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एंड्राइड फोन की खोज सख्ती से उन घरों में जहां …

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🔲 इसलिए धरातल पर सफल नहीं हो पाती है योजनाएं

ऐसे लाचार बेबस गरीब अभिभावकों से शासन प्रशासन एंड्राइड फोन की अपेक्षा करते है। क्या यह उन गरीबों का मजाक या उपहास नही है ? जिनके चूल्हें इस लॉक डाउन में ढंग से नहीं जल रहे है। उनके घरों में आप शिक्षकों के माध्यम से एंड्राइड फोन की खोज सख्ती से करा रहे है। क्या यह मानवीय आधार पर ठीक है ? 

ऑन लाईन टीचिंग लर्निंग एंड ट्रैनिंग प्रोग्राम की मैं हृदय से सराहना और स्वागत करता हूँ परन्तु धरातल से जुड़ी कुछ समस्याओं को विनम्रता से सभी के समक्ष रखने का साहस करता हूँ और सक्षम लोगों से समाधान की अपेक्षा करता हूँ।

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प्राय: सरकारी स्कूलों में गरीब निर्धन माँ बाप के बच्चें पढ़ते है, जिनके भरण पोषण की व्यवस्था भी शासन प्रशासन द्वारा की जाती है। इनके दीन हीन माँ बाप इन अध्ययनरत बच्चों के लिए वर्षभर में दो जोड़ी स्कूल यूनीफार्म भी नही बनवा सकते है। इसलिए इन्हें 600 रुपए प्रति विद्यार्थी के मान से प्रतिवर्ष गणवेश की राशि भी मुहैया कराई जाती है। ये गरीबी के कारण पाठ्य पुस्तकें नहीं खरीद सकते है इसलिए इन्हें निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें भी शासन-प्रशासन द्वारा प्रदाय की जाती है। ये साबुन, तेल, पेन, पेंसिल, कॉपियाँ, बस्ता नहीं खरीद सकते है। इसलिए इन्हें समय समय पर शासन छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। ये लॉक डाउन में कहीं भूखें न मर जाए। इसलिए स्कूलों में प्रदाय किए जाने वाले मध्याह्न भोजन योजना का सूखा चावल शिक्षकों से घर-घर जाकर प्रदाय करने का काम भी यही शासन प्रशासन ने करवाया है। यह सब संकटकाल में जरूरी भी है और सराहनीय भी है। मानवीय भी है एवं यह सब शासन-प्रशासन इनकी गरीबी व निर्धनता के कारण करती है। शासन-प्रशासन इनकी निर्धनता में सब चिन्ताएँ करती है। यथासम्भव मदद भी करती है। यह सब स्वागत योग्य एवं सराहनीय है। जिसकी मैं मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हूँ।

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तो फिर उनसे ऐसी अपेक्षा क्यों?

परन्तु एक प्रमुख मुद्दा सवाल के रूप में उठता है कि जब शासन-प्रशासन को यह भली-भांति ज्ञात है कि ये गरीब है, निर्धन है जो स्कूल गणवेश नहीं खरीद सकते हैं, जो प्रतिदिन स्कूल टिफिन नहीं ला सकते हैं जो समय पर किताब कॉपी नहीं खरीद सकते हैं, जिनके अधिकांश माँ बाप बड़े भाई बहन मजदूरी करते है। रोज कमाते और रोज खाते है। जिनके बैंक खाते में हजार रुपए भी बुरे वक्त में नहीं मिलते है। पड़ोसी भी उधार देने पर सहमत नहीं है। ऐसे लाचार बेबस गरीब अभिभावकों से आप (शासन प्रशासन ) एंड्राइड फोन की अपेक्षा करते है। क्या यह उन गरीबों का मजाक या उपहास नही है ? जिनके चूल्हें इस लॉक डाउन में ढंग से नहीं जल रहे है। उनके घरों में आप शिक्षकों के माध्यम से एंड्राइड फोन की खोज सख्ती से करा रहे है। क्या यह मानवीय आधार पर ठीक है ? जो परिवार इस संकट में दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। जिनके सामने जीवन और मौत 24 ×7 घंटे नृत्य कर रही है। क्या उस परिवार के लिए इस महासंकट की घड़ी में मँहगे एंड्राइड फोन खरीदना और उसका नेट बैलेंस रखना बहुत आसान है ? आखिर यमलोक में बैठें हुए लोगों को इसका आभास क्यों नही है ?

उनको नहीं है एहसास

कड़ी मेहनत और श्रम से अर्जित आईएएस अधिकारियों को यह अहसास क्यों नहीं है ? गाँव और शहर के परिवेश में जमीं आसमां का फर्क होता है। क्या यह उच्च सिंहासन पर बैठे लोगों को नही पता है ? मैं व्यक्तिगत तौर पर शासन-प्रशासन की नीतियों की खिलाफत नहीं कर रहा हूँ। मैं एक शासकीय सेवक होने के नाते शासन की हर नीति को मानने और उसे लागू करवाने में सहयोग करने के लिए बाध्य हूँ, परन्तु हमें धरातल पर जो कमियाँ मिल रही है जिनके कारण नीतियाँ मूर्तरूप नहीं ले सकती है। भली-भांति फलीभूत नहीं हो सकती है। उन्हें बताना भी हमारा कर्तव्य है ,ऐसा मेरा निजी मत है।

ऐसी स्थिति में सफलता नामुमकिन

मैं शासन-प्रशासन से विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूँ कि देश, प्रदेश अभी लॉक डाउन में है। जान है तो जहान है अन्य कार्य की भाँति नौनिहालों की शिक्षा भी अत्यावश्यक है और बिना एंड्राइड फोन के ऑन लाईन टीचिंग प्रोग्राम सफल नहीं हो रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए जिस तरह कॉलेज के छात्रों को एंड्राइड फोन, लैपटॉप दिए गए हैं उसी तरह कक्षा 01 से 12वीं तक के सभी विद्यार्थियों को एंड्राइड फोन और मासिक नेट बैलेंस उपलब्ध कराने की योजना बनानी चाहिए जिससे शिक्षक बंधु भी मानसिक रूप से स्वतंत्र होकर अपने कर्तव्य को निर्बाध रूप से संपादित कर सकें।

तो फिर निलंबन नहीं सीधे कर दे बर्खास्त

यदि उच्च अधिकार प्राप्त सक्षम अधिकारियों को यह लगता है कि शिक्षक जानबूझकर लापरवाही करता है, एंड्राइड फोन उपलब्ध कराने में बहाने बाजी करता है तो मैं विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूँ कि साधारण फोन नम्बर लेकर रेंडम आधार पर या सर्वर लोकेशन के माध्यम से शिक्षक के तथ्य की आकस्मिक जाँच करा ली जाए और शिक्षक की बात गलत होने पर उसे केवल शोकॉज नोटिस, निलम्बन न किया जाए बल्कि उसे बर्खास्त कर दिया जाए। उसे कोई आपत्ति शिकवा शिकायत नहीं होगी, मगर धरातल की समस्याओं का समाधान किए बिना यह सब मुंगेरी लाल के सपने साबित होंगे, यह तय है ।

हकीकत का आईना

एक तथ्य मैं सबके संज्ञान में लाना आवश्यक समझता हूँ कि बहुत से शिक्षकों ने मई 2020 में सीएम राइस के तहत डिजिटल प्रशिक्षण प्राप्त किया है और अधिकांश प्रशिक्षण प्रमाण पत्र धारी भी हो चुके है, परन्तु सच्चाई यह है कि इनमें से अधिकांश शिक्षकों ने स्वयं लिंक पर जाकर प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है बल्कि दोस्तों के माध्यम से या दान दक्षिणा देकर कम्प्यूटर सेंटरों से यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। इसमें भी शिक्षकों का एक भी प्रतिशत दोष नहीं है क्योंकि प्रतिदिन जिला राज्य ब्लॉक के अधिकारियों के बारूदी आदेश प्रसारित हो रहे थे। इसलिए बचाव में ऐसा करना शिक्षकों की मजबूरी थी। यह सब धरातल की सच्चाई है। कोई मनगढंत आरोप नहीं है क्योंकि मैं धरातल पर काम करने वाला शासकीय सेवक हूँ और सच बोलना मेरा नैतिक धर्म है। तभी मैं अपने नौनिहालों को सच बोलना सिखा सकता हूँ। बात कड़वी है मगर 100 फीसद सत्य है। इसका रियलटी टेस्ट कराया जा सकता है और गलत होने पर मुझे व्यक्तिगत रूप से बर्खास्त किया जा सकता है मगर शर्त मुझे गलत साबित करने के बाद। सच बोलना यदि गुनाह है तो हाँ मैं सहर्ष गुनाहगार हूँ और जब तक जिन्दा रहूँगा, तब तक सच बोलता रहूँगा।

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🔲 सर्वेश कुमार माथुर, शिक्षक शासकीय माध्यमिक विद्यालय, कुआँझागर, सैलाना, जिला रतलाम

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