रतलाम ग्रामीण में बड़ी संख्या में किसान कर रहे हैं जैविक खेती

🔲 फन-ए-रतलाम में प्रदर्शित किए किसानों ने अपने जैविक उत्पाद

हरमुद्दा
रतलाम 17 फरवरी। प्रदेश में अधिकाधिक जैविक खेती के प्रसार की मंशा में रतलाम जिले के किसान भी सहभागी बनते जा रहे हैं। जिले में जैविक खेती का दायरा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। रतलाम-ग्रामीण तहसील क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इन गांवों में जैविक खेती का सिलसिला करीब 3 साल पहले शुरू हुआ है। रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को समझते हुए किसान अपनी शत-प्रतिशत भूमि को जैविक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अंबोदिया व बिलपांक सहित इसके आसपास 16 गांवों का ऐसा जय गौमाता जैविक समूह है, जहां के 380 किसान जैविक खेती से जुड़ गए है।

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जिले के कृषि तथा उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन प्रयासों तथा किसानों की समझदारी से 50 किसान अपनी शत-प्रतिशत भूमि में जैविक खेती कर रहे है।
क्षेत्र के ग्राम अम्बोदिया के अनोखीलाल चौधरी, जगदीश पाटीदार, ढीकवा के हीरालाल चौधरी, बिलपांक के विक्रम पाटीदार, जड़वासा के वीरेंद्र पाटीदार अपने जैविक उत्पादों के प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए आए थे, जहां इनके द्वारा उत्पादित जैविक सब्जियां जैसे भिंडी,, टमाटर, गिलकी, गोभी, दालों में मूंग, उड़द, तुवर तथा फलों में अमरूद जैसे जैविक उत्पाद प्रदर्शित किए गए थे। आमजन द्वारा भी किसानों द्वारा रखे गए जैविक उत्पादों के प्रति रुचि देखी गई। बड़ी संख्या में रतलाम के नागरिकों ने किसानों से उनके मोबाइल नंबर लिए, उनके जैविक उत्पादों के बारे में विस्तृत जानकारी भी प्राप्त की।

3 साल पहले हुई थी जैविक खेती की पहल

अम्बोदिया के दसवीं कक्षा उत्तीर्ण किसान अनोखीलाल चौधरी ने बताया कि हमारे क्षेत्र में लगभग 3 साल पहले जैविक खेती की पहल की गई है। बिलपांक के जागरूक किसान विक्रम पाटीदार लगभग 8 साल से जैविक खेती कर रहे हैं, उनसे प्रेरणा लेते हुए अनोखीलाल चौधरी ने भी जैविक खेती 3 साल पहले आरंभ की है। उनके पास 90 बीघा जमीन है जिसमें 10 बीघा जमीन पर पूर्ण रूप से जैविक खेती की जा रही है। अनोखीलाल अपने खेतों में सोयाबीन, मक्का, उड़द, मूंग, तुवर, गेहूं, चने के अलावा फलों में अमरुद और पपीता जैविक रूप से उत्पादित कर रहे हैं। अनोखीलाल चौधरी ने बताया कि उनके क्षेत्र में जैविक का रकबा बढ़ता जा रहा है। अब किसान रासायनिक खेती के दुष्परिणाम और जैविक खेती के लॉन्ग टर्म फायदों को समझ रहा है। इसमें इन किसानों की युवा पीढ़ी का भी बड़ा हाथ है।

धीरे-धीरे जुड़ गए कई गांव के किसान

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अम्बोदिया के किसान जगदीश पाटीदार तो पिछले 3 सालों से अपने खेतों में रासायनिक उर्वरकों और पेस्टी साइड का बिल्कुल भी उपयोग नहीं कर रहे हैं। वह घर पर ही पेड़, पौधों की पत्तियों, गोमूत्र इत्यादि का उपयोग कर पेस्टिसाइड बनाते हैं। खाद के लिए वर्मी कंपोस्ट और बायोगैस से निकली खाद का उपयोग करते हैं। जगदीश पाटीदार के पास 5 हेक्टेयर कृषि भूमि है, वह शत-प्रतिशत भूमि में जैविक लहसुन, प्याज, गेहूं आदि का उत्पादन कर रहे हैं। जगदीश पाटीदार ने बताया कि रतलाम ग्रामीण क्षेत्र के क्लस्टर में 50 किसान ऐसे हैं जो अपनी 100 प्रतिशत भूमि में जैविक खेती ही कर रहे हैं, बाकी किसान थोड़ी-थोड़ी भूमि में जैविक खेती कर रहे हैं। क्षेत्र में जैविक कृषकों की सूची लंबी है, इनमें बिलपांक के अशोक पाटीदार, बदनारा के संदीप पाटीदार, कुंदन पाटीदार भी शामिल है। चिकली, प्रीतम नगर, पीपलोदी, पीपलखूंटा, भाटी बडोदिया, बदनारा जैसे कई गांव है जो जैविक खेती से जुड़ चुके हैं और यह श्रंखला लंबी होती जा रही है।

आत्मा परियोजना से जुड़े हुए किसान

क्षेत्र के जैविक कृषक अपने खेतों में खाद के लिए वर्मी कंपोस्ट तथा बायोगैस से निकली खाद का
उपयोग करते हैं। लगभग हर किसान के खेत में वर्मी कंपोस्ट और बायोगैस प्लांट लगे हुए हैं। नीम, धतूरा, जामफल, बेशर्म तथा अन्य व पेड़ पौधे जो जानवर नहीं खाते हैं और कड़वाहट लिए होते हैं, उन पौधों की पत्तियों से जैविक पेस्टिसाइड बनाया जाता है। लगभग सभी किसान कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से जुड़े हुए हैं। अधिकतर किसानों को जैविक खेती के संदर्भ में सी-1 प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जा चुका है जो यह इंगित करता है कि उनके द्वारा जैविक खेती करते हुए एक वर्ष हो चुका है। शीघ्र ही क्षेत्र के किसानों को सी-2 तथा सी-3 प्रमाण पत्र आत्मा परियोजना के माध्यम से राज्य शासन द्वारा मिलने वाले हैं।

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