व्यवहार और व्यक्तित्व से लोगों के दिलों में बनाएं जगह बनाएं : राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
🔲 खरतरगच्छ उपाश्रय में राष्ट्रसंतों की प्रवचन माला का समापन
राजेन्द्र कोठारी
रतलाम 20 मार्च। राष्ट्रसंत ललितप्रभजी महाराज ने कहा कि प्रभावी व्यक्तित्व हमारे भीतर छिपा है। इसे बाहर से लाना नहीं है अपितु अपने भीतर से उजागर करना है। याद रखिये, दुनिया के हर पत्थर में एक बेमिसाल प्रतिमा छिपी रहती है। किसी भी व्यक्ति पर बातों का प्रभाव कम पड़ता है, आपके सद्गुण, सद्व्यवहार और श्रेष्ठ चरित्र का प्रभाव अधिक पड़ता है। अगर आपका चेहरा आकर्षक नहीं है तो चिंता मत कीजिए। अपने व्यवहार को आकर्षक बनाइये और लोगों के दिलों में राज़ कीजिए।
संतप्रवर शुक्रवार को श्री जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ श्री संघ द्वारा जीने की कला पर आयोजित प्रवचन माला के समापन पर त्रिपोलिया गेट स्थित खरतरगच्छ उपाश्रय में सैकड़ों श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे।
अहंकार भगाइए, विनम्रता लाइए
राष्ट्रसंत ने कहा कि अहंकार भगाइए, विनम्रता लाइए। अहंकार हथोड़ा है तो विनम्रता चाबी। याद रखिए, हथोड़े से ताला टूटता है और चाबी से खुलता है। अपनी प्रतिष्ठा को लम्बे अरसे तक बनाए रखने के लिए हाथ की सच्चाई और बात की सच्चाई सदा बनाए रखिए। दिये हुए वचन और लिये हुए संकल्प को हर हाल में निभाने का प्रयास कीजिए। प्रेम सबसे कीजिए, पर गुस्सा किसी पर मत कीजिए। क्रोध आपके व्यक्तित्व को धूमिल करता है, वहीं प्रेम उसे और अधिक निखारता है। क्रोध की बज़ाय शांति को तवज़्ज़ो दीजिए। ईष्र्या की बज़ाय सम्मान की भावना पैदा कीजिए। चिंता की बज़ाय खुशमिजाज रहने की कोशिश कीजिए। सहनशीलता बढ़ाइए। छोटी-छोटी बातों में हताश मत होइये। चिड़-चिड़ापन आपके रिश्तों में खटास घोलेगा। मुस्कुराइए और सबसे प्रेमचारा बढ़ाइए।
राई का पहाड़ बनाने से केवल बढ़ती है रंजिश
उन्होंने कहा कि जो चंदन घिसता है वह भगवान के चरणों में चढ़ता है जो लकड़ी अकड़ी हुई रहती है वह केवल जलाने के काम आती है। छोटी-मोटी बातों को लेकर तकरार मत कीजिए। आप सही हैं तब भी बहस मत कीजिए। राई का पहाड़ बनाने से केवल रंजिश ही बढ़ती है। चेहरे के सौंदर्य पर ज़्यादा ध्यान देने की बज़ाय अपने जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयास कीजिए। जीवन की सुन्दरता कुरूप चेहरे को भी ढक देती है। जीवन में दूसरों को झुकाने की नहीं, स्वयं झुकने की भावना रखिए। आम ज्यों-ज्यों पकता है त्यों-त्यों डाली झुकती है। अकड़ी डालियों पर तो खट्टी कैरी ही लगा करती है। उनके प्रति सदा धन्यवाद-भाव रखिए जिन माता-पिता से आप पैदा हुए हैं, अपने उन बड़े भाई-बहिनों के प्रति जिन्होंने आपको पाला है, उस धर्मपत्नी के प्रति जिससे आपको जीवन का सुकून मिला है और उन कर्मचारियों के प्रति जिनकी बदौलत आपके पास दौलत है। अपनी प्रशंसा और औरों की निंदा की आदत से बचिए आत्म-प्रशंसा आपको अहंकारी का पद दे सकती है और निंदा आलोचक का। सदा मधुर वचनों का उपयोग कीजिए। कड़वी बात का भी मधुर जवाब दीजिए। जैसे पिस्तौल से छूटी गोली और माँ के पेट से निकला बच्चा वापस भीतर नहीं जा सकता वैसे ही बोले हुए वचन को वापस लौटाया नहीं जा सकता। याद रखिए, हर बात सोचने की तो होती है, पर बोलने की नहीं होती। जो सोचा है, वह मत बोलिए अपितु बोलने से पहले यह भी सोच लीजिए कि क्या बोला जाए और कितना बोला जाए।
जो नमेगा वह सबको गमेगा
उन्होंने कहा कि हर जगह सम्मान पाने की कोशिश मत कीजिए। औरों को सम्मानित होते देखकर खुशी अनुभव कीजिए। इससे बढ़कर आपका सम्मान क्या हो सकता है कि आप अपने हाथों औरों को सम्मान दे रहे हैं। जीवन में विनम्रता की आदत डालिये। कुँए में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकेगी तो ही पानी भरकर ला पाएगी। जीवन का भी यही गणित है जो नमेगा वह सबको गमेगा। दादागिरी तो हम मरने के बाद भी कर सकते है लोग पैदल चलेंगे और हम उनके कंधो पर। अपने हाथों से औरों का सदा भला करने की कोशिश कीजिए। सदा याद रखिए कि औरों का हित करने वाला दैवीय मार्ग का अनुयायी होता है जबकि स्वार्थ से घिरा हुआ इंसान भगवत्-कृपा से वंचित होता है।विपत्ति आए तो कोई आपत्ति मत कीजिए। उसका धैर्य पूर्वक सामना कीजिए। अग्नि से गुजरकर सोना और अधिक निखरता ही है।
विश्वास, रिश्ता, दिल और वचन कभी न तोड़े
उन्होंने कहा कि पानी से कभी तस्वीर नहीं बनती और ख्वाबों से कभी तकदीर नहीं बनती। जि़ंदगी में हमेशा श्रेष्ठ कर्म करते रहिए क्योंकि यह जिंदगी बार-बार नहीं मिलती। कभी भी पीपल के पत्तों जैसा मत बनिए, जो वक्त आने पर सूखकर गिर जाते हैं। जि़ंदगी में हमेशा मेहन्दी के पत्तों की तरह बनिए, जो खुद घिसकर भी दूसरों की जिंदगी में रंग भर देते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी जिंदगी तस्वीर भी है और तकदीर भी। अगर इसमें अच्छे रंग मिलाओगे, तो तस्वीर सुन्दर बन जाएगी और अच्छे कर्म करोगे तो आपकी तकदीर सँवर जाएगी। हमेशा जोडऩे की कोशिश कीजिए, तोडऩे की नहीं। संसार में सूई बनकर रहिए, कैंची बनकर नहीं। सूई दो को एक कर देती है और कैंची एक को दो कर देती है। दुनिया में गाय की तरह रहो, साँप की तरह नहीं। गाय घास खाती है पर बदले में दूध देती है और साँप दूध पीता है पर बदले में ज़हर देता है। जो गाय की तरह रहेंगे वे गोविन्द की तरह पूजे जाएँगे और जो साँप की तरह रहेंगे वे शैतान कहलाएँगे। जीवन में चार चीजें कभी मत तोड़िए विश्वास, रिश्ता, दिल और वचन। जब ये टूटते हैं तो कोई आवाज तो नहीं होती लेकिन दर्द बहुत होता है।
व्यस्त रहो मस्त रहो
प्रवचन में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि हर समय व्यस्त रहें और हर हाल में मस्त रहें तो जीवन की सौ सौ बीमारियों से सदा बचे हुए रहोगे।
यह थे मौजूद
कार्यक्रम में कांतिलाल चौपड़ा, मनोहर छाजेड़, अशोक एम चौपड़ा, अशोक जे चौपड़ा, चितरंजन लालन, हेमंत बोथरा, विक्रम सिंह कोठारी, पारसमल छाजेड़, राजकुमार संचेती, प्रदीप लालन, वर्धमान सराफ, राजेंद्र सिंह कोठारी, जितेंद्र चौपड़ा, श्रेणिक सराफ, गौरव कांवेडिया जय सकलेचा, आशीष चौपड़ा, सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे। संचालन संघ मंत्री हेमंत बोथरा ने किया। आभार कांतिलाल चौपड़ा ने माना।
साहित्य वितरण का लिया लाभ
समारोह में सुरेश सरिता मेहता परिवार द्वारा सभी लोगों को साहित्य बांटने का लाभ लिया गया।