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यदि समाजोन्मुख नहीं हुई रचनाएं तो उनका लिखा जाना व्यर्थ : संतोष कुमारी

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🔲 नरेंद्र गौड़

गीत गजल के क्षेत्र में संतोष कुमारी का नाम जाना पहचाना है। हरियाणा में जन्मी और पली बढ़ी, लेकिन बाद में इन्होंने अपनी कर्मभूमि दिल्ली को बना लिया। कविता लेखन के साथ ही गीत, गायन और नृत्य के क्षेत्र में भी आप खासा दखल रखती है। एमए, एमफिल और बीएड तक शिक्षा प्राप्त संतोष कुमारी नई दिल्ली के टीजीटी माडर्न कान्वेंट स्कूल में शिक्षक हैं। आपका मानना है कि जब तक रचनाएं समाजोन्मुख एवं जनकल्याण के लिए नहीं लिखी जाती, तब तक ऐसा लेखन कार्य व्यर्थ है।

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अनेक पत्र-पत्रिकाओं में होती रहती है प्रकाशित रचनाएं

आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। जिनमें उल्लेखनीय है उदय प्रकाश, ज्ञान सवेरा साया एवं द्वारका रामलीला पत्रिका में अनेक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। आपके साझा संकलन अनुवृत, मधुसम्बोध, कहानी एवं काव्य संकलन, हिन्दी विकास मंच, साया पत्रिका में कई कविताएं छप चुकी है। आपको अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। आपके एकल काव्य संकलन भी छपे हैं, जिनमें सफर जिंदगी का तथा मेरी काव्य यात्रा महत्वपूर्ण है। अभी तक आपकी 500 से अधिक कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

अनेक पुरस्कारों से सम्मानित

आपको राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार, महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा विकास परिषद, अभिनय उत्कृष्टता, अतिउत्तम पुरस्कार, भाषा गौरव शिक्षक पुरस्कार के अलावा हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी एवं हिन्दी अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत किया जा चुका है। आपको महादेवी वर्मा कविता गौरव स्वाभिमान सम्मान एवं साधक साहित्य रथी सम्मान भी मिल चुका है। आप शैक्षणिक कार्य के अलावा अनेक सामाजिक गतिविधियों में भी संलग्न है। आप संप्रीति उपनाम से रचनाएं लिखती हैं।

यहां प्रस्तुत है संतोष कुमारी की
कुछ चुनिंदा रचनाएं

रुकावट/बाधा/ ठहराव

जीवन-पथ पर बस मुस्कुराते चलो
बाधाओं को हौंसलों से हराते चलो
दौर कठिनाइयों का सदा ना रहेगा
साथ धैर्य का तुम यूँ निभाते चलो।

इरादा पर्वत- सा उच्च, अटल रहे
मंज़िल से पहले ना कोई स्थल रहे
जुनून इस क़दर मन में रखना होगा
पुण्य आत्मा पर न कोई बोझ रहे।

असफलता चुनौती स्वीकार करो
कारण, निवारण पर विचार करो
नए सिरे से करो एक नई शुरुआत
सफलता के संग तुम दीदार करो।

नदियाँ,झरने-इनको ग़ौर से देखो
पत्थरों से निसदिन टकराना देखो
पूरे वेग से ये बहते ही चले जाते हैं
मंजिल मात्र इनका ठहराव देखो।

जिसने बाधाओं से हार नहीं मानी
अपने पथ पर ही चलने की ठानी
समाज साक्षी रहा है उन वीरों का
बाधा हरा जिन्होने लिखी कहानी।

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मैंने होली खेली

मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ, आज मैंने होली खेली।
रंगों से और निखरा
यह रूप रंग मेरा
मेरी अभिव्यक्ति के
नए अंदाज़ की होली।
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ, आज मैंने होली खेली।
मैंने ,निज भावों को
विभिन्न रंगों में रंग दिया
रंगोत्सव की खुशियाँ को
शब्दों की मंजूषा बना दिया
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ,आज मैंने होली खेली
लाल रंग लगाया मैंने
अपने जीवन साथी के नाम का
गुलाबी रंग लगाया मैंने
खिलखिलाती ज़िदगी के नाम का
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ,आज मैंने होली खेली।
हरा रंग लगाया मैंने
सुख-समृद्घि के नाम का
पीला रंग लगाया मैंने
जीवन के रीति रिवाज़ों के नाम का
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ,आज मैंने होली खेली।
सफ़ेद रंग लगाया मैंने
सांप्रदायिक सौहार्द के नाम का
नीला रंग लगाया मैंने
उच्च लक्ष्य के नाम का
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ,आज मैंने होली खेली।
रंग काला लगाया मैंने
नैराश्य विदाई के नाम का
इंद्रधनुषी रंग लगाया मैंने
सुखद भविष्य के नाम का
मैं रंगों से सरोबार हूँ
हाँ,आज मैंने होली खेली।

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महिला/ नारी

आज
फिर तुमने
मेरा दिल दुखाया है
अपनी
पुरुषवादी सोच को
सिर पर बिठाया है।
क्यों
बार – बार
मुझे लताड़ते हो
क्यों
बार – बार
मेरा अभिमान दुतकारते हो ?
तुम
क्या समोझोगे
एक स्त्री की विवशता
भरेगी हुंकार
सब ख़त्म हो जाएगा
बस
रहने दो
चुनौती ना दो उसे।
नारी
भिन्न -भिन्न रूपा
महानता से
तुम अनजान नही हो
फिर भी
क्यों
तुम भूल जाते हो
उसका मान घटाते हो।
उसे
आज़ाद करो
भ्रूण से पूर्ण तलक
मर्यादा के नाम पर
आज़ादी मत छीनो।
मत खोजो
शोषण के तरीके
कभी दहेज के नाम
कभी
अभिव्यक्ति के नाम।
कभी
आभूषण
कभी सज्जा के नाम
सब ओछी चाल हैं।
अबला नाम देकर
खुद को शर्मसार किया
कयों लक्ष्मी बाई का नाम
इतनी जल्दी भूल गया !
फ़र्शसे अर्श तक
तुझे देती है चुनौती
फिर क्यों
खुद पर
इतना अहंकार है ?

 

 

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