जिंदगी अब- 9 : भय-निर्भय : आशीष दशोत्तर
भय -निर्भय
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🔲 आशीष दशोत्तर
“सोच रहा हूं एक हेल्थ प्लान ले ही लूँ।” उनके मुंह से यह वाक्य सुनते ही मुझे आश्चर्य हुआ। मन ही मन हंसी भी आई। एक बार तो लगा कि वे शायद मज़ाक कर रहे हैं। ज़िंदगी को लेकर वे हमेशा बहुत स्पष्ट और सहज रहे हैं। कभी उन्होंने इस तरह बात नहीं की, जिससे यह प्रतीत हो कि वह अपने जीवन को लेकर गंभीर भी हो सकते हैं।
आज उन्होंने यह बात जिस चिंता में डूबकर कही, वह गंभीर थी। पिछले दिनों में एकाधिक मित्रों सुनी जा चुकी ऐसी भयभीत करनेवाली बातों पर कोई अचरज नहीं हुआ लेकिन इनके मुंह से सुनने पर अधिक आश्चर्य हुआ।
इस डर का कारण जानना चाहा तो उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों का वर्णन इस तरह किया जैसे सारे संकट उनके जीवन पर ही आना है। हालांकि अपने जीवन से प्रेम करना और उसकी सुरक्षा करना हर व्यक्ति का दायित्व भी है और उसे करना भी चाहिए मगर उनका यह सुरक्षा भाव उनके भीतर उपजे भय को व्यक्त कर रहा था।
वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा भय लगना स्वाभाविक भी है, क्योंकि निरंतर बढ़ता संक्रमण का दायरा और कई असामान्य मौतों से हर व्यक्ति का डरना स्वभाविक है, परंतु भय किसी भी समस्या का निराकरण नहीं करता है। उनकी बात सुन और उनके जैसे ही अन्य मित्रों की बात सुन मुझे लगा कि इस वक्त हर कोई भयग्रस्त है। भय स्वयं निर्भय हो रहा है। ऐसे हालात में हर कोई अपने जीवन की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। कई लोग अपने कार्य और व्यवहार को बदलने में लगे हैं। कईयों ने अपनी जीवन शैली को बदल लिया है। कई अपने जीवन को सीमित कर रहे हैं।
कईयों ने अपने दैनिक जीवन का एक कैलेंडर बना लिया है, जिसके अनुसार वे अपना आगामी जीवन गुज़ारने का सोच रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो इन सब अनिवार्यताओं को चाह कर भी नहीं स्वीकार कर सकते, क्योंकि उनकी कार्यशैली या उनके दायित्व इस तरह के हैं जो उन्हें इतने प्रतिबंधों और सीमाओं में रहने की इजाज़त नहीं देते। नौकरी पर जाना है, वाहनों में सफर करना है, ट्रेन -बसों से बार-बार गुज़रना है । लोगों से निरंतर संपर्क करना है। ऐसे में कोई अपनेआप को किस तरह सीमित कर सकता है ?
अपने जीवन का बीमा करा लेना एक उपाय हो सकता है परिवार को सुरक्षित रखने का ,मगर इस वक्त ज़रूरत अनजाने भय से मुक्त होने की है। ख़ौफ़ज़दा मित्र को कई सारे किस्से सुनाते हुए यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि भय किसी भी समस्या का समाधान नहीं है ,मगर मुझे लगा कि वे मेरे समझाने से संतुष्ट नहीं हुए होंगे। जीवन के प्रति सुरक्षा का भाव जो इस वक्त लोगों में पैदा हुआ है, वह शायद इससे पहले कभी न हुआ हो। ऐसे वक्त में भय की निर्भयता और निर्भय रहने वाले मनुष्य का भय चिंतित करता है।
🔲 आशीष दशोत्तर