देश और धर्म को प्राथमिकता देने के साथ सांस्कृतिक-नैतिक मूल्यों की करें रक्षा
🔲 पुण्योत्सव के चौथे सत्र में स्वामी चिदंबरानंदजी का आह्वान
हरमुद्दा
रतलाम, (मप्र) 10 अक्टूबर। आज विश्व में भारत महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, इस समय हमें अपने व्यक्तिगत हितों को छोड़कर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना चाहिए। विश्व क्षितिज पर गौरवशाली हिन्दुस्थान के रूप में स्थापित करने में हर नागरिक सहयोग करें। हमारी प्राथमिकता राष्ट्र और धर्म के साथ सांस्कृतिक-नैतिक मूल्यों की रक्षा हो। स्वतंत्रता के एवज में मिली स्वछंदता आत्मघाती बन रही है। आपस का वैर और कटुता हमें भीतर से कमजोर करता है और मौका पाकर कलियुगी आसुरी शक्तियाँ समाज को तोड़ने लगती है। समाज को संगठित करने के लिए कथा सेतु का कार्य करती है।
यह आह्वान महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिदंबरानंद सरस्वती जी महाराज ने “पुण्योत्सव” श्रीमद भागवत कथा में व्यक्त किए। दयाल वाटिका में हरिहर सेवा समिति रतलाम समिति अध्यक्ष व आयोजक मोहनलाल भट्ट व जगदीश राव परिवार ने भागवतजी पोथी पूजन किया।
संत परम्परा का मजाक अक्षम्य
स्वामी जी ने कहा कि आज हमारे शास्त्रों, संत परम्परा का आधुनिक तौर तरीकों से मजाक बनाया जा रहा है। कभी वेबसीरिज में तो कभी संत का लिबास पहनकर बिग बॉस में जो कुछ हो रहा है, वह अक्षम्य है। आज संत समाज के प्रति जो मानसिकता बनाई जा रही है, उसका मुख्य उद्देश्य हमारी सनातन ऋषि संस्कृति की प्रतिष्ठा को धूमिल करना है। हमारे संत महात्माओं को षड्यंत्र का शिकार बनाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार वैदिक सनातन ऋषि संस्कृति का अपमान है। इस षड्यंत्र के विरुद्ध सनातन समाज को एकजुट होकर अपना पुरजोर विरोध दर्ज करवाना होगा।
मौन तोड़िए बनिए मुखर
उन्होंने कहा कि चुप बैठने वाले नुकसान उठाते है। मौन तोड़कर मुखर बनिये। अनीति और अधर्म का सामना करने के लिए अपने भीतर के शेर को जगाइए। सत्य की रक्षा के लिए हर व्यक्ति के भीतर भगवान नरसिह प्रकट होने को तैयार बैठे है। सनातन समाज को जागना पड़ेगा। जो अपनी शक्ति का सामर्थ्य का सर्जनात्मक उपयोग नहीं करते, वे भीड़ में गुम हो जाया करते है। यदि आप सच्चाई के पथ पर अडिग है तो आपकी विजय सुनिश्चित है। निराशा-हताशा को अपने हावी मत होने दीजिये।
कर्तव्य कर्म का पालन जरूरी
आपने कहा कि हर व्यक्ति का यह दायित्व है कि उसके जीवन में भजन, पूजन, उपासना, सत्संग और सेवा को महत्व दिया जाना चाहिए लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम अपने घर, परिवार, समाज, राष्ट्र, देश और धर्म से जुड़े कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेवे। ऐसे कर्तव्यविमुख लोगों को श्रीमद भागवत गीता में कर्मयोग का पथ दिखाया गया है। कर्तव्य कर्म से विमुख होने वाले पलायनवादी लोग न अपना खुद का कल्याण कर पाते है और नहीं राष्ट्र के विकास में अपनी जिम्मेदारी का। भक्त होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप अपनी जिमेदारियों से मुंह मोड़कर हाथ में माला लेकर बैठ जाए। भगवान ने कर्तव्य कर्म को पहला धर्म कहा है।
विचारों का दोगलापन घातक
स्वामीजी ने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान संवाद से ही सम्भव है विवाद से कदापि नहीं। छोटी छोटी बातों को तुल देकर जो अपने रिश्तों में कडवाहट घोल लेते है, वे बाद बहुत पछताते है। परिवार के हर सदस्य की भावनाओं को महत्व दिया जाना चाहिए। विचारों का दोगलापन घातक होता है। जिसके जीवन में शास्त्र वचन का आदर है, वह कभी विचलित नहीं होता है। प्रतिकूल परिस्थिति में भी जिसने अपना संयम और धैर्य बनाये रखा, वह अंततः सफल होता है। कथा-सत्संग हमारी योग्यताओं को विकसित कर झंझटप्रूफ बनाने का कार्य करती है।
परंपरागत तरीके से मनाया श्री कृष्ण जन्मोत्सव
कथा प्रसंग अंतर्गत भगवान श्री राम व कृष्णजन्मोत्सव परंपरागत उत्साह के साथ मनाते हुए बधाईयाँ दी गई। यहां पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी, सुरेश गोरेचा, प्रकाश मजावदिया, शहर महिला कांग्रेस अध्यक्षा मीना जसपाल बग्गा आदि ने आरती की। सुनील भट्ट ने भजनों की प्रस्तुति दी। संचालन कैलाश व्यास ने किया।