विवेक को नष्ट करती है अनास्था
त्रिभुवनेश भारद्वाज
अनास्था विवेक नष्ट कर देती है। दुनिया में प्राक्रतिक आपदाओं से उतने लोग नष्ट नहीं हुए है जितने अपने ही अहंकार से काल कलवित हुए हैं। यक्ष्य प्रश्न भी यही है………..कौन इससे बच पाया है ?
योगी ,मुनि, यति और ध्यानी सभी इसी व्यथा विकृति से ग्रस्त हैं। इलाहाबाद का कुम्भ मेला त्यागियों के माया मोह का जीता जागता उदाहरण है। जहाँ बड़े-बड़े टेंटों और कनातों में बिखरा हैं त्याग का एश्वर्य। जिसने खोया हैं उसने हजार गुना पाया है और जिसने कुछ भी नहीं खोया उसने बेशुमार पाया है। सब माया है जो एक न एक दिन छोड़ना ही पड़ेगी। फिर क्यों इसमें लिप्त होकर मस्त हो रहा है नादान।
माया तेरा कल्याण नहीं करेगी ……………ये तो हमारा कल्याण करेगी …….हमारा। सिद्धों हैं तो आसपास गिद्ध भी हैं। धर्मं पताका को ऊँचा करने वाले अनंत समर्थ अवधूत भी हैं तो इनकी आड़ में जेब झाड़ने वाले कपटी भी स्वछंद विचरण कर रहें है।
इलाहाबाद में पापों से एक डुबकी में छुटकारा पानेवाले अंध भक्त समुदाय भी हैं। तो इनके छोड़े पापों को ग्रहण करके अपनी बना लेने वाले लम्पट भी हैं और विस्मय नहीं होना चाहिए। क्योंकि इन्ही के बीच में मुस्कुराता ……इठलाता …………अदृश्य निराकार अपना अस्तित्व नाप रहा हैं ………………..मोहे कहा ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में ……………..