ा में टोल टैक्स अधिक है। इनमें एकरूपता नहीं है। किसी टोल प्लाज़ा में रेट कम भी हैं। वसूली और राहत टोल मैनेजर, विंडो पर्सन के मन पर आधारित हैं। फास्टैग को प्रोत्साहित करने के लिए नगद भुगतान की खिड़की एक रखी गयी हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग भारी हल्के वाहनों की आवाजाही से अति व्यस्त होते हैं। टोल टैक्स की गणना दूरी के अनुसार नहीं की जाती। एक किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलकर भी पूरा टोल टैक्स देना पड़ सकता है। यह वैसा ही है कि एक चुटकी नमक भी एक किलोग्राम नमक के रेट पर मिले।
दरें केवल पॉलिसी रजिस्टर में ही दर्ज़
टोल टैक्स के लिए सड़क पर वाहनों के अनुसार प्रति किलोमीटर की दरें नियत हैं। ये नियत दरें केवल पॉलिसी रजिस्टर में ही दर्ज़ रह जाती हैं। फास्टैग नया है फिर भी नगद भुगतान को असंभव कर दिया गया। फास्टैग रिचार्ज के लिए भी कुछ ही बैंक मान्य हैं। इसका रिचार्ज प्रीपेड है।
फास्टैग यानी यात्रा से पूर्व ही टोल टैक्स का पूरा भुगतान
फास्टैग का नगद प्रीपेड रिचार्ज टोल प्लाज़ा पर ही होता है। टोल प्लाज़ा के दफ्तर में इस रिचार्ज की समयावधि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक है। बिना रिचार्ज वाले वाहन सुबह 10 बजे के पहले और शाम 6 बजे के बाद नगद भुगतान द्वारा ही गुज़र सकते हैं। शौक़िया गाड़ी रखने वालों के लिए, कभी कभार यात्रा करने वालों के लिए फास्टैग खर्चीला है। फास्टैग यानी यात्रा से पूर्व ही टोल टैक्स का पूरा भुगतान।
जमा धन पर ब्याज भी नहीं
फास्टैग में रिफण्ड केवल जमा धन का ही होगा। इस एकाउंट में जमा धन पर न कोई ब्याज है न नॉमिनी की व्यवस्था। दुर्घटना आदि की दशा में गाड़ियों के रीसेल पर फास्टैग की राशि का क्या होगा ? किसी को नहीं मालूम।राष्ट्रीय राज मार्ग पर डिजिटल टोल प्लाज़ा इस बात की मुनादी हैं कि नयी सड़क सर्वोपरि है। उस पर चलने का पूरा कर पहले चुकाना होगा। सड़क बनाने वाली कंपनी सरकार के लिए सड़क उधार बनाती है। मगर नागरिकों से कर अग्रिम वसूलती है। यह विचित्र है कि सरकार से उधार चलेगा मगर नागरिकों से पेशगी लिया जाएगा। फास्टैग यह सोचने पर विवश करता है कि सड़क निर्माता कंपनी और सरकार एक ही हैं। ग़ैर या परायी बेचारी जनता है। कहना चाहिए टोल प्लाज़ा अपना सारा ख़र्च फास्टैग में जमा अग्रिम धनराशि के ब्याज से निकाल सकते हैं। रेलवे में सीट आरक्षण की तरह यह सड़क यात्रा आरक्षण व्यवस्था खामियों से भरी है।
फास्टैग यानी सड़क सुविधा वसूली की साहूकार प्रणाली
फास्टैग को डिजिटल होने के कारण संचार माध्यमों में वही यश मिल रहा है जो कैशलेस इकोनॉमी को मिला। लेकिन इसके फल नोटबन्दी की तरह सवालों से भरे है। कभी कभी ठग लेने वाले।
आकस्मिक यात्रा करने वालों के लिए फास्टैग एक अड़चन
तर्क दिया जाता है कि अच्छी सड़क का इस्तेमाल करना है तो टोल टैक्स देने में हर्ज़ क्यों ? लेकिन सवाल उठता है कि नागरिक हक़ के मानकों की उपेक्षा कर लिया जाने वाला टोल टैक्स अग्रिम क्यों ? क्या खिड़की पर डिजिटल भुगतान असम्भव है ? क्या टोल खिड़की पर डिजिटल भुगतान खिड़की के मानव रहित बना देने से भी मुश्किल है ? अच्छी सड़कों का उपयोग व उचित टोल टैक्स का भुगतान प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। सड़क निर्माता कंपनियां लोक कल्याणकारी राज्य में साहूकारों की भांति वसूली कैसे कर सकती हैं ? नगद भुगतान वाली खिड़की केवल एक रखना जाम की स्थिति पैदा करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिन्हें पूरा टोल चुकाना है फास्टैग न होने के कारण जाम और विलम्ब झेलना अन्याय है। आकस्मिक यात्रा करने वालों के लिए फास्टैग एक अड़चन है। इसे हमेशा रिचार्ज करके रखना धन फंसा कर रखना है। बीमार को अचानक अस्पताल ले जाना फास्टैग की रुलाई से भर जाता है। लोकल पास के लिए टोल प्लाज़ा पर उस टोल एरिया के 20 किलोमीटर क्षेत्र का आधार कार्ड होना चाहिए। यह अनिवार्यता केंद्रीय कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त बोझ है। वे क्षेत्र का प्रोफेशनल टैक्स भी भरें और टोल प्लाज़ा पर अतिरिक्त भुगतान भी करें। टोल प्लाज़ा कंपनियों के मुनाफ़ाखोर अड्डे हैं। यह देश के चाहे जिस हिस्से में हों, हमेशा भुगतान वसूली संबंधी विवाद में रहते हैं।
नियमानुसार मुफ़्त मिलना चाहिए फास्टैग
नियमानुसार फास्टैग मुफ़्त मिलना चाहिए मगर यह कंपनियों द्वारा बिना बिल के दुगुने तिगुने दाम पर बिकता है। फास्टैग बेचने वाले इतने हैं कि कहां से खरीदें सोचना पड़ता है। फास्टैग से कभी कभी तब भी प्रीपेड राशि कटती है, जब गाड़ी किसी दूसरे रूट में चले या घर में खड़ी हो। यदि कोई वाहन चालक फास्टैग न होने पर ग़लती से फास्टैग लेन में चला जाए तो उसे दुगुना टोल देना होगा। यह सड़क पर तत्काल मनमानी दंड व्यवस्था है जिसके लिए सुधारात्मक उपाय अपनाए जा सकते है।
सड़क निर्माता कंपनी से अधिक नागरिकों पर रहम दिल रहे सरकार
ज़्यादातर टोल प्लाज़ा पर फास्टैग रीड नहीं हो पाता। टोल खिड़की कहने को मानव रहित होती है। वहां फास्टैग स्कैन करने वाले की उपस्थिति अनिवार्य होती है।
बेहतर होगा कि टोल कंपनियां ऐसे नियम व्यवस्था बनाए, जिससे नागरिक न तो शोषण न ही परेशानी में पड़ें। सरकार को चाहिए की वह सड़क निर्माता कंपनी से अधिक अपने नागरिकों पर रहम दिल रहे।