डाक्टर, वकील, अध्यापक बनना आसान, लेकिन अच्छा इन्सान बनना कठिन
🔲 इन्सानियत बचेगी तो ही बचेंगे धर्म, सम्प्रदाय : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम,10 अप्रैल। इन्सानियत का धर्म सबसे बड़ा और महान धर्म है। जिस धर्म, सम्प्रदाय या मत-पंथ-परम्परा में इन्सानियत की कोई बात नहीं, वह धर्म नहीं, धर्म के नाम पर धोखा है। इन्सानियत की उपेक्षा करके केवल पूजा-पाठ या क्रियाकांड के सहारे धार्मिकता का मुखौटा पहनने वाले व्यक्ति धर्म का स्वाद नहीं चख पाते है। धर्म का पहला पायदान ही इन्सानियत का भाव है।यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने धर्मानुरागियों को दिए धर्म संदेश में कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री के अनुसार इन्सानियत बचेगी तो ही धर्म, सम्प्रदाय बचेंगे, इन्सान ही नहीं रहा, तो धर्म-सम्प्रदाय कहां रहेंगे। प्रत्येक हर इन्सान, गुण और कर्म से इन्सान बने, यही आज के समय का तकाजा है। इन्सान का मोल उसके भीतर बसी इन्सानियत से ही है। अगर उसकी इन्सानियत जिन्दा है, तो वह सच्चे अर्थों में इन्सान है। डाक्टर, वकील, अध्यापक बनना आसान है, लेकिन अच्छा इन्सान बनना कठिन है।
भाईचारे से ही इन्सानियत सुरक्षित
आचार्यश्री ने कहा कि विषम और विकट परिस्थितियों में ही इन्सानियत की परीक्षा होती है। किसी के आंख के आंसू पौंछना और आंख में आंसू नहीं आने देने का कार्य इन्सानियत की कसौटी है। ये कार्य तभी हो सकते है, जब
इन्सान के भीतर भाईचारा पलता है। भाईचारे से ही इन्सानियत सुरक्षित रहती है। विडम्बना है कि आज इन्सान के पास पैसा बढा है और प्रेम घटा है। सम्पत्ति बढी है और सत्य घटा है। साधन-सुविधाएं बढी है और संतोष तथा शांति घटी है। हमे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इन्सानियत सत्य की किरण है, धर्म की बुनियाद है और मजहब से उंची है। वर्तमान में अन्न और धन की कमी नहीं है, मात्र इन्सानियत की कमी है। इससे मानव मन छोटा हो जाता है और छोटे मन से कभी बडा काम नहीं होता। बडे काम बडे मन वाले ही करते है। इसलिए अपने मन को बडा बनाइयें, क्योंकि इसी बडे मन में भगवान रहते है। मानवता जब-जब ही संकट में घिरती है, तब-तब बडे मन वाले आगे आते है और मानवता को बचाते है। इन्सानियत तेरा-मेरा, अपना-पराया नहीं देखती, वह सिर्फ अपना कर्तव्य देखती है। इन्सानियत को सामने रखकर काम करने वाले नेताओं का स्वयं ही नहीं समाज और देश का मस्तक भी उंचा हो जाता है।
कोरोना के तांडव में दिख रहे इन्सानियत के अवतार
आचार्यश्री ने कहा कि कोरोना के इस तांडव में डाक्टर, नर्सेस, पुलिस, अधिकारी, मीडियाकर्मी और आवश्यक सेवाएं देने वाले सभी योद्धा अपनी जान व जीवन की फिक्र नहीं करके इन्सानियत का पालन कर रहे है। इन्सानियत का भाव रखने वाले ये योद्धा ही उसके असल अवतार है। इन्हें धन्यवाद देना मात्र औपचारिकता होगी। इसलिए ऐसे योद्धाओं को दिल से यहीं दुआ दे कि इन्सानियत की सुरक्षा में लगकर वे जो बडा उपकार कर रहे है, उससे उनकी रूहानी ताकतें खुद से आजाद हो और इन्सानियत आबाद हो।
इन्सानियत की सुगंध महकती
आचार्यश्री ने कहा कि इन्सानियत का पाठ हर धर्म में हर धर्म गुरू सिखलाते है। बिना इन्सानियत के धर्म की कल्पना ही नहीं की जा सकती। नदी का पानी मीठा रहता है, क्योंकि वो देती रहती है। सागर का पान खारा होता है,
क्योंकि वह लेता रहता है और नाले का पानी दुर्गन्ध पैदा करता है, क्योंकि वह रूका रहता है। इसी प्रकार अपना जीवन है। देते रहोगे, तो मीठे लगोगे, लेते रहोगे, तो खारे तथा रूक गए, तो बेचारे लगोगे। देने वाला ही महान
होता है, उससे इन्सानियत की सुगंध महकती रहती हैं