कोरोना का खतरा जितना बड़ा, सावधानी भी उतनी बड़ी रखना होगी : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुदा
रतलाम,24 अप्रैल। अपनी सावधानी और मुकाबले की तैयारी ही कोरोना के खतरे से व्यक्ति को बचा सकती है। खतरा जितना बड़ा होता है, उसके लिए सावधानी भी उतने ही बड़े पैमाने पर रखना पड़ती है। सावधान रहने वाला व्यक्ति ही जीवन में आगे बढ़ सकता है। जीवन निरंतर चलने वाली विकास यात्रा है और इस यात्रा में कभी-कभी प्राकृतिक खतरे पैदा होते है। साहसी, सजग, कर्मठ और समयज्ञ व्यक्ति इन खतरों को झेल कर आगे बढ़ जाता हैं।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि खतरों की संभावना से किसी कार्य को रोका नहीं जा सकता। खतरे परीक्षा की घड़ी होते है। साहसी व्यक्ति इनके बीच से गुजरता है और इन्हे पार करके लक्ष्य तक पहुंच जाता हैं। मनुष्य जीवन में अपनी जिम्मेदारी से अनभिज्ञ होना सबसे बड़ा खतरा है। हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी का बोध होना चाहिए। जिम्मेदारी ही नियंत्रण स्थापित करती है। जिम्मेदारी नहीं समझने वाले ही पुलिसकर्मियों से डंडे खाते है। दूसरों पर नियंत्रण बाद में करना चाहिए। यदि व्यक्ति पहले स्वयं की जिम्मेदारी समझकर उसका अनुशीलन करें, तो कई खतरों से स्वयं भी बचेगा और दूसरों को भी बचा लेगा। गैर जिम्मेदारी सबसे बड़ा खतरा है, जो वातावरण में सर्वाधिक दिखाई दे रही है।
विवेक क्या भाव में धर्म बन जाता है अधर्म
आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य जब तक विवेक विकल होता है, तब तक सभी तरह के खतरे सताते है। विवेक बुद्धि के जागृत होते ही खतरों का प्रभाव कमजोर पड़ जाता है। बाहरी खतरे जितना नुकसान नहीं करते, उतना भीतर का अविवेक खतरनाक बन जाता है। इसलिए सभी अपना अविवेक घटाएं और विवेक जगाएं, क्योंकि विवेक सम्मत हर कार्य धर्म का पूरक होता है। विवेक के अभाव में धर्म भी अधर्म बन जाता है। अविवेक हर युग की ऐसी त्रासदी है, जो वर्तमान और भावी पीढी के लिए खतरा बन जाती है। संसार के सारे नियम, संयम, कानून-कायदे विवेक बुद्धि को जगाने के लिए है। विवेक का साथ छूटते ही जीवन स्वयं एक खतरा बन जाता है। अविवेक भाव हिंसा है,जो प्रतिहिंसा पैदा करता हैं। अहिंसा में विश्वास रखने वाला कभी अविवेक के रास्ते नहीं चलता, अपितु विवेक का जीवन जीता है और अपने को खतरों से बचाता हैं।
तथाकथित पढ़े हुए लोग बनते हैं खतरा
आचार्यश्री ने कहा कि दूसरों के लिए खतरा बनने वाला यह भूल जाता है कि यह खतरा मेरे लिए भी भारी पड़ने वाला हैं। इसकी कीमत रो-रोकर चुकानी पड़ेगी। अनपढ़ लोग जितना दूसरों के लिए खतरा नहीं बनते, उतना तथाकथित पढे-लिखे लोग खतरा बन जाते है। अपनी ख्याति की भूख को शांत करने के लिए ऐसे-ऐसे प्रयोग करते है, जो सबकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ का कारण बन जाते है। गलत काम हमेशा अविवेक से होते है और वे पतन का कारण भी होते है। गलती एक क्षण में हो जाती है, परन्तु उसे सुधारने में युगों-युगों का समय लग जाता हैं। एक की गलती का परिणाम कई लोगों को भुगतना पड़ता है। गलत बुद्धि ही गलत कार्यों को प्रश्रय देती है। गलत कार्यों को जो प्रश्रय देते है, वे समाज और देश के लिए खतरा साबित होते है।
चरित्र को उज्जवल बनाती है शिक्षा
आचार्यश्री ने विवेक और संयम का विकास करने पर जोर देते हुए कहा कि विवेक और संयम से ही स्वछंदता को नियंत्रित किया जा सकता हैं। इसके लिए शुरू से ही प्रशिक्षण की आवश्यकता है। शिक्षा जगत यदि और ध्यान देवे , तो बहुत काम आसान हो सकता है। शिक्षा ही चरित्र को उज्जवल बनाती है। उज्जवल चरित्र के धनी व्यक्ति ही देश और समाज के गौरव होते है।