संसार में ‘व्यथा’ और संत के पास ‘कथा’ के सिवाय कुछ नहीं मिलता
🔲 “पुण्योत्सव” के तीसरे सत्र में स्वामी श्री चिद्म्बरानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा..
🔲 नीलेश सोनी
रतलाम (मप्र), 9 अक्टूम्बर। दुनिया के पास जाओ तो सिवाय संसार की ‘व्यथा’ के सिवाय कुछ और सुनने को नहीं मिलता और संत के पास जाओ तो संसार के स्वामी की ‘कथा’ के सिवाय और कुछ सुनने को नहीं मिलता। इसलिए कहा जाता है कि संत का सान्निध्य मोक्ष के बंद दरवाजे खोल देता है। संसार की व्यथा मिटाने के लिए कथा ही सर्वोत्तम साधन है। सबसे बड़े बडभागी तो वे है जो विपरीत परिस्थिति में भी कथा के प्रति अपना अहोभाव नहीं छोड़ते, यह निष्ठा पुण्यों से मिलती है और भक्त का जीवन ही “पुण्योत्सव” बन जाता है।
यह प्रेरक वचन महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिद्म्बरानंद सरस्वती जी महाराज ने “पुण्योत्सव” श्रीमद भागवत कथा के तीसरे सत्र में व्यक्त किये।
मधुर भजनों की प्रस्तुति
दयाल वाटिका में हरिहर सेवा समिति रतलाम समिति अध्यक्ष व आयोजक मोहनलाल भट्ट परिवार ने भागवत जी पोथी का पूजन किया। पार्श्वगायक सुनील भट्ट ने अपने सुमधुर स्वरों में भजनों की प्रस्तुति से सभी को झूमा दिया।
शुभ संकल्प में कथा सेतु
तीसरे सत्र में स्वामी जी ने कथा क्रम प्रसंग को आगे बढ़ते हुए कहा कि सूतजी महाराज ने शौनकादि ऋषियों की जिज्ञासा पर लोक अवतार स्वरूप भगवान के 24 अवतारों का वर्णन किया। स्वामी जी ने कहा शुभ कर्म अनंत काल तक चलें, हम यही भावना करते है क्योंकि अच्छे कार्यों की कभी पूर्णता नहीं होती है। यही वजह है कि हजारों वर्ष बाद भी हमारी भारतीय संस्कृति आज भी उसी दिव्यता और भव्यता के साथ सुरक्षित है। ऋषियों का संकल्प लोक कल्याण के लिए होता है और उसमे भगवान की कथा सेतु का कार्य करती है।
सन्देश आचरण में करें आत्मसात
आपने कहा कि कथा के मूल सन्देश को समझना चाहिए। जो सार को समझकर उसे अपने आचरण में आत्मसात कर लेता है, उसका श्रवण सार्थक हो जाता है। श्रीमद भागवत जी में संसार के परम धर्म परमात्मा के प्रति प्रेम-अनुराग का निर्वहन का सन्देश दिया गया है। जब तक परमात्मा से प्रेम नहीं होगा तो तब तक परमात्मा तत्व समझ में भी नहीं आएगा। प्रेम और प्रतीति का सीधा सम्बन्ध है। कथा का मूल संदेश तो चार श्लोकों में समाहित है शेष चार हजार श्लोकों में तो उसका विस्तार किया गया है।
लाख जतन के बाद भी
स्वामी जी ने बताया कि दुनिया में केवल एकमात्र सनातन धर्म ही है जो मौत से डरना नहीं बल्कि उसे हंसते हंसते स्वीकार करना सिखाता है। ऋषि चिंतन मौत के भय को दूर करके निर्भय बनाता है। यह भी कैसा आश्चर्य है कि हर आदमी मौत से बचने के लिए लाख जतन करता है लेकिन उसके बाद भी मौत से कोई भी बच नही पाता है। जबकि शास्त्र हमे बताते है कि रोज रोज मौत की चिंता में जलने से बेहतर है कि हम मौत किसकी होती है? यह जानकर मौत को भी मंगलमय बना लेवे। वेदांत की दृष्टि से शरीर का अंत होता है, आत्मा तो अजर और अमर है।