संजय जोशी “सजग” का व्यंग्य : वैक्सीन के पहले के सीन
🔲 संजय जोशी “सजग”
वैक्सीन आने के समाचार न्यूज़ चैनलों पर जोरों पर है कब आएगी ? कितने की होगी ? कितने डोज़ लगाने पड़ेंगे ?और कितने समय असर रहेगा, इन प्रश्नों के उत्तर भविष्य तय करेगा। मैंने एक डॉकटर साहब से पूछ लिया कि वैक्सीन आने वाली है ? आपकी क्या राय है ? वे मायूस होकर बोले कि हमारे देश में तो वैक्सीन क्या काम करेगी ? उससे ज्यादा तो असरकारी चुनाव है।
चुनाव की घोषणा होते ही देश में कोरोना के आकड़े कम हो गए थे और चुनाव खत्म होते ही आंकड़े अचानक बढ़ना यह सिद्ध करता है कि कोरोना भी चुनाव से डरता है। और नेता किसी से नहीं डरता है। खुद नियम तोड़कर कार्यकर्ता और जनता को प्रेरणा देता है उस देश में कोरोना किसी का क्या उखाड़ लेगा ? कोरोना को हटाने का एक मूलमंत्र है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव करवा दिए जाए तो कोरोना बिस्तर बांध लेगा। कोरोना का कहर इतना भयावह है, फिर भी आम जनता को खौफ कहां है? होटलें, ढाबे आबाद है। शादियाँ धड़ल्ले से हो रही है। गाइड लाइन से परे बसें ओवरलोड है, चौराहे मार्केट भीड़ से भरे पड़े हैं, ईमानदारी से केवल शिक्षण संस्थाए ही गाइड लाइन पालन कर रही है। कोरोना ने बच्चों की दिनचर्या ही बिगाड़ दी है। मास्क ही वैक्सीन है का स्लोगन भी चला तो बहुत, पर लोग बेखौफ रहे और मास्क लगाने की जरूरत ही नहीं समझी, मास्क पहनने के लिए सरकारों ने फाइन लगाया फिर भी पूर्णतया पालन कराने में सफल नहीं हो रही है और जो ईमानदारी से लगा के घूम रहे है उन्हें डरपोक मानकर कुछ तो उपहास कर रहे है।
जनजागृति लाने के सभी प्रयास सफल नहीं हुए फिर लोगों ने अपने आपको अपने हिसाब से ही चलाया। टेलीफोन /मोबाईल कॉल करने से पहले संदेश सुन -सुन कर भी अनसुना क़र दिया उनमें बुद्धिजीवी और पढ़े लिखे लोग भी शामिल है। जब इतना सब कुछ है तो वैक्सीन आने का इंतजार सिर्फ बनाने वालो को ही लगता है। आम जनता की गतिविधि देख कर तो लगता है कि वैक्सीन आने तक तो सब सामान्य हो जाएगा। चुनाव में फ्री वैक्सीन लगाने की लॉलीपाप देखकर चुनाव में विजयश्री प्राप्त कर ली। अब किसको चिंता है ? वेक्सीन आ रही है टीवी चैनलों का बस चलता तो मार्च अप्रैल में लॉकडाउन के समय ही ले आते। ट्रायल के कायल एक प्रदेश के मंत्री ने वैक्सीन लगवाई उसके बाद कोरोना पॉजिटिव आना वैक्सीन पर प्रश्नचिन्ह नहीं तो क्या हैं?
चिकित्सा के क्षेत्र में ड्रग ट्रायल से घायल करने का बेहद खौफनाक धंधा खूब फल-फूल रहा है। अंजाम देने वाले यमराज रूपी कुछ डाक्टर ही होते है, जिससे, डॉक्टर के पास जाने का नाम सुनते ही हाथ पाँव सुन्न हो जाते है। कहीं यह ट्रायल तो नहीं करेगा। पहले चूहों, बिल्ली और बंदरो पर होता था। आजकल मानव को भी उसी श्रेणी में ला कर पटक दिया क्योंकि जानवरों को तो बचाने के लिए विश्व स्तर पर प्रयास किए गए। पर मानव को मानव रूपी दानव से ही खतरा बढ़ गया। ट्रायल के कहर से कभी कभी लगता है कि झोला छाप डाक्टर को क्यों कोसा जाता है। वह भी ट्रायल ही तो करता है। भ्रष्टाचार के शिकंजे में जकड़े देश की जनता सब सहने को मजबूर है। अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे हाल बेहाल है। ड्रग ट्रायल का जाल बिछा है। वैक्सीन जल्दी लाने में कई कम्पनियां लगी है कि कौन जल्दी मार्केट में उतारे। उस के लिए ट्रायल पर ट्रायल चल रहे है।
जल्दी के वायरस के चक्कर में कोरोना वायरस से लड़ने में वैक्सीन कितनी कारगर होगी यह तो समय बताएगा। वैक्सीन कब आएगी यह यक्ष प्रश्न सब के मन में चल रहा है। वैक्सीन के पहले के सीन देखकर तो लगता है कि वैक्सीन के आने के पहले ही कोरोना दम तोड़ देगा। मैंने कहा डॉक्टर साहब आपने वैक्सीन के पहले के जो सीन दिखाये वह हकीकत है कि सरकार भी अपनी गाइड लाइन बना तो देती है पर पालन नहीं करा पाती और चुनावों के चक्कर में सब गुड़ गोबर कर देती है। वैक्सीन आने बाद का परिदृश्य कुछ ज्यादा नहीं बदलेगा।
🔲 संजय जोशी “सजग “