कोरोना संकट के इस दौर में हर व्यक्ति रखे अपना कर्तव्य बोध : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम,12 अप्रैल। शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने जन-जन से कर्तव्य पालन का आह्वान किया है। उनके अनुसार कर्तव्य निष्ठा की चमकदार आभा जब चारों और बिखरती है, तो सारा वातावरण ही बदल जाता है। कोरोना संकट के इस दौर में हर व्यक्ति को अपना कर्तव्य बोध रखना चाहिए। परिवार, समाज, देश के प्रति कर्तव्य निभाना एक साधना है, तपस्या है और देव पूजा है। कर्तव्य निष्ठा ही आज के युग की सबसे बड़ी मांग है। इसे पूरा करने वाला ही देव है।
आचार्य श्री ने सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन स्थिरता के बीच धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि कर्तव्य का दर्जा भावना से भी बड़ा है। भावना के साथ जब कर्तव्य जुड जाता है, तो कोई भी कार्य अधूरा नहीं रहता। इससे हर कार्य पूजा और पूज्य बन जाता है। उन्होंने कहा कि कर्तव्य निष्ठा के साथ विनिमय का कोई संबंध नहीं है। लेन-देन का भाव जहां आ जाता है, वहां कर्तव्य गौण हो जाता है और स्वार्थ हावी हो जाता है। स्वार्थ बुद्धि, निकृष्ठ बुद्धि होती है। इसी कारण स्वार्थी कभी कर्तव्य परायण नहीं हो सकता । स्वार्थ की तुला पर हर कार्य को जो तोलता है, उसका सेवा भाव पवित्र नहीं रहता। कर्तव्य तो वह होता है, जिसका परिणाम सदैव सुंदर, सुखदायी और सहानुभुति से भरा होता है। कर्तव्य की उपेक्षा करना घोर मानवीय अपराध है। पाप और अपराध की चेतना से जो उपर उठ जाते है, वे कर्तव्य वीर होेते है। कर्तव्य वीरों ने कभी जात-पात का भेदभाव नहीं देखा, वे वफादारी से अपना कर्तव्य निभाते है और समय के फलक पर अपना नाम रोशन कर जाते है। कर्तव्य वीरों की कसौटी होती है, लेकिन वे कभी कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होते।
कर्तव्य की चादर फैलाएं
आचार्यश्री ने कहा कि कर्तव्य निष्ठा से किए गए कार्य कभी निराशा नहीं देते, वरन सदैव आशा, उत्साह और उर्जा से भरते है। कार्य छोटा हो या बडा, कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति के लिए हर कार्य उंचाई देने वाला होता है। कर्तव्य की धरा पर जब सहदयता के फूल खिलते है, तो उनकी सुगंध से मानवता महकती है और महानता दमकती है। कर्तव्य पालन की निष्ठा जिन व्यक्तियो में होती है, वे प्रमाद, अन्याय, और मुफतखोरी जैसा कोई काम नहीं करते। वे कर्तव्य की चादर फैलाकर उसकी छांव में हर प्राणी को सुख देते है।
वे होते है प्रेम के सागर
आचार्यश्री ने बताया कि अधिकारों में जब कर्तव्य का भाव जुडता है, तब अधिकार, उपकार और सहकार बनते है। बिना कर्तव्य के अधिकारों में स्वार्थ लिप्सा, सुविधावाद तथा प्रतिष्ठा की भावना जुडी रहती है। ऐसे अधिकार मानवीय शक्तियो का क्षरण करते है। अधिकारों को चाहे बिना जो कर्तव्य के प्रति समर्पित रहता है, वह तीनों लोकों में पूज्यता प्राप्त करता है। कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति की चार विशेषताएं है, वे अनुशासन में आबद्ध रहते है, उनकी विवेक बुद्धि जागृत रहती है, वे प्रेम के सागर होते है और दीन-दुखियों के प्रति जागरूक रहते है।
कर्तव्य से बड़ी कोई पूंजी नहीं
आचार्य श्री ने कहा कि दायित्व की अपेक्षा कर्तव्य का महत्व अधिक है। दायित्व नहीं चाहते हुए भी निभाना पडता है, किंतु कर्तव्य का पालन निष्ठा से ही होता है। शांत और अनुत्तेजित दिमाग ही कर्तव्यों का निर्धारण करते है। करोेडपति व्यक्ति भी कभी कर्तव्य के प्रति समर्पित नहीं होता, तो रोड पति बन जाता है। कर्तव्य से बडी कोई पूंजी नहीं है। यह पूंजी ही नए पुण्य कमाती है। कर्तव्य की पूंजी को ना तो कोई चोर चुरा सकता है और ना ही इस पर कोई टेक्स लग सकता है। यह पूंजी सेफ और सेल्फ होती है। हर व्यक्ति इस पूंजी से पूंजीपति बनकर अपना और दूसरों का भला कर सकता है।