जिम्मेदारों में छाया घनघोर लापरवाही का आलम, कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान
🔲 हेमंत भट्ट
शहर के जिम्मेदारों पर घनघोर लापरवाही का आलम छाया हुआ है। कोई भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में तत्पर नहीं है। चाहे चिकित्सक हो, नगर निगम हो। पुलिस प्रशासन हो, सभी टालों वाद प्रवृत्ति के समर्थक हो गए हैं। कोरोना वायरस संक्रमण क्या हुआ, दिन प्रति दिन सब के सब महान हो गए।
चिकित्सकों की तो बात ही मत पूछो। बिना परीक्षण यह तो वे बीमारी बता देते हैं, मशीन की भी जरूरत नहीं होती, ऐसे महान चिकित्सक रतलाम की जनता की सेवा में मिले हैं। जो सेवा करते हैं या नहीं, वह तो उनका जमीर ही बता देगा। लेकिन जहां कोरोना वायरस संक्रमण में मशीन से ही पता चलता है कि संक्रमित है या नहीं, मगर हमारे यहां के डॉक्टर हैं कि वे मरीज को देखकर हाल बता देते हैं कि वह ठीक हो गया, वह संक्रमित नहीं है। इस बात की डींगे तो सिविल सर्जन भी हांकते हैं। लेकिन यह गलतफहमी तब उजागर हो गई, जब जावरा की महिला को पुनः लाया गया, जब उसके सैंपल की रिपोर्ट पॉजीटिव आई। इस तरह से डिस्चार्ज करने वाले चिकित्सकों पर क्या कार्रवाई हुई, वह तो जिम्मेदार ही जाने। डॉक्टरों को बचाने वाले उनके आला अफसर जो तैनात रहते हैं तो कार्रवाई कैसे हो सकती है?
बिना परीक्षण के पीएम कक्ष में
लगता है पुलिस या सूत्र भी कमजोर हो चुके हैं। शहर में हत्या हो जाती। पुलिस को पता तक नहीं चलता। कस्तूरबा नगर में मृत मिली महिला के सिर से खून निकला था। फिर भी पुलिस यह पता नहीं कर पाई कि सिर में चोट है या नहीं? इससे ज्यादा गलती और अमानवीय हरकत जिला अस्पताल में हुई, जहां जिम्मेदार चिकित्सकों ने शव का परीक्षण किए बिना ही पोस्टमार्टम कक्ष में भेज दिया। चाहे बीमार हो या मृत, चिकित्सकों को कोई लेना देना नहीं है, उन्हें कोई परीक्षण नहीं करना है। कोरोना संक्रमण में उन्होंने इस बात की गांठ बांध ली है। दुर्घटना में घायल हो गए व्यक्ति का उपचार भी रात को इसलिए नहीं हो पाया कि चिकित्सक नहीं आए। अंततोगत्वा निजी चिकित्सालय जाना पड़ा और उपचार हुआ। आखिर जिला चिकित्सालय किसके लिए है? चिकित्सकों को तनख्वाह देने के लिए बिना काम की।
सिंघम के जिले में दृश्यम जैसी हरकत
मुद्दे की बात तो यह है कि जिस सिंघम के ट्रेलर देखकर जिले के वासियों को विश्वास हुआ था कि पुलिस प्रशासन की दृष्टि से रतलाम जिला खुशनसीब हो जाएगा। लेकिन यह विश्वास टूटते देर नहीं लगी। जब सिंघम आए, मगर पावर कहां गया पता नहीं? सिंघम के शहर में कब कोई दृश्यम हत्या करके या जान लेने के लिए जिला चिकित्सालय परिसर के सेप्टिक टैंक में व्यक्ति को फेंक गया, पता नहीं चला। हो सकता है परिजनों ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज की हो, लेकिन फाइलों पर धूल जमने में कहां देर लगती।
आमजन के लिए है नियम, सेलिब्रिटी के लिए नहीं
कोरोना वायरस संक्रमण में नियम हैं कि संक्रमित व्यक्ति का नाम जाहिर नहीं किया जाएगा। चाहे वह ठीक भी हो गया हो। इस नियम का पालन देशभर में हो रहा है केवल आमजन के लिए। मुद्दे की बात तो यह है कि सेलिब्रिटी के लिए नियम लागू नहीं हो रहा है, ऐसा लगता है कि यह बीमारी सेलिब्रिटी को होती है तो बड़ी हो जाती है। आमजन को होती है तो कोई खास नहीं। सेलिब्रिटी के नाम और फोटो छापे जा रहे हैं। उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। आमजन के नाम, फोटो वीडियो जारी हो जाते हैं तो पत्रकार पुलिसिया कार्रवाई के शिकार होते हैं।
पार्षद नाम का प्राणी नदारद
नगर निगम के आला अफसर हो या कर्मचारी सबके एक जैसे हाल हैं। कोई काम करने को नहीं तैयार हैं। शहर में गंदगी का आलम पसरा हुआ है, नालियां जाम है। कचरा संग्रहण गाड़ी चार-चार दिन में आ रही है। घरों में संग्रहित कचरा पड़ा पड़ा सड़ रहा है। घरों में बीमारियां फैलने का अंदेशा है। जल प्रदाय व्यवस्था बार-बार बे पटरी हो रही है। इस मुद्दे पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। 6 महीने हो गए हैं, शहर से पार्षद नाम का प्राणी नदारद हो गया है। उसे अपने क्षेत्र से की कोई चिंता फिक्र नहीं है। शहरवासियों के लिए जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी मौन धारण किए हुए हैं।