ज़िंदगी अब-44 : कोरोना ऑफर : आशीष दशोत्तर
कोरोना ऑफर
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🔲 आशीष दशोत्तर
वह जोर-जोर से आवाज़ लगा रहा था, कोरोना ऑफर, पचास रुपए में दो जोड़ी चप्पल। उसकी इस आवाज़ ने ध्यान आकर्षित किया। खासतौर से कोरोना ऑफर का प्रयोग उसके मुंह से पहली बार सुना। एक बार तो लगा की महामारी को ऑफर बता कर यह चप्पल वाला क्या कर रहा है, मगर दूसरे ही पल यह महसूस हुआ कि ज़रूर कोई न कोई मजबूरी इससे ऐसा करवा रही होगी।
उसके करीब जाकर पूछा तो उसने वही बात कही। कोरोना ऑफर पचास रुपए में दो जोड़ी चप्पल।
मैंने कहा कोरोना ऑफर देते हुए तुम्हें सोचना चाहिए। इस महामारी से सब लोग लड़ रहे हैं और तुम इस पर ऑफर दे रहे हो। वह कहने लगा, अगर ऐसा न कहें तो क्या कहें ? कोरोना काल ने ही इतने दर्द दिए हैं तो यही दवा भी दे।
उसकी बात समझ नहीं आई। पूछा तो बताने लगा, बाबूजी यह माल पांच महीने से घर में पड़ा हुआ है। रोज़ गाड़ी में रखता हूं ।लेकर घूमता हूं और कोशिश करता हूं कि किसी तरह से बिक जाए। जिससे यह माल लिया है वह कई बार तकादा कर चुका है। सबसे बड़ी समस्या घर चलाने के लिए कुछ तो चाहिए। इसलिए मजबूरी में ऐसा कहकर लागत मूल्य में ही यह सामान बेचना पड़ रहा है।
लोग न जाने क्यों कोई चीज खरीदने से घबरा रहे हैं। मैंने कहा इस समय लोग जो बहुत आवश्यक चीज है वही खरीद रहे हैं। बाकी यह कोशिश कर रहे हैं कि संक्रमण काल बीत जाए फिर खरीद ली जाएगी। उसने एकदम कह दिया, ऐसा होते-होते तो कहीं हम ही न चले जाएं ?
मैंने कहा ऐसा नहीं कहते। इस बुरे समय में सभी लोग मिल जुलकर लड़ रहे हैं और तुम इस तरह घबरा क्यों रहे हो। वह कहने लगा, पिछले चार माह से परिवार चलाने का संकट आन खड़ा हुआ है। यह तो संयुक्त परिवार है जो मिल जुलकर गुजारा हो रहा है, वरना मेरी अपनी अकेले की कमाई पर अगर घर चल रहा होता तो हम कभी के सड़क पर आ गए होते। लोगों के मन में जो डर है उसे हम समझते हैं मगर हमें जो दो वक्त की रोटी कमाने का भय हमें सता रहा है, उसको भी तो लोग समझें।
उसकी बात सुन बाज़ार में नज़र दौड़ाई तो उसके जैसे कई ऐसे ठेले वाले दिखाई दे गए जो अपनी गाड़ी में माल बिकने की आशा लिए खड़े थे। इनकी जिंदगी में आने वाला वक्त कैसा होगा, यह सोच कर भी सिहरन होने लगती है।
🔲 आशीष दशोत्तर