‘भारत के किसान आंदोलन के साथ हैं नेपाल के वामपंथी रचनाकार’ : समझाना ‘असफल’
🔲 विष्णु कुमारी वाईबा ’पारिजात’ नेपाली रचनाकारों की प्रेरणा की स्रोत
🔲 नरेंद्र गौड़
अनादि काल से भारत और नेपाल के सांस्कृतिक संबध चले आ रहे हैं। दोनों पड़ोसी देश हैं और दोनों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई एवं ऐतिहासिक स्थिति में बहुत अधिक समानताएं हैं। स्वतंत्र भारत और नेपाल ने अपने विशेष संबंधों को 1950 के भारत नेपाल शांति एवं मैत्री संधि के जरिए नई ऊर्जा प्रदान की। नेपाल के गाईघाट निवासी श्रीमती समझाना ’असफल’ वामपंथी तेवर की जानीमानी लेखिका हैं। इनका मानना है कि शोषण तथा अत्याचार के खिलाफ प्रत्येक लेखक को अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए। भारत में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर कहा कि नेपाल के अधिकांश वामपंथी रचनाकार सघर्षरत किसानों के साथ हैं। लेखिका ’समझाना’ रचनाकर्म एवं नेपाल के साहित्य के संबंध में दूरभाष पर इस प्रतिनिधि से हुई बातचीत के प्रस्तुत हैं संपादित अंश
’पारिजात’ प्रेरणा की स्रोत
श्रीमती समझाना ने बताया हमेशा से उनकी प्रेरणा की स्रोत हिमालय सरीखे व्यक्तित्व एवं कृतित्व की धनी रचनाकार ’पारिजात रही हैं। वैसे नेपाल के लोकजीवन को वाणी देने वाले रचनाकारों की हमारे देश में कोई कमी नहीें हैं। इनमें भानुभक्त आचार्य, लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, लेखनाथ पौड्याल, मोतीराम भट्ट बालकृष्ण सम, विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला, डा. भक्त राई, डा. धनप्रसाद सुवेदी, रमेशचंद्र राई, निभा शाह, ज्ञानू अधिकारी, कृष्ण विश्वकर्मा, निर्मोही व्यास, रेशम बिरही, वंदना राई के नाम महत्वपूर्ण जिनकी की रचनाएं बड़े चाव के साथ पढ़ी तथा सराही जाती हंै। गोपाल सिंह नेपाली का नाम आज भी भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में आदर के साथ लिया जाता है। इसी प्रकार वामपंथी लेखक एवं चिंतक नरेंद्र जंग पीटर भी नेपाल में जुझारू रचनाकर्म एवं चिंतन की वजह से बहुत लोकप्रिय है।
नेपाली साहित्य में ’पारिजात’ का महत्व
समझाना ’असफल’ ने दावा किया कि नेपाली साहित्यिक दुनिया में सुश्री पारिजात से बड़ी लेखिका आज तक नहीं हुई तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। वैसे उनका जन्म दार्जलिंग पश्चिम बंगाल भारत में हुआ, लेकिन बाद में वे नेपाल जा बसी थी। उनका असली नाम विष्णु कुमारी वाइबा था, लेकिन वे ‘पारिजात’ उपनाम से रचनाकर्म करती थी। दरअसल पारिजात को हरसिंगार भी कहा जाता है। इसके फूल जब खिलते हैं तब चारों तरफ का वातावरण अत्यंत सुगंधित हो जाता है। ठीक यही लेखिका पारिजात के साथ भी हुआ जिनकी रचनाएं आज भी अजर- अमर हैं और वह लोगों में चेतना की सुगंध बिखेर रही हैं। उनका जन्म 1937 में हुआ। वह जब काफी छोटी थी,ं तभी उनकी मां अमृत मोक्तन का निधन हो गया। ऐसी परिस्थिति में उनकी परवरिश उनके नाना डा. केएन वाइबा ने की, जो एक मनोवैज्ञानिक थे। दार्जलिंग में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1954 में वह काठमांडू नेपाल जा बसी और वहीं स्नातक की शिक्षा ग्रहण की।
सशक्त उपन्यासकार थी ’पारिजात’
समझानाजी ने बताया कि मात्र 26 साल की उम्र में लेखिका पारिजात अनेक शारीरिक रोगों की शिकार हो गई। उनके लकवाग्रस्त होने पर देखभाल बहिन ने की। पारिजात की पहली कविता 1959 में प्रकाशित हुई। उनके तीन कविता संकलन छपे और नेपाल सहित अनेक देशों में उन पर चर्चा हुई। उनकी पहली लघु कहानी ‘मैले नजनमाएको चोरो’ प्रकाशित हुई। पारिजात को नेपाल में सशक्त उपन्यासकार के रूप में ख्याति प्राप्त है।
’सिरीस को फूल’ अत्यंत लोकप्रिय कृति
समझाना असफल ने बताया कि हमारे देश की महान लेखिका पारिजात ने दस उपन्यासों की रचना की जिनमें ’सिरीस को फूल’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। उन्हें इसी उपन्यास पर नेपाल के प्रतिष्ठित ’मदन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्हें अनेक सम्मान एवं अलंकरण प्रदान किए गए, सभी का जिक्र किया जाए तो एक स्वतंत्र किताब लिखना पड़ेगी। वह नेपाल के प्रसिध्द त्रिभुवन विश्वविद्यालय की निर्वाचित सदस्य और ’रलफा साहित्य आंदोलन’ की महत्वपूर्ण हिस्सा थी।
प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना
समझाना ’असफल’ ने बताया कि लेखिका पारिजात ने नेपाल में प्रगतिशील एसआईएल लेखक संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसके अलावा अखिल नेपाली महिला मंच, बांदी सहायता नियोग तथा नेपाल मानव अधिकार संगठन के लिए भी काम किया। वह अविवाहित रही और शारीरिक विकलांगता के बावजूद अपनी सृजनधर्मिता को निरंतर जारी रखा। वर्ष 1993 में इस महान रचनाकार की मृत्यु हो गई। आज भी सिलिगुड़ी में चैक पोस्ट के निकट उनकी मूर्ति देखी जा सकती है, जो भारत में उनकी लोकप्रियता का उदाहरण है। उनकी रचनाओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ और कई विश्वविद्यालयों के कोर्स में उनकी किताबें शामिल हैं। नेपाल को जानना है तो पारिजात की किताबें पढ़ना पर्याप्त है और नेपाली साहित्य का इतिहास उनके उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा।
समझाना ’असफल’ की प्रकाशित रचनाएं
ज्ञात रहे कि श्रीमती समझाना ने वामपंथी तेवर की रचनाओं के माध्यम से बहुत कम समय में अपने देश नेपाल में जो मुकाम हासिल किया, वह अनुकरणीय है। 8 अगस्त 1984 को शनिश्चरे, मोरंग जिले में जन्मी ’समझाना’ ने अपने शैक्षणिक जीवन से ही लिखना प्रारंभ कर दिया। इनकी अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। प्रकाशित पुस्तकों में कविता संकलन-सम्झना का स्वरहरू, सृजना का आलोकहरू, सामूहिक संकलन वर्ष 2063, सम्झना को शैली, सामूहिक संग्रह 2065, स्पर्शन सामूहिक संग्रह 2066, रितुरंग सामूहिक संग्रह 2067 तथा वर्ष 2067 में प्रकाशित कविता संकलन ’रातो गुलाब’ की चर्चा सुधि पाठकों के बीच आज भी हो रही है। ज्ञात रहे कि यहां जो प्रकाशन के वर्ष हैं, वह नेपाली कैलेंडर के हिसाब से हैं। कहना न होगा कि इनकी रचनाओं का मूलस्वर वामपंथी विचारधारा है और नेपाल की वर्तमान व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की कामना करती हंै। इनकी रचनाएं शोषित एवं दलित वर्ग की पक्षधर है। श्रमिकों तथा महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ हैं। समझानाजी अने संस्थाओं एवं संगठनों से जुड़ी हुई हैं। आप प्रगतिशील लेखक संघ की जिला उपाध्यक्ष हैे, संजीवनी नारी साहित्यिक संस्था सदृश्य, समता नारी सशक्तिकरण समूह की अध्यक्ष,उदयपुर नेपाल साहित्य परिषद की कोषाध्यक्ष, चांदनी साहित्य संगम की अध्यक्ष एवं ओरियन्स ग्लोबल मार्केटिंग ग्रुप से भी संबंध्द हैं।
महिला संरक्षण कानून
चर्चा के दौरान समझाना ने बताया कि आज अनेक देशों में महिलाओं की हालत बहुत खराब है और भूमंडलीकरण के दौर में सामाजिक तथा आर्थिक ढ़ांचा और भी छिन्न -भिन्न हो गया है। ऐसी हालत में रचनाकारों का दायित्व है कि वे अपनी दिशा तय करंे और फूल, पत्ती, नदी पहाड़ के बजाए जमीनी बात करें, क्योंकि आज शोषण एवं पूंजीवाद के खिलाफ रचनात्मक पहल कदमी ही लेखन की अनिवार्य शर्त है। इनका कहना था कि नेपाल तथा भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में महिला संरक्षण के नाम पर नियम- कानून अवश्य बन गए हैं, लेकिन इनका कितना पालन होता है यह बात किसी से छिपी नहीं है। एक सवाल के जवाब में इन्होंने कहा कि सामंती मूल्य आधारित सामाजिक ढ़ांचे को तोड़ना रचनाकारों का प्रमुख दायित्व है।
नेपालियों का जीवन कठिन
समझाना का कहना था कि बेरोजगारी आज वैश्विक संकट बन चुका है। कोरोना के कारण बेराजगारी में और भी बढोतरी हुई। पूंजीवाद के शिकंजे में आम आदमी पिसता जा रहा है। नेपाल में पहाड़ों तथा शासन व्यवस्था में निकम्मेपन के कारण लोग गरीबी का पहाड़ अपने कंधों पर ढ़ोते हुए जीवन यापन कर रहे हैं। हमारे यहां मवेशियों के लिए चारा और ईंधन लाने के लिए महिलाओं को ऊंचे पहाड़ों की चढ़ाई चढना पड़ती है। ज्यादातर खेती सीढ़ीदार होती है, ऐसे में उपज मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले बहुत कम होती है। हमारे यहां के अनेक युवक भारत सहित अन्य देशों में रोजीरोटी के लिए निकल जाते हैं और उनके व्दारा जो पैसा अपने घरों को भेजा जाता है, वह नेपाली अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा पर्यटन से भी आय होती है। यहां उल्लेखनीय है कि दुनिया का कोई भी देश नेपाल को आज तक गुलाम नहीं बना पाया।
’समझाना’ की चुनिंदा कविताएं
तुम कवि बनों
तुम कवि बनों
आप तो कवि ही होंगे
कविता लिखते हुए
समाज में जो भी अन्याय
यातनाएं असमानता
और भेदभाव हैं
उस सभी को देखो
तुम कवि बनों
और एक कविता लिखो
इसलिए कि कवि
स्वतंत्रता का सेनानी है
कवि गुलामी का
अंतिम संस्कार है
कवि विश्वास की खान है
कवि की आंखें देखना चाहती
दुनिया में बचपन की मासूमियत
नहीं देखना चाहती अन्याय
अत्याचार नहीं देखना
चाहती कवि की आंखें
तुम शायर बनों
तुम कवि बनों
क्या देखता है कवि?
अंतरात्मा में
झांक लेने की सामर्थ
रखता है कवि
जिसे और कोई नहीं
देख सकता
कवि अपनी कलम से
अन्याय मिटा सकता है
जिसे नहीं मिटा सकता कोई दूसरा
कवि की कविता में जीवन
संघर्ष के गुलाब खिलते हैं
कवि के स्वरों से दुखी मां के
चेहरे की झुर्रियां खिल-
खिल उठती हैं
कवि साहस का सुदृढ़
पहाड़ हुआ करता है़
उसका काव्य क्रांति का शंख है
कवि दिलों का आकर्षण है
उसकी कविता एक
समृध्द समाज के
निर्माण की क्षमता रखती है।
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यात्रा
हिमयात्रा
पानी की यात्रा
रेगिस्तान की यात्रा
मरूभूमि की यात्रा
जिंदगी ऐसी ही नहीं है
हंसी- खुशी
और विश्वास बांटते हुए
एक पूरा अनुभव है
जीवन।
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मत लिखो
मत लिखो
रोने और दर्द की
वही कहानी
उन्होंने दोनों कानों के
दरवाजे बंद कर रखे हैं
मेरी बात मानों
दर्द से चिल्लाना
शहीदों का दिल तोड़ देता है
मैं तुम से कहूंगा
मत लिखो
बलात्कार की शिकार
बेटी का डर
उसकी मौत के साथ मिला हुआ है
रंगीनियत के नाम पर
मैं ग्रामीण जीवन के
सौंदर्य पर लिखने को
नहीं कहूंगा क्योंकि,
यह जान लो वहां की
हकीकत कठिन
जीवन संघर्ष है
आजीविका के लिए
दिलों को छूने वाले गीत
तभी मजा देते हैं
उनमें जब हो जीवन संगीत
मैं समता समानता के बारे में
लिखने की कोशिश करता हूं
मैं क्या देखना चाहता हूं?
क्या झेलने की कोशिश करता हूं?
मेरे देश का शासक
मुझे पसंद नहीं
इसलिए मैं क्रांति की
घोषणा करता हूं
मैं विद्र्रोह की आवाज सुनूंगा।
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प्यार के गीत
दुख में भी आ जाती थी हंसी
वह जीवन कितना सुंदर था
शायद दिल का दर्द भी
एक खूबसूरत कहानी थी
मैं अपने दिल को सजाकर
जी सकता था
आज भी यदि
रिश्ते सच में मीठे हो
मैं सुंदरता के साथ
गा सकता हूं प्यार के गीत