सितम और ग़म

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🔲 आशीष दशोत्तर
उनके पास आज एक मित्र का फोन आया। मित्र ने फोन पर सीधे-सीधे उनसे कहा कि पंद्रह हज़ार रुपए की आवश्यकता है। आप तत्काल मेरे अकाउंट में यह राशि जमा कर दें, तो कृपा होगी। हां विश्वास रखें, यह राशि में आपको अवश्य लौटा दूंगा, लेकिन अपनी सुविधा अनुसार।’

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वे अपने मित्र की यह बात इतने सीधे शब्दों में सुनकर हैरत में पड़ गए। कोई उधार भी इतने अधिकार से और इस तरह मांग सकता है, इस पर उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था।

उनका मित्र जनवरी माह में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। परिवार में कमाने वाला वह एकमात्र सदस्य। पांच लोगों का परिवार उसके दुर्घटनाग्रस्त होने से बेरोज़गार हो गया। गृहस्थी पर अचानक बोझ पड़ा। जैसे-तैसे कुछ दिन निकले।

जब संक्रमण का समय आया तब हालत और बुरी हो गई। जो कुछ मदद अपने लोगों से मिल रही थी, वह भी बंद हो गई। सभी ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि अभी उनकी हालत भी ख़राब है। संक्रमण काल के दिन जैसे-जैसे गुज़रते गए। उसे लगने लगा कि अब वह कुछ काम करने लायक हो जाएगा ,लेकिन ऐसा नहीं हो सका। लॉक डाउन खत्म हुआ तो उसने अपने मित्रों को तलाशा। सबसे इसी तरह गुजारिश की।

उस मित्र ने इन्हें फोन पर यह बताया कि पिछले तीन माह से उसकी हालत बेहद ख़राब है। कंपनी ने वेतन देना बंद कर दिया है। जो आधा वेतन उसे कंपनी ने घर बैठे देने का वादा किया था, वह भी नहीं दिया जा रहा है। कंपनी का कहना है कि अभी कोई कमाई नहीं हो रही है इसलिए वह ये भुगतान नहीं दे सकती। आवक एकदम बंद हो गई है।
अब उसके सामने यही रास्ता बचा है कि वह इस तरह अपने मित्रों से सहयोग लेकर उस वक्त तक अपना गुज़ारा करे, जब तक कि वह चलने -फिरने या कुछ करने लायक नहीं हो जाता।

अपने मित्र के बारे में बताते -बताते उन्होंने गहरी लंबी सांस छोड़ी। कहने लगे कि सितम के इस दौर ने लोगों को कितने ग़म दे दिए हैं। जहां देखो, जिधर देखो हर कहीं ग़म ही ग़म है। हर आदमी इन मुश्किलों का सामना करने में जुटा हुआ है मगर चाह कर भी किसी की मदद नहीं की जा सकती। वे यह कहते हुए उस व्यवस्था में जुट गए जिससे वे अपने उस मित्र को कुछ सहायता तो राशि भेज सकें।

🔲 आशीष दशोत्तर

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