आशीष दशोत्तर का विशेष लेख : रोशनी का ख़त
🔲 आशीष दशोत्तर
मेरे शुभचिंतकों,
यह ख़त मैं तुम्हे सोच-समझकर लिख रही हूं। इस ख़त को लिखने का मेरा कोई इरादा नहीं था मगर इन दिनों मैं जिन यातनाओं को सह रहीं हूं, वे तुमसे साझा करने का मन हुआ। कहा भी जाता है कि अपना दुःख किसी को बताओ तो जी हल्का हो जाता है। सो,तुम्हें यह ख़त लिखने बैठ गई।
तुम्हें पता होगा कि यह दौर मेरे खि़लाफ़ एक साजिश रच रहा है। अब तुम कहोगे कि किस दौर में ऐसा नहीं हुआ? यह सच है कि हर दौर में मेरे खि़लाफ़ साजिश रची जाती रही। मेरे दुश्मन और अंधियारे के हिमायतियों ने हर दौर में मुझे परेशान करने का यत्न किया। वे बराबर ऐसा करते रहे पर मैं अपनी इच्छाशक्ति और तुम जैसे हितचिंतकों के संबल से हर विपदा का प्रतिकार करती रही। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज मैं जो कुछ भी हूं वह तुम जैसे साथियों के दम पर ही हूं। पर लगता है अब यह सब सहना ज्यादा दिन नहीं चलेगा।
मैं इन दिनों घुट-घुट कर सांस ले रहीं हूं।मेरे आस-पास अंधकार के कारिन्दों ने सख्त पहरे लगा रखे हैं। अपने विशेश दूत छोड़ रखे हैं। उनकी मंशा है कि मैं किसी भी तरह परेशान रहूं और तिमिर की जय-जयकार हो। पर मुझे विश्वास है ऐसा कभी होगा नहीं। बुरे लोगों की कभी न कभी हार होती ही है। अच्छे लोग परेशान ज़रूर होते हैं पराजित नहीं। मैं इसी पर विश्वास करते हुए अपनी कोशिशें कर रही हूु। इस समय मुझे भयभीत किया जा रहा है।किसी न किसी बहाने मुझे डराया जा रहा है। मेरे जिस्म पर भावनात्मक वार किए जा रहे हैं और मुझे ज़ख्मी किया जा रहा है। कभी अंधकार के हिमायती कहते हैं कि संगीत के सुरों में भी सरहदें होती हैं। वे मेरे लिए गाई जाने वाली ग़ज़लों का प्रतिकार करते हैं। मेरे लिए अपनी सुरीली तान छेड़ने वाले फनकारों को डराते हैं। उन्हें सुरों से दूर रहने की चेतावनी दी जाती है।उन्हें भयभीत किया जाता है और किसी न किसी तरह यह साबित करने की कोशिशें की जाती है कि जो वे कह रहे हैं वही सच है। अपनी बात को सच और बाकी सारे जग को झूठा करार देने के लिए बातों को मोड़ा जा रहा है। बयानों को मरोड़ा जा रहा है। प्यार की लताओं को कंटीली झाड़ियों से घेरा जा रहा है। मुझे आश्चर्य होता है कि हम दुनिया में जाकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ का नारा लगाते हैं और अपने घर में अंधकार के हिमायतियों की ज्यादतियों पर मौन धारण कर लेते हैं।
उजाले के कसीदे पढ़ने वाले लोग भी कभी मेरा पक्ष नहीं लेते। मेरे साथ खड़े होने पर उन्हें अपने चेहरे के दाग़ जाहिर होने का ख़तरा नज़र आता है इसलिए वे मुझसे दूर भागते हैं और बगैर कुछ कहे अंधकार के पैरोकारों को सहारा देते हैं।अपने चेहरों की क्रूर हकीक़त को छिपाने के लिए मेरे हिमायतियों के चेहरों पर कालिख पोती जा रही है। जो भी अच्छा काम करता दिखाई दे रहा है उसकी आलोचना की जा रही है। जो सत्य वचन बोल रहा है उसकी आवाज़ को दबाया जा रहा है। फूलों सी आवाजों को कांटों भरी चेतावनियों से चुप करने की कोषिषें की जा रही है। मेरे हक़ में अपनी-अपनी हथेलियां आगे बढ़ाने वालों के हाथ काटने की कोशिशें हो रही है। मुझे आंधियों से बचाने के लिए मेरे हमसफर बन रहे हमराहों के क़दमों को डिगाया जा रहा है।
मैं इस समय इतनी असहाय महसूस कर रहीं हूं कि कह नहीं सकती। मेरे सामने मेरी इबादत करने वाले मार दिए जा रहे हैं। तम के तानाशाह मेरे हिमायतियों की हत्या कर रहे हैं और अपनी सफलता पर इतरा भी रहे हैं। मैं इस समय उन मित्रों का किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं जो मेरे हक़ में अपनी आवाज़ बुलन्द कर रहे हैं। उनका त्याग महान है। जिस समय सारी दुनिया सम्मान और पुरस्कारों के लिए तिकड़म लगा रही है। सम्मान पाने के लिए कई सम्मान स्थापित किए जा रहे हैं। सम्मान प्रायोजित हो रहे हैं। सम्मान के लिए अपनी गैरत और विचारधारा तक के सौदे किए जा रहे हैं ऐसे में ये मेरे सम्मान को बरकरार रखने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। इनका प्रयास मेरे लिए उन हाथों की हिफाज़त से कम नहीं जो हर आंधी से बचाने के लिए मेरे पास आ जाते हैं। इन कोशिशों के लिए मैं इन सभी क़लमकारों का शुक्रिया अदा कर इनके प्रयास को बौना नहीं करना चाहती पर यह बताकर उन अंधों को यह अहसास कराना चाहती हूं जो सब कुछ देख कर भी अंधे बने हुए हैं।अभी चाहे इनके त्याग और बलिदान में खामियां ढूंढी जा रही है पर आने वाला समय यह बताएगा कि इनका हर क़दम मानवता और मेरे हक़ में अहम था।
इस समय मुझे दायरों में कै़द करने की कोशिशें भी की जा रही है। हर कोई अपने मंसूबों को लेकर सामने आ रहा है और यह कोशिश कर रहा है कि किसी भी तरह उजाले के संसार को तहस-नहस कर दे। पद,प्रतिष्ठा और पैसे के लालच में लोगों ने मेरी अस्मत के सौदे कर दिए गए हैं। जो पापकर्म कभी तिमिर के साये में किए जाते थे वे आज मेरे सामने हो रहे हैं और यह साबित किया जा रहा है कि इस अनर्थ में मैं भी शामिल हूं। कुछ पाने की लालसा में मेरी तिलांजलि दी जा रही है। तुम्हें क्या लगता है कि इन सब बातों से मुझे कुछ लेना-देना नहीं? ये सब काम होना मेरी हत्या के ही समान है।
खैर, बातें काफी हैं। दर्द असीम है। कितना भी कहा जाए कम है। मेरे इस कम लिखे को तुम अधिक समझना। मेरी हर बात को समझने की कोशिश करना। किसी चष्मे से मेरी पीड़ा को न देखना। तुम्हारे मुझ पर कई उपकार हैं। इतना और करना कि मेरी पीड़ा को अपनी समझते हुए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करना। मैं इस विश्वास के साथ जी रही हूं कि जब तक मेरे साथ तुम जैसे मित्र हैं तब तक तीरगी के पक्षधर मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते। मेरी जीत के साथ तुम्हारी जीत जुड़ी है और मेरी हार के साथ तुम्हारी हार। मैं चाहती हूं कि तुम सदा विजयी रहो। बुजुर्गों को मेरा प्रणाम कहते हुए उनसे निवेदन करना कि वे मेरे सर पर सदा की भांति अपना हाथ बनाए रखें। नौनिहालों के सर पर मेरी ओर से तुम अपना हाथ रखना और उन्हें सिखाना कि वे मेरे साथ आ कर मेरा हाथ थामें। आने वाला कल उन्हीं के साथ गुज़ारना है इसलिए उनका साथ मेरे लिए ज़रूरी है। ख़त को यही समाप्त करती हूं इस यकीन के साथ कि मेरी खुशियां सदा तुम अपने साथ रखोगे और अपने गम मुझे देते रहोगे ताकि मैं उन गमों को अपने साये में नहलाकर उन्हें फिर तुम्हें खुशियों के रूप में सौंप सकूं।
तुम्हारी
रोशनी
🔲 आशीष दशोत्तर
12/2,कोेमल नगर, बरबड़ रोड, रतलाम, मोबा. 98270 84966