जब भक्तों ने सड़क पर बैठ कर सुने गुरु वचन
🔲 प्रतिष्ठाचार्य श्री नरदेव सागर सूरीश्वरजी ने बीच सड़क पर दिए प्रवचन
🔲 डेढ़ घंटे तक धैर्यपूर्वक सुनते रहे गुरु भक्त
हरमुद्दा
राजगढ़, 2 मार्च। अमूमन जैन समाज व अन्य समाजों में होने वाले प्रवचन किसी मंदिर या आराधना भवन में होते हैं, जहां गुरु भक्त गुरुवाणी का रसपान कर सके लेकिन नगर में कुछ अनूठा हुआ। भोपावर महातीर्थ के प्रतिष्ठाचार्य श्री नरदेव सागर सूरीष्वरजी ने नगर के अतिव्यस्ततम चबूतरा मार्ग पर बीच सड़क पर ही प्रवचन दिए। हर गुरु भक्त और यहां तक कि सड़क से गुजरने वाले भी गुरुदेव को करीब डेढ़ घंटे तक धैर्य के साथ सुनते रहे।
अवसर था नगर में स्वर्गीय जासीबाई जैन के आत्मश्रेयार्थ तीन दिवसीय जीनेंद्र भक्ति महोत्सव का। यह महोत्सव अमृतलाल धन्नालाल जैन तम्बाखूवाला परिवार द्वारा किया गया था। इसी अवसर पर आयोजकों द्वारा प्रभु को मंदिर से अस्थायी रूप से एक दिन के लिए अपने निवास पर लाया गया। इसके बाद निवास पर ही आचार्य भगवंतों के प्रवचन हुए। यहां कई गुरु भक्त सड़क पर ही बैठ गए। आचार्यश्री के लिए बाकायदा पाट की व्यवस्था की गई।
‘नवकार मंत्र की महिमा अपरमपरा है…‘
प्रतिष्ठाचार्यश्री ने जैन धर्म की व्याख्या करते हुए कहा नवकार महामंत्र की महिमा अपार है। इसके जाप करने से अनेक कर्मों की निर्जरा होती है। जो व्यक्ति अपने जीवन में नौ लाख नवकार मंत्र का जाप कर लेता है वह नरक गति से मुक्त हो जाता है। साथ ही नवकार के जाप से नारकीय पाप खत्म हो जाते हैं। आचार्यश्री ने नवकार पद की महिमा का विस्तारपूर्वक महत्व समझाया। आचार्यश्री की प्रेरणा से 108 भाग्यशालियों ने अपने जीवन में नौ लाख नवकार मंत्र के जाप करने का संकल्प लिया।
प्रतिष्ठा होने तक नगर में हर रोज होगा आयंबिल तप
प्रतिष्ठाचार्यश्री ने नगर के आदेश्वर जैन मंदिर के जीर्णोद्धार की चर्चा करते हुए कहा कि मंदिर के लिए शिलान्यास समारोह हो चुका है। जब तक प्रतिष्ठा संपन्न ना हो, तब तक श्रीसंघ में प्रतिदिन एक आयंबिल तप की आराधना होना चाहिए। आयंबिल तप अत्यंत मंगलमय एवं प्रभावशाली होती है। आचार्यश्री की प्रेरणा से नगर में अखंड आयंबिल तप की आराधना प्रारंभ हो गई। इसके लिए एक विशिष्ट कलश की स्थापना की गई, प्रतिदिन आयंबिल करने वाले आराधक अपने यहां इस कलश को ले जाकर स्थापित करेंगे व जाप करेंगे।
‘तप ही होगी सच्ची श्रद्धांजलि‘
सभा को संबोधित करते हुए वागड़ नरेश आचार्यश्री मृदुरत्न सागर सूरीश्वरजी मसा ने स्वर्गीय जासीबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जासीबाई ने अपने जीवन में अनेक प्रकार के तपों की आराधना की थी। वे प्रतिदिन प्रवचनों का भी श्रवण करती थीं। उनके तप आराधना की अनुमोदना करते हुए आचार्यश्री ने परिवारजनों से आग्रह किया कि वे भी जासीबेन की ही तरह अपने जीवन में तपों की आराधना करे। यहीं जासीबाई को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
3 मार्च को होगी भावयात्रा
प्रतिष्ठाचार्यश्री ने जैन धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ पालीताणा स्थित शत्रुंजय गिरीराज का स्मरण करते हुए कहा कि भगवान आदिनाथ ने फागुनसुदी अष्टमी को अनेकों बार गिरीराजजी की यात्रा की थी इसलिए हमें भी अपने जीवन में फागुनसुदी अष्टमी को यह यात्रा करना चाहिए। यदि इसकी अनुकूलता ना हो तो कम से कम गिरीराजजी की भाव यात्रा तो करना ही चाहिए। इसी सिलसिले में 3 मार्च मंगलवार को नगर में आचार्यश्री मृदुरत्न सागर सूरीश्वरजी की निश्रा में गिरीराज की भावयात्रा निकाली जाएगी। समापन पर भाते की व्यवस्था भी होगी।
उज्जैन में होगा प्रतिष्ठाचार्य का चातुर्मास
प्रतिष्ठाचार्य श्री नरदेव सागर सूरीश्वरजी ने दोपहर राजगढ़ से विहार किया। वे राजोद, बदनावर होते हुए उज्जैन पहुंचेंगे। उज्जैन में ही आचार्यश्री की निश्रा में नौ दिवसीय शाश्वत नवपद ओलीजी की आराधना होगी। आचार्यश्री के साथ चल रहे मुनिश्री पद्मकीर्ति सागरजी ने बताया कि मालवाक्षेत्र से जो भी आराधक इस ओली की तप आराधना में भाग लेना चाहते हैं वे उज्जैन के खाराकुंआ स्थित पेढ़ी कार्यालय पर निःशुल्क पंजीयन करा सकते हैं। गौरतलब है कि प्रतिष्ठाचार्यश्री का आगामी चातुर्मास भी उज्जैन के खाराकुंआ में ही होगा।