शोषण और अन्याय को भुगतने को मजबूर शिक्षक नई पीढ़ी खाक करेंगे जागरूक

आपदा में अवसर : फीस माफी की मांग पर शिक्षा के मंदिरों का स्वरूप लौटाकर शिक्षा माफ़ियाओं को ध्वस्त करने का सही अवसर

🔲 कपिल सिंह चौहान
1976 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘दीवार’ में एक अनपढ़ कुली शहर के गुंडों को हफ़्ता देने से मना कर देता है और उनके सामने मज़बूती से खड़ा हो जाता है. विजय नाम का यह अशिक्षित मजदूर का किरदार आज से 44 वर्ष पूर्व अपने और साथियों के साथ हुए शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है और अपनी जागरुकता प्रदर्शित करते हुए अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल बजाता है… ‘दीवार’ फ़िल्म आने के बाद से अब तक तीन पीढ़ियां बदल गईं… तबसे अब तक इतना समय गुज़र जाने के बाद मौजुदा दौर में किसी अनप‌ढ़ मजदूर की जागरुकता के स्तर को फिर कभी नापेंगे लेकिन आज बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में भव्य संभ्रांत स्कूलों में पढ़ाने वाले सुशिक्षित शिक्षकों की जागरुकता का हाल ‘दीवार’ फ़िल्म के विजय से भी गया-बीता है… ये ‘टीचर्स’ स्वयं चुप्पी साध कर जिस शोषण और अन्याय को भुगतने को मजबूर हैं, उससे लगता तो नहीं कि ये शिक्षक आज की पीढ़ी के छात्र-छात्राओं को उनके जीवन काल में शहर, समाज और देश में अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ा होने वाला जागरूक नागरिक बना पायेंगे!
शहर, प्रदेश, और देश के विद्यालयों में हज़ारों ऐसे स्कूल हैं जिन्होंने शिक्षा प्रदान करने के दायित्व बोध में ‘व्यापार कम और सेवा ज़्यादा’ के उद्देश्य की नैतिकता को आज भी कायम रखा है, लेकिन यहां हम उन स्कूल्स की बात कर रहे हैं जिन्होंने दिन दुनी, रात चौगुनी तरक्की करने के उद्देश्य के लिए एक तरह से शिक्षा माफ़िया का रूप धर लिया और छात्रों-अभिभावकों के साथ ही अपने यहां कार्यरत शिक्षकों तक का शोषण करने से बाज़ नहीं आए हैं…

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कोरोना महामारी के दौर से अलग, सामान्य स्थितियों में शिक्षा माफ़ियाओं द्वारा इन शिक्षकों से ‘कट’ लिया जाता है और ये शिक्षक देते हैं। अपने बैंक अकाउंट में आ चुकी सेलरी का पच्चीस प्रतिशत ये शिक्षक नकद में अपने मालिकों को चुपचाप लौटाते हैं और इस शोषण के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पाते।

कोरोना काल में अभिभावकों द्वारा पूरे देश में स्कूलों से फ़ीस माफ़ी की मांग की गई है। कई स्कूल मालिक ऐसे हैं जो स्कूल संचालन में अपने आदर्शों और नैतिक मापदंडों के चलते इतने सक्षम नहीं हैं कि वे हर छात्र की फ़ीस माफ़ कर सकें, उसके बावजूद वे इस पर ईमानदारी से विचार कर रहे हैं, लेकिन दूसरे किस्म के वे संचालक हैं जो शिक्षा माफ़िया हैं और शासन द्वारा कौड़ियों के दाम मिली ज़मीनों के बावजुद अपने जबर्दस्त प्रभाव और दबाव के चलते कोरोना काल में भी सामान्य सत्रों की तरह फ़ीस वसूली कर चुके हैं। उसके बाद इन माफ़ियाओं की मक्कारी यह है कि कोरोना काल का बहाना बना कर अपने यहां कार्यरत शिक्षकों को पिछले चार-पांच माह से आधी सेलरी दे रहे हैं।

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कुछ तो हर तीन साल में स्कूल की एक नई बिल्डिंग बनाकर, नई ब्रांच खोलने वाले ये माफ़िया क्या इतने भी सक्षम नहीं कि कोरोना काल में अपने स्टाफ़ को निर्धारित पूरी तनख्वाह दे सकें! वहीं, दूसरी तरफ ये उम्मीद कर रहे हैं कि अभिभावकों ने 5 माह तक दुकान बंद रखकर भी घर में इतना पैसा रखा है कि इन स्कूल मालिकों की तिजोरी भर सकें!

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क्वालिटी शिक्षा दिलाने के मायाजाल में इनके स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का वो अभिभावक जो 4-5 महीने तक अपना छोटा सा रेस्टोरेंट नहीं खोल पाया, अपना रिक्शा, टैक्सी या बस नहीं चला पाया, अपना सलून, अपना पार्लर नहीं खोल पाया, किराये पर ली साईकल की दुकान, फ़ोटो कॉपी, टाइपिंग, रजिस्ट्री करने वाले, जूस शॉप, बेकरी, ढाबा चलाने वाले, कपड़े सिलाई करने वाले दर्जी, किराये के भवन में मिठाई का व्यवसाय करने वाले इत्यादी वो तमाम लोग जैसे-तैसे फ़ीस दे भी दें तो क्या तुम शिक्षकों को पूरी सेलरी दे दोगे? क्या तुम अगले 3 वर्षों में खड़ी होने वाली नई बिल्डिंग का काम आगामी 2 वर्षों के लिये टाल नहीं सकते?? स्टेशनरी, सिलेबस, गणवेश परिवर्तन, कम्यूटर, पार्किंग और एक्स्ट्रा करिकुलम के मद में वर्षों से रुपये लेने के बावजूद क्या तुम स्टाफ को पूरी पगार नही दे सकते? यह सवाल सभी शिक्षकों को अपने स्कूल मालिकों से पूछना चाहिए।

अक्षम स्कूल संचालक जो फ़ीस माफ़ नहीं कर सकते, उन्हें सरकार से सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वे वाकई योग्य, गरीब, ज़रूरतमंद छात्रों की स्कूल फ़ीस माफ़ कर सकें। स्कूलों को यह आदेश भी दिया जाना चाहिए कि वे अपने सभी स्टाफ़ को समय पर और पूरा वेतन दें। जो भी स्कूल आर्थिक स्थिति का रोना रोए, सरकार तुरंत उस स्कूल और उस स्कूल की मातृ संस्था के खातों की पूरी डिटेल मांगे और झूठ बोलने वाले स्कूलों के सभी बैंक अकाउंट सीज़ कर उनके संचालकों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया जाए।

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अभिभावकों की फ़ीस माफ़ी की मांग पर सरकार, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की खामोशी से उनकी असंवेदनशीलता का पता चल चुका है। पिछले कई दशकों से सामान्य परिस्थितियों में सरकार ने शिक्षा माफ़ियाओं को पनपने और लूट मचाने के समुचित अवसर दिये हैं, लेकिन कोरोना की इस भयावह त्रासदी के दौर में इन माफ़ियाओं को ध्वस्त करने का सही अवसर और सही समय है। मंदिर निर्माण के इस काल में नई शिक्षा नीति के साथ ही शिक्षा के मंदिरों का स्वरूप लौटाकर, कार्यरत शिक्षकों और अभिभावकों की नैया पार लगाने का सही समय अभी है!

🔲 कपिल सिंह चौहान, नीमच, मप्र

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