हर मानव अच्छे कार्यों से बनाएं अपनी पहचान : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज

हरमुद्दा
रतलाम,13 मई। हर व्यक्ति कोई ना कोई कार्य करता है, मगर जो कार्य लक्ष्यबद्ध चिंतन, योजना और पूर्णता तक पहुंचाने के उत्साह से होता है, वह सफल होता है। फल की आसक्ति ना रखकर किए जाने वाले कार्य ही वास्तव में पूज्य और पूजा बनते है। कोरोना के इस संकटकाल में हर व्यक्ति अपनी कार्यशक्ति की पहचान, परीक्षण और पुनरावर्तन करे। अच्छे कार्यों से सभी अपनी पहचान बनाए।
यह आह्वान शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव प्रज्ञानिधि,परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने किया है। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि जो भी कार्य स्वस्थ और प्रसन्न दिमाग से किए जाते है, वे आसपास के वातावरण को अच्छा बना देते है। हर कार्य के साथ हमारे दिमाग की स्वस्थता और प्रसन्नता जुडनी चाहिए। कार्य कोई सा भी हो, यदि उसे बोझ समझकर किया जाएगा, तो वह आनंद नहीं देगा। कार्य से कार्य की नई शक्ति, नई उर्जा और नया आनंद विकसित होता है। विभक्त कार्य में शक्ति और समय अधिक लगता है और कार्य कम होता है, लेकिन संगठित होकर किए जाने वाले कार्य आसान, सरल और सरसता देने वाले होते है।

कोई कार्य नहीं होता बिना कारण के

उन्होंने कहा कि संसार में कोई भी कार्य निष्पन्न होता है, तो उसके पीछे कोई ना कोई कारण श्रृंखला अवश्य होती है। बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता और बिना कार्य के किसी तरह का विकास नहीं होता। संसार में आज तक जितने भी विकास हुए है उनमें मानव की कार्य शक्ति महत्वपूर्ण रही है। रचनात्मक कार्य शक्ति अच्छे कार्यों का निष्पादन करती है, जबकि विध्वंसात्मक कार्य शक्ति विनाश ही विनाश करती है। रचनात्मक कार्य शैली, कार्य को शांतिपूर्ण तरीके से करती है। इसके परिणाम भले ही देर से मिले, मगर वे अच्छे ही आते है। ऐसी स्थिति में कुछ कहने की आवश्यकता भी नहीं रहती, क्योंकि कार्य स्वयं ही बोल उठता है।

अच्छे कार्य से मिलती है संतुष्टि

आचार्यश्री ने कहा कि कई कार्य पुस्तकीय ज्ञान से नहीं होते, उनमें अनुभव, विवेक और प्रज्ञा काम करती है। प्रज्ञा से सम्पन्न कार्य कभी पश्चाताप नहीं देते अपितु वे हृदय में उल्लास और जीवन में उत्साह भर देते है। कार्यों में व्यक्ति की आत्मा प्रतिबिंबित होती है। अच्छे कार्य ही व्यक्ति को स्थायी संतुष्टि और वास्तविक समाधि देते है। कोई कार्य यदि युग की समस्या का समाधान देता है, तो वह कार्य ना केवल प्रशंसनीय होता है, वरन हर कार्यकर्ता के लिए अनुकरणीय बन जाता है। ऐसे महान कार्यों में लगे रहना हर मानव का पुनीत दायित्व और परम कर्तव्य बन जाता हैं कार्य कौशल ही व्यक्तित्व का निर्माण करता है। लाखों-करोडों रूपए खर्च करके जिस व्यक्तित्व का निर्माण नहीं किया जा सकता, वह कार्य कौशल निर्मित कर देता है।

बिना काम के चाहते हैं नाम

आचार्यश्री ने बताया कि बिना काम के लोग अपना नाम चाहते है। जबकि कार्य करने वाले नाम की चिंता किए बिना समर्पण भाव से कार्य करते है और दुनियां में अपना नाम रोशन कर जाते है। कोई भी कार्य छोटा-बडा नहीं होता। उसके पीछे जुडी भावनाएं ही कार्य को छोटा-बडा बना देती है। हर उदात भावना छोटे से छोटे कार्य को बडा बना सकती है । उदान्त भावों के धनी व्यक्ति ही श्रेष्ठ एवं उच्च होते है। ऐसे महामानवों का ही दुनियां अनुमोदन व अनुसरण करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *