उत्साही के लिए हर दिन उत्सव और हर रात महोत्सव : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम ,7 मई। उत्साही के लिए हर दिन उत्सव और हर रात महोत्सव होती है। यदि उत्साह है, तो शक्ति स्वत प्राप्त होती है। कई लोग शक्ति का रोना रोते है, मगर शक्ति कही नहीं हमारे उत्साह में बसी है। उत्साह से जगी शक्ति एक साथ कई कार्य कर गुजरती है। कोरोना के इस संकटकाल में हर व्यक्ति को कुछ अच्छा करने के लिए उत्साहित होना चाहिए।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव प्रज्ञानिधि,परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि जिस व्यक्ति के अंदर उत्साह का ज्वालामुखी नहीं फूटता, वह विकास के शिखर पर आरोहण की बात नहीं सोच सकता। अब तक जितने भी विकास हुए है, अथवा हो रहे है, उनमें उत्साह का भाव प्रमुख रहा है। विकास के अवसर हर व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमते है, लेकिन निराशा के अंधकार में डूबा व्यक्ति उन्हें ना तो पकड पाता है और ना ही उसमें पकडने की चाह होती है। विकास के कई अकल्पित अवसर मिलते है। मगर उत्साह का कोई विकल्प नहीं होता, वह तो संकल्प के साथ विकास के बंद द्वारों को खोलता हुआ आगे बढता है। हर विकल्प को संकल्प में बदलने का काम उत्साह करता है। उत्साहित के लिए कोई कार्य असंभव नहीं होता।
उत्साह ही पहुंचाता है लक्ष्य तक
आचार्यश्री ने कहा कि जिसका उत्साह मंद होता है,वह जरा सी प्रतिकूलता में कुम्हला जाता है और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाता। लक्ष्य तक पहुंचने से पहले जो अपने उत्साह को मंद कर देते है, वे सफल नहीं हो सकते। उत्साह के साथ आगे बढने वाला विकास के नए क्षितिज छूता है। कार्यसिद्धी में सबसे बड़ी बाधा उत्साह का ठंडा पड जाना होता है। यदि उत्साह का लडडू गर्म रहता है, तो व्यक्ति उत्साहपूर्वक सफलताओं को अर्जित करने में कामयाब होगा।
उन्होंने कहा कि उत्सुकता ही उत्साह को जन्म देती है। हर व्यक्ति में अच्छा करने की उत्सुकता रहनी चाहिए। उत्सुकता के अभाव में उत्साहमंद कमजोर पड जाता है। उत्साह और उल्लास दोनों सहयात्री है। इन दोनो का साथ जिस भी कार्य में रहता है, वह नई उर्जा, नई आशा और नया विश्वास जगा देता है। निराशा और अकर्मण्यता का अंधकार उत्साह के दीप प्रज्वलित होने पर ही छंटता है। उत्साही व्यक्ति हर व्यक्ति के लिए सुलभ होता है और हर व्यक्ति के दुख दर्द में राहत बनता है। उत्साह से भरे व्यक्ति में आलस्य कोसों दूर रहता है, वह कर्मठ, कमनीय, कलाकार और युगपुरूष बन जाता है।
उत्साह से सामना करेंगे तो सब कुछ जीत लोगे
आचार्यश्री ने कहा कि लक्ष्मी, प्रसिद्धि, यश, कीर्ति और सारी लब्धियां उत्साही व्यक्ति के खाते में जाती है। ऐसा व्यक्ति सबका दिल भी जीतता है और सभी के दिलों पर राज भी करता हैं। उत्साही व्यक्ति में विश्वास रहता है, मगर अंधविश्वास नहीं होता। सादगी रहती है, लेकिन असंयम नहीं रहता। त्याग होता है, भोग विलास नहीं होता है। उत्साही व्यक्ति इस लोक को भी सुधारता है और परलोक को अच्छा बनाता है। उत्साह व्यक्ति की मूलभूत पूंजी होती है। उसका कभी बंटवारा नहीं होता। उत्साह रखकर काम करने से उसमें लगातार इजाफा ही इजाफा होता है। इसलिए वर्तमान समय में इसकी नितांत आवश्यकता है। यदि उत्साह से परिस्थितियों का सामना करोगे, तो कोरोना तो क्या, हर संकट को जीत लोगे।