वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे राजनैतिक एवं सामाजिक विसंगतियों को रेखांकित करना रचनाकार का दायित्व : विष्णु नागर -

 

🔲 हरमुद्दा के लिए नरेंद्र गौड़

शाजापुर मध्यप्रदेश के नाग नागिनी मोहल्ले में सन् 1950 को जन्में हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार, कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार, सम्पादक तथा पत्रकार विष्णु नागर 70 वर्ष के हो चले हैं और इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी लिखा, आज वह हिन्दी साहित्य की धरोहर है। उन्होंने अपने लेखन के जरिए शाजापुर जिले का नाम अखिल भारतीय स्तर पर पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया है। उन्हें हाल ही में ’जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान 2020’ से सम्मानित किया गया। 1599543089887

श्री नागर द्वारा लिखी पुस्तकों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। यदि उनकी लिखी 40-45 पुस्तकों के नाम ही गिनवाने बैठें तो एक अलग से पुस्तिका तैयार करना पड़ेगी। नागरजी हमारे समय के जागरूक और लोकतांत्रिक समाज के प्रति समर्पित, बेधड़क रचनाकार हैं। उन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा में खुद की शैली, भाषा, वर्तनी और बुनावट गढ़ी है। उन्होंने अपनी कृतियों के जरिए साहित्य को सार और रूप दोनों ही तरह से समृद्ध किया है।

हरमुद्दा से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि राजनैतिक एवं सामाजिक विसंगतियों को रेखांकित करना अपने समय के सजग रचनाकार का दायित्व है और इस दायित्व से रचनाकार मुक्त नहीं हो सकता। इस जिम्मेदारी से जो लेखक मुक्त हैं वे पता नहीं साहित्कार हैं भी या नही।

साहित्य लेखन की शुरुआत

शाजापुर जिले की शुजालपुर तहसील के ग्राम भ्याना में जन्में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा राष्ट्रीय विचारधारा के कवि स्व़ श्री बालकृष्ण शर्मा नवीन, शाजापुर में ही जन्में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि, उपन्यासकार स्व. नरेश मेहता, सुंदरसी में जन्में ’चैथे तार सप्तक’ के कवि स्व. हरिनारायण व्यास, स्व. प्रभागचंद शर्मा का नाम यहां आदर के साथ लिया जाता है। श्री नागर को भी शायद इन साहित्यकारों से लिखने की प्रेरणा जाने अनजाने मिली होगी। स्नातक कक्षाओं की पढ़ाई के दौरान स्थानीय नवीन शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापक स्व. सत्यव्रत अवस्थी, स्व. डाॅ. दिनकर पैंढारकर और डाॅ. दुर्गाप्रसाद झाला के मार्गदर्शन की वजह से समकालीन हिंदी साहित्य से पहचान हुई। वैसे श्री नागर ने लिखने की शुरुआत माध्यमिक कक्षाओं से ही कर दी थी। अपने बचपन के मित्र स्व. जयप्रकाश आर्य, ब्रजकिशोर शर्मा के साथ मिल कर ’बाल उद्गार मंडल’ की स्थापना के जरिए साहित्यिक हलचल की शुरुआत हुई। बाद में जब यह मंडली किशोर को प्राप्त हो गई, तब इसी संस्था का नामकरण ’किशोर उद्गार मंडल’ कर दिया गया। इस संस्था ने अनेक साहित्यिक आयोजन किए। कहना न होगा ऐसे आयोजन फिर कभी शहर में देखने सुनने को नहीं मिले।

शाजापुर से दिल्ली प्रस्थान, प्रिंट मीडिया के विभिन्न पदों पर दी सेवाएं

वर्ष 1971 से श्री नागर ने दिल्ली में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता प्रारंभ की। वे ‘नवभारत टाइम्स‘ में कई वर्षों तक विशेष संवाददाता के पद पर रहे। इसी बीच उन्होंने जर्मन रेडियो ‘डोयचे वैले’ में हिन्दी सेवा का 1982-1984 तक सम्पादन का कार्य भी किया। निश्चय ही यह उनकी यादगार उपलब्धि रही है। वे ‘हिन्दुस्तान‘ दैनिक के विशेष संवाददाता पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वर्ष 2003-2008 तक हिन्दुस्तान टाइम्स की लोकप्रिय पत्रिका ‘कादम्बिनी’ के कार्यकारी सम्पादक रहे, वे ’दैनिक नईदुनिया’ से भी जुड़े रहे। दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘शुक्रवार’ का सम्पादन भी कई वर्षो तक कर चुके हैं।

प्रकाशित पुस्तकों की लम्बी फैहरिस्त

श्री नागर की प्रकाशित पुस्तकों में कविता संकलन- मैं फिर कहता हूं चिड़िया, तालाब में डूबी छह लड़कियां, संसार बदल जाएगा, बच्चे, पिता और मां, हंसने की तरह रोना, कुछ चीजें कभी खोई नहीं, कवि ने कहा। कहानी संकलन-आज का दिन, आदमी की मुश्किल, आह्वान, कुछ दूर, ईश्वर की कहानियां, बच्चा और गेंद। उपन्यास- आदमी स्वर्ग में। उन्होंने अनेक निबंध संग्रह की भी रचना की है जिनमें हमें देखती आंखें, यथार्थ की माया, आज और अभी, आदमी और उसका समाज तथा कविता के साथ- साथ आलोचना पुस्तक साहित्यजगत में खासी चर्चित हुई है। इसके अलावा भी नागर जी की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यदि उन सभी का उल्लेख यदि यहां किया जाए अलग से एक लेख लिखना होगा।

अनेक सम्मान एवं पुरस्कार

श्री नागर को मुकुट विहारी सम्मान के अलावा उत्तरप्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी का शिवकुमार मिश्र स्मृति सम्मान, मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान, शमशेर बहादुर सिंह स्मृति समान, व्यंग्यश्री सम्मान, हिंदी साहित्य अकादमी दिल्ली का साहित्य सम्मान भी मिल चुका है। इसके अलावा भी उन्हें अन्य अनेक छोटे- बड़े पुरस्कारों से नवाजा जाता रहा है। नागर जी आज भले ही दिल्ली में निवास करते हो, लेकिन शाजापुर में उनकी नाल गड़ी है और इस वजह से वह साल दो साल में यहां आते रहते है। यहां के स्व. प्रेमनारायण सोनी के परिवार से उनके धनिष्ट संबंध हैं। इसके अलावा देवास में उनकी ससुराल भी है।

मालवी लोकगायिका रही जीवनसाथी

यहां उल्लेखनीय है कि नागर जी की पत्नी प्रमिला नागर अपने समय की मालवी लोकगायिका रही हैं। नागर जी के स्वसुर स्व़ श्री मदन मोहन व्यास भी मालवी बोली के ख्यातिप्राप्त कवि रहे हैं। उन्होंने इस बोली में सामाजिक तथा राजनीति विसंगतियों पर मंचीय काव्य रचना कर आमजन को मालवी बोली की ऊर्जा से परिचित कराया है।

नागर जी चुनिंदा कविताएं : –

जीवन

यह जीवन है भाई, जीवन है
हां रो लो कुछ देर
जी हलका कर लो
फिर चलो
बहुत हो गया भाई
अब चलो भी

यहां तो कई बार खुशियां बांटने के लिए भी
कोई नहीं मिलता
बीवी से कहो तो वह कहती है कि
अभी मुझे फुर्सत नहीं है

लड्डू बांटना चाहो
तो खाने के लिए कोई नहीं मिलता
मिलता है तो कहता है कि
मुझे डायबिटीज है
या लड्डू वह कुत्ते के सामने डाल देता है

यहां तो खुद से बातें करके
खुद को दिलासा देना होता है।
खुद अपना हाथ अपने कंधे पर रखकर
महसूस करना पड़ता है
कि यह किसी और का हाथ है
यह जीवन है भाई
सुनो भाई, अरे सुनो तो
यह जीवन है।

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उसका कोई घर नहीं है

यह मेरा घर है
इसे मैंने अपनी कमाई से बनाया है

मैंने एक दिन एक रिक्शे वाले से पूछा –
क्यों भई, तुमने अभी तक अपना घर नहीं बनाया क्या ?
उसने मेरी बात का जवाब नहीं दिया
वह पसीना पोंछता रहा
बार-बार घंटी बजाता रहा

वैसे यह भी हो सकता है कि
यह सवाल मैंने मन ही मन उससे पूछा हो
और उसने इसका जवाब मन ही मन दिया हो
जिसे मैं सुन नहीं पाया

मैं इतना बहरा न होता
तो क्या मैं अपना मकान बनवा पाता
उसमें चैन की नींद सो पाता
और जब चाहता, बेचैन हो सकता।

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कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ना

वे कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते थे
कभी पति कुत्ता बन जाता, कभी पत्नी बिल्ली
कभी पति बिल्ली कन जाता
पत्नी कुत्ता
नहीं-नहीं, पता नहीं कौन क्या बनता था
मगर लड़ने के बाद दोनों घायल होते थे

वे कुत्ते-बिल्ली होते तो लड़कर
अपने-अपने रास्ते चल देते
लेकिन बार-बार घायल होने और
बार-बार लड़ने के लिए
बार-बार वायदे करने और
बार-बार उनसे मुकरने के लिए
एक छत के नीचे रहते थे

रोज-रोज कुत्ते-बिल्लियों से लड़ने की
नई-नई कलाएं सीखते थे।

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छोरे-छोरियों

ये अच्छी बात नहीं है
कि हिन्दू लड़की से मुस्लिम लड़का या मुस्लिम
लड़की से हिन्दू लड़का
या जाट लड़की से दलित लड़का या यादव लड़के से
ब्राह्मण लड़की प्यार करे

शादी से पहले प्यार करना ही क्यों
जबकि मालूम है कि शादी मां-बाप की मरजी से
होनी है
बिरादरी में होनी है
प्यार-मां बाप से करो, भाई-बहनों से करो
रिश्तेदारों से करो
बिरादरी के लोगों से करो
फिर भी प्यार की प्यास नहीं बुझे तो मानवता से करो,
प्रभु से करो
और लड़के-लड़की काो ही आपस में प्यार करना है
तो फिर, तो फिर
रिश्ते के भाई-बहनों, मौसा-मौसी, मामा-मामियों,
चाचा-चाचियों, भतीजों-भानजियों से करो
ताकि मामला घर में रफा-दफा हो जाए

दिल बाहर वाले से लगा ही रखा है तो
हद से हद एक दूसरे को प्रेम पत्र लिख लो
साथ जीने-मरने की कसमें खा लो
जब शादी का बखत आए तो इसे
गुड्डे-गुड़िया का खेल समझ भूल जाओ
छोरे-छोरियों, दिल को तो हमेशा तुम अपना
दुश्मन ही समझना
और दिमाग को रखना दुरूस्त
मां-बाप की इज्जत करना और प्रभु का करना स्मरण
यह मान के चलना वह जो करेगा ठीक करेगा
और फिर हम भी तो हें ही !!

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मां की प्रार्थना

भगवान्
किसी तरह भा जाए
बच्चों का खाना
किसी तरह बने उनके पेट में जगह

दो कौर से उन्हें संतुष्टि न हो

रोटी कहे, रोटी दूंगी, पूरी कहे, पूरी दूंगी
चावल कहें, चावल दूंगी, छोले कहें, छोले दूंगी
खीर से कटोरा भर दूंगी
किसी तरह निकले उनकी भूख का निदान

आज तो वे कहें
और दे मां रोटी
कड़छी भर-भर दे दाल
दे मां और सब्जी
दे और सरसों का साग

किसी तरह वे
बोलने के साथ खाना सीखें
किसी तरह हरें वे
मेरी चिंता

किसी तरह बहे
मेरे भीतर
तृप्ति की धार !

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भाई की चिट्ठी

भाई ने लिखी चिट्ठी
लिखा आना
आना कि इस बार
बहिन भी आ रही है
आना तो खूब मजा रहेगा

गांव से भाई कहे आना
तो मैं क्यों न जाऊं

मैं आऊंगा भाई
सोचना मत कि कैसे आऊंगा
800 मील दूरी भी
बीड़ी पीते पार हो जाएगी
बीड़ी फिर भी न होगी खत्म !

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अमर कविताएं

अमर कविताओं में कीचड़ दीखता
सूअर नहीं लोटते
भैंसे दूध नहीं देती
घड़ी में सात नहीं बजते
आदमी प्याज नहीं खाते
औरतें ऊंचा नहीं बोलती
मजदूर नारे नहीं लगाते
बूढ़े नाक नहीं छिनकते
अमर कविताओं में
इस कदर सुंदरता होती है कि
उन्हें पढ़कर रामप्यारी का बेटा
भूल जाता है कि वह गरीब मां की संतान है
कि नाग-नागिनी गली में
उसका एक ढहता हुआ मकान है।

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सबसे अच्छी कविता के बारे में

सबसे अच्छी कविता
इतनी विनम्र होगी
कि अविश्वसनीय लगेगी
इतनी प्राकृतिक होगी
कि हिन्दी लगेगी

इतने दुखों में काम आएगी
कि लिखी हुई नहीं लगेगी

सबसे अच्छी कविता
सबसे अच्छे दिनों में याद आएगी
उसे जो कंठ गाएगा, मीठा लगेगा

सबसे अच्छी कविता
विकल कर देगी
मुक्ति के लिए

सबसे अच्छी कविता
सबसे अच्छी बंदूक का
सबसे बुरा छर्रा साबित होगी

सबसे अच्छी कविता
सबसे बुरे दिनों में पहचानी जाएगी
देखते-देखते
आग में बदल जाएगी ।

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ताकत और कविता

जिस समाज में ताकत की-सिर्फ ताकत की
पूजा होती हो
उसके मंदिर बनाए जाते हों, पुजारी रखे
जाते हों, प्रसाद बांटा जाता हो
वहां जो यह समझ सकें कि ताकत के पीछे न
भागने की भी एक ताकत है
वही सिर्फ, सिर्फ वही लिख सकता है ऐसी कविता,
जो कविता-सी न हो
जो आलोचकों के किसी काम न हो
वह याद सिर्फ तब आती हो जब दिल भरा हो मगर
रोया न जा रहा हो।

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विष्णु नागर

फिर से गरीब की बात
आज भूखे तो नहीं हो विष्णु नागर
खाना ला दें, मटर-कोफ्ते बने हैं
कुछ पीना चाहो तो पी लो
बहुत दिन हो गए होंगे पिये हुए
जब तक गरीब मरें
खा लो
जब तक हथियार उठें
खा लो
जब तक भूख है
खाते चले जाओ विष्णु नागर

भूखे नहीं हो
तो रूठो मत
हमने तो मजाक किया था
अपना समझ हंसी-ठट्ठा किया था
तुम बहुत अच्छे हो
क्या कविता करते हो विष्णु नागर

बहुत से गरीब हैं
बहुत से बहुत-बहुत गरीब हैं
लेकिन हम-तुम क्या करें विष्णु नागर !
हम अच्छे हैं, तुम अच्छे हो
सब अच्छे होते
तो गरीबी मिट न जाती विष्णु नागर !

और अपना हाल सुनाओ, कोई काम बताओ
फिर कभी आ सको तो आओ
तुम्हारा इंतजार रहेगा, खाना तैयार रहेगा
बहुत रात हो गई
तुम्हें घर जाना चाहिए अब विष्णु नागर !

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