कविताएं होंगी मुसीबत में हमारे साथ : विनीता जोशी
🔲 नरेंद्र गौड़
शाजापुर। उत्तराखंड की कवयित्रियों में विनीता जोशी का जाना पहचाना नाम है। इनकी कविताओं में अपने अंचल की संघन प्रकृति, सौन्दर्य, वृक्षों से आच्छादित घने जंगल और पहाड़ी क्षेत्र के कठिन जनजीवन के अनेक चित्र देखे जा सकते हैं।
पहाड़ी महिलाएं कठिन परिश्रम के बावजूद अपनी लोक परम्परा को कायम रखते हुए मुस्कुराते जीवन बिताती हैं। अनेकानेक कारणों की वजह से इस प्रदेश का विकास जितना होना चाहिए था उतना नहीं हुआ। यहां के लोगों की आय का मुख्य जरिया पर्यटन है। इसीलिए उत्तराखंड के प्रमुख शहरों को बर्फबारी का बेसब्री से इंतजार रहता है।
अलमोड़ा निवासी विनीता की माता श्रीमती चंद्रा जोशी एवं पिता स्व.ललित मोहन जोशी भी गहरी साहित्यिक अभिरूचि के व्यक्ति रहे हैं।
चिड़ियों की उड़ान में शामिल
देश के जाने-माने कवि नरेश सक्सेना ने विनीता की कविताओं को पढ़कर लिखा है ‘जैसे चिड़ियों की उड़ान में, शामिल होते हैं पेड़, क्या कविताएं होगी मुसीबत में हमारे साथ‘ नरेश जी ने विनीता के पहले कविता संकलन ‘चिड़िया चुगलो आसमान‘ को काफी पसंद किया है। इनकी कविताओं में पहाड़ी जीवन से लोगों का पलायन, पशु पक्षी, प्रकृति, फूल, हरियाली, बच्चे, युवा, बुढ़े सभी कुछ अपनी संघर्ष यात्रा के साथ रचे बसे हैं। वन महकमे के अफसरों की करतूतों की वजह से उत्तराखंड के पहाड़ लगातार खलवाट होते जा रहे हैं। वृक्षों के उजड़ने की वजह से पहाड़ों का नंगापन झलकने लगा है। यही दर्द विनीता की कविता में कई जगह मुखरित हुआ है। इनकी कविता की भाषा सहज और सरल है। जिनमें आंचलिक शब्दों का बड़ी आत्मीयता के साथ इस्तेमाल किया गया है। निश्चित रूप से यह शब्द विनीता की कविता को लयकारी बनाते हैं।
हुई सम्मानित अनेक पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित
विनीता जोशी ने एमए, बीएड तक शिक्षा प्राप्त की है। इनकी कविताएं कादम्बिनी, वागर्थ, पाखी, गुंजन, जनसत्ता, अमर उजाला, दैनिक जागरण, सहारा समय, शब्द सरोकार आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। इन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएं और लघु कथाएं लिखी है। इन्हें बाल साहित्य के लिए खतिमा में सम्मानित किया जा चुका है। अलमोड़ा के तिवारी खोला, पूर्वी पोखर खाली में निवासरत विनीता जी लगातार काव्य रचना में संलग्न हैं।
प्रस्तुत हैं इनकी चुनिंदा कविताएं –
दहेज मैं दूंगी तुझे
गांव के पुराने घर के चैखट में बने
चिड़ियों के घौसलों में आज भी
चहचहाती होंगी चिड़िया
चिड़िया तिनके बिखरा देती होंगी
सीढ़ियों पर घोसला बुहारते हुए
बचपन में मां कहती थी
दहेज मैं दूंगी तुझे
ये सारी चिड़िया
तब मैं सच मान लेती थी
सोचती थी मुझे तड़के उठा देंगी
दाल चांवल बीन देंगी
ये चिड़ियाएं
मगर सपना बनकर रह गई ये बातें
आज आदमियों के जंगल में
दिखाई नहीं देती कोई चिड़िया
क्या सोचेगी मां
अगर कहूं कि मां तुमने
क्यों नहीं दी चिड़िया मुझे दहेज में।
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मां जब तक रहेगी
मां
जब तक रहेगी
छोटी-छोटी क्यारियों में महकेगा
धनिया पुदीना
खेतों की मेड़ों पर
खिलेंगे गेंदे के फूल
आंगन में दाना चुगने आएंगी
नन्ही गौरैया
देहरी पर सजी रहेगी रांगोली
कोठड़ी में
खेलेंगे भूरी बिल्ली के बच्चे
रंभाएगी बूढ़ी गाय
छत पर सूखेगी कबूतरों सी सफेद साड़ियां
मां
जब तक रहेगी
बेटियों को मिलता रहेगा
प्रेम का नेग
तेरे बाद जैसे
दुनिया ही खत्म हो जाएगी
मां मेरे लिए।
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रोटियां
एक औरत जिंदगी भर
अपने चुल्हें में सेंकती हैं
न जाने कितनी रोटियां
धरती से बड़ी
आकाश से चैड़ी
धूप सी गरम
सूरज सी चमकती रोटियां
ममता से सनी
प्रार्थनाओं से भरी
प्रेम से चुपड़ी रोटियां
तृप्ति देकर यथार्थ को
खुशी देकर स्वप्न को
घर की नींव
बन जाती रोटियां।
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औरतें
बकरियों सी
पाली जाती हैं औरतें
औरतें भूख मिटाने
रिश्तों के झुंड में
चुपचाप चलने
प्रेत भगाने
देवता रिझाने के लिए
घर में मन्नतें
पूरी करने को हमेशा
औरतें ही खोती हैं
अपना वजूद हर बार।