विवश वरिष्ठ

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🔲 आशीष दशोत्तर

लाकडाऊन के दौरान उनका फोन आया। कहने लगे बाज़ार से कुछ दवाइयों की आवश्यकता है, क्या आप कुछ मदद कर सकते हैं? क्योंकि उनका इलाका कंटेनमेंट क्षेत्र में आ चुका था ,इसलिए उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। घर में कोई ऐसा व्यक्ति था नहीं जिसकी मदद ली जाए। आसपास के लोग भी बंद ही थे।

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अस्सी वर्ष की उम्र में वे घर के मुखिया भी हैं और कर्ताधर्ता भी। उनकी बात सुनकर मैंने उन्हें आश्वासन दिया और काफी मशक्कत के बाद उन तक वे दवाई पहुंची।इसके कुछ दिन बाद एक अन्य बहत्तर वर्षीय परिचित फोन पर कहने लगे, कुछ ऐसा तो होना ही चाहिए कि हम बूढ़ों को कम से कम दवाएं तो आसानी से मिल जाए। दस बीमारियों ने घेर रखा है। हमारा घूमना बहुत ज़रूरी है, वो तो घर में भी हो जाएगा लेकिन दवाइयाँ लेने तो हमें ही जाना पड़ेगा। मैंने उन्हें बुजुर्गों को घर में ही रहने की हिदायत संबंधी बार बार प्रसारित हो रही अपीलों से अवगत करवाया और कहा कि वे अपने घर में ही रहें ताकि संक्रमण से बचाव हो सके। दवाइयों और अन्य किसी चीज की आवश्यकता हो तो मुझे फोन कर दिया करें मैं उपलब्ध करवा दूंगा।

अभी दो दिन पूर्व अड़सठ वर्षीय बुजुर्ग सुबह-सुबह काम पर जाते हुए दिखाई दिए ।वे हर दिन सुबह छह बजे काम पर निकल जाते हैं और रात आठ बजे से पूर्व कभी नहीं लौटते। घर में चार हैं ।पुत्र है नहीं, पुत्र वधू और 2 पौत्र। घर चलाने की ज़िम्मेदारी इन्हीं पर है , इसलिए किसी निजी संस्थान में यह नौकरी करते हैं। जाते हुए उनसे सुप्रभात हुई तो पूछ लिया काम शुरू हो गया ? वे बहुत उदास स्वर में बोले, शुरू हुआ न हुआ बराबर ही समझें। तीन महीने से घर चलाने का संकट बना हुआ है । कोई आमदनी नहीं हो रही है। जहां काम करते हैं ,वहां भी कोई काम नहीं है । फिर भी जा रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि आज नहीं तो कल कुछ न कुछ मेहनताना तो मिलेगा ही।
यह हालत इस संक्रमण काल और उसके बाद उन लोगों की है जिन्हें हम बुजुर्ग कहते हैं। बुजुर्ग का ध्यान आते ही हम साठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की तरफ देखते हैं और यह मान लेते हैं कि अब इनकी उम्र आराम करने की हो गई है। लेकिन हकीक़त कुछ और ही है । मेरे अपने छोटे से शहर में ही कई बुजुर्गों जब कड़ी मेहनत -मशक्कत करते हुए दिखते हैं तो लगता है कि इस उम्र में इतनी कड़ी मेहनत करना इनका मुक़द्दर है या मजबूरी । मगर ये बुजुर्ग मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं।

संक्रमण काल के दौरान इन्हीं बुजुर्गों को अपनी सेहत, अपनी आय और अपने जीवन को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। स्वयंसेवी संगठन हेल्प एज इंडिया का हाल ही का एक सर्वेक्षण अखबारों में आया है इसके मुताबिक लॉकडाउन के कारण पैंसठ प्रतिशत बुजुर्गों की आजीविका प्रभावित हुई है। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पांच हज़ार से अधिक बुजुर्गों पर किए गए इस सर्वे में पता लगा कि साठ से अस्सी वर्ष के उम्र के बुजुर्ग इस दौर में काफी प्रभावित हुए हैं । बुजुर्गों का यह कहना कि लॉकडाउन के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हुई है। उनका काम छूट गया या फिर उनकी आय कम हुई है। अध्ययन में इकसठ प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र और उनचालीस फीसदी शहरी क्षेत्र के बुजुर्गों को शामिल किया गया था । महत्वपूर्ण तथ्य यह भी सामने आया कि बयालीस प्रतिशत बुजुर्गों की सेहत लॉकडाउन के दौरान खराब हुई और अठत्तर फीसद बुजुर्गों को आवश्यक सामग्री और सेवाओं के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खासतौर से दवाई ,राशन सामग्री और अनाज के लिए इन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी।

इस हालत में यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि संक्रमण के इस दौर के बाद की ज़िंदगी में बुजुर्गों को और अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है । सरकारों के पास तमाम योजनाएं हैं मगर ये बुजुर्ग आराम करने की उम्र में, ऐसे नाजुक वक्त में भी अपनी जिंदगी को दांव पर लगाते हुए भटक रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं ,मेहनत कर रहे हैं और हमारी आत्ममुग्धता को चकनाचूर कर रहे हैं।

🔲 आशीष दशोत्तर

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