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जागरूक रहने वाला व्यक्ति ही संस्कारी और सदाचारी : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज

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हरमुद्दा

रतलाम, 15 अप्रैल। जागरूक रहने वाला व्यक्ति ही संस्कारी और सदाचारी कहलाने का अधिकारी होता है। जागरूकता, जन्म और मृत्यु के बीच की कडी है। जीवन जागृति है और मृत्यु सुषुप्टि है। दैहिक जागरण ही जागरण नहीं होता, वास्तव में विवेक को जगाना ही जागरण है। ऐसा जागरण जिसके जीवन में होता है, वह एक कदम भी बिना देखे नहीं चलता। एक शब्द भी बिना विचार किए नहीं बोलता और एक कार्य भी ऐसा नहीं करता, जिससे किसी का अहित हो।IMG_20200409_191608

यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि विवेक जागृत होने पर व्यक्ति दूसरों से जैसी अपेक्षा रखता है, वैसा स्वयं बनने का प्रयास करता है। जागरण ही जीवन में विकास की संभावनाओं को उजागर होने का मार्ग देता है। इसलिए जीवन दृष्टि और जीवन दिशा बन जाता है।

अपनाएं निर्भयता की जागरूकता

आचार्यश्री ने कहा कि जागने के लिए कोई समय या स्थान नियत नहीं होता, व्यक्ति जिस क्षण विवेक को उपलब्ध होता है, वहीं उसके जागरण का होता है। जीवन में कभी भय जन्य जागरूकता नहीं रखना चाहिए, अपितु निर्भयता की जागरूकता अपनाना चाहिए। निर्भय वहीं रह सकता है, जो अपने जागरूक जीवन के प्रति समर्पित होता है। ऐसे व्यक्ति सत्यजीवी होते है। सत्य कभी मिटता नहीं और असत्य कभी टिकता नहीं है। सत्य शांत होता है, जबकि असत्य शोर मचाता है। प्रगाढ आस्था, सही समझ और सत्य की दिशा में प्रस्थान, ये तीन तत्व व्यक्ति को सतत जागरूकता की और ले जाते है। एक जागरूक व्यक्ति मेे हर संभावना को सच्चाई में बदलने की क्षमता होती है। जागरूक मानव कभी अपना अहित करता है और ना ही दूसरों का अहित होने देता है। जागृत रहने वाले की प्रतिभा निर्मल और चरित्र उज्जवल होता है।

ध्येय के प्रति अटल आस्था जरूरी

आचार्यश्री ने बताया कि जागरूकता नए युग की पदचाप की होती है। जीवन और जगत में जब भी नए युग का सूत्रपात होता है, तो उसमें जागरूकता की प्रबल हिस्सेदारी होती है। इसलिए जितने भी जागरूक महामानव हुए, उनमें साहस, धेर्य, समझदारी और ध्येय के प्रति अटल आस्था देखी जाती है। वे अपने जीवन मेें इन दिव्य गुणों का सतत प्रयोग करते हुए अच्छे परिणामों को प्राप्त करते है। ऐसे लोगों के जीवन में प्रस्थान, प्रयोग और परिणाम की त्रिवेणी, सत्यं,शिवं और सुदरं को साकार करती है।

जागरूकता से होगा कोरोना से बचाव

आचार्यश्री ने कहा कि कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति को अपने साथ दूसरों का भी हित देखना है। व्यक्ति स्वयं सुरक्षित रहे और उसके इर्द-गिर्द रहने वाले भी सुरक्षित रहे। यह सूत्र ही कोरोना महामारी से बचाव का उपाय है। जागरूकता, जिम्मेदारी का पाठ पढाती है। जिम्मेदार ही इमानदार और समझदार कहलाते है। अपने कर्तव्य के प्रति हर क्षण जागरूक रहने वाला व्यक्ति ऐसा कोई कार्य नहीं करता, जिससे उसके मन को संताप और जीवन को संघर्ष मिले। जागरूकता में ही साधना और सिद्धि है। इसलिए जागरूक रहे और कोरोना के संकट पर विजय प्राप्त करें।

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