हरमुद्दा
रतलाम, 19 मार्च। होली बसंत ऋतु में मनाए जाने वाला उल्लास का उत्सव है। वैसे तो इस त्योहार की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन गुलाल उड़ाकर किया जाती है, लेकिन होली और धुलैंडी के दिन इसे देशभर में मनाया जाता है। रंगपंचमी इस त्योहार का अंतिम दिन है। इस त्योहार को देश के कई भागों में कुछ अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। 20 मार्च को होली दहन होगा और 21 मार्च को रंग पर्व धुलेंडी मनाएंगे।


भगोरिया
डॉ. अभय ओहरी ने बताया कि यह मध्य प्रदेश के धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्र का उत्सव है, जो होली का ही एक रूप है। यहां के आदिवासी लोग इस उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर हाट-बाजार और मेले के रूप में होली का रंग पसरा होता है। यहां नवयुवक व युवतियां अपने जीवनसाथी का चुनाव करते हैं।
रंग पंचमी

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संस्कृति की जानकार आराधना निगुडकर ने बताया कि महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंग सूखा गुलाल होता है। राजस्थान के जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों का आयोजन होता है और रंगों को उड़ाया जाता है। जयपुर में विदेशी पर्यटक भी होली के रंगों का आनंद हाथी पर बैठकर उठाते हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर,रतलाम में रंग मिश्रित पानी का छिड़काव किया जाता है। मालवा में बैंड बाजे के साथ होली का जुलूस गैर निकालने की परंपरा है।
लठमार होली
परंपरा को मानने वाले मन्नु गवली ने बताया श्रीकृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। प्राचीन परंपरा को निभाते हुए नंदगांव से युवकों की टोलियां बरसाने आती हैं और वहां की महिलाओं पर रंग डालती हैं। महिलाएं युवकों पर लाठियां बरसाती हैं, पर कोई घायल नहीं होता।
फगुआ
डॉ. व्हायके मिश्रा ने बताया कि बिहार में बसंत पंचमी के बाद से ही होली के गीत गाए जाते हैं। कुछ लोग इन गीतों को फाग कहते हैं, लेकिन इसे फगुआ भी कहा जाता है। परंपरा यह है कि सुबह धूल, कीचड़ से होली खेली जाती है। दोपहर को नहा-धोकर रंग खेला जाता है। फिर शाम को गुलाल लगाकर हर घर के दरवाजे पर घूमकर फगुआ गाया जाता है।
गीत बैठकी
यायावर प्रवृति के सुरेश त्रिवेदी ने बताया उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के नैनीताल और अल्मोड़ा जिले में होली पर गीत बैठकी का आयोजन किया जाता है। यहां होली से पहले ही होली की सुरीली महफिलें जमने लगती हैं। बैठकों में राग-रागिनियों के साथ मीरा बाई और मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की रचनाएं सुनने को मिलती हैं।
शिमगो
विजू पिल्लई ने बताया कि गोवा के शिमगो उत्सव में लोग बसंत का स्वागत करने के लिए रंगों से खेलते हैं। होली के दिन पणजी में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं और जुलूस निकाला जाता है।
याओसांग
पर्यटन प्रेमी हिमांशु जोशी ने बताया मणिपुर में याओसांग पर्व मनाया जाता है, जो होली से मिलता जुलता है। यहां धुलैंडी वाले दिन को पिचकारी कहते हैं। याओसांग का अर्थ छोटी सी झोपड़ी है, जो फागुन पूर्णिमा के दिन नदी सरोवर के तट पर बनाई जाती है। इसमें चैतन्य महाप्रभु की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पूजन के बाद झोपड़ी को जला दिया जाता है। याओसांग की राख को लोग अपने मस्तक पर लगाते हैं।
दोल जात्रा
नीलिमा सोहनी बंदोपाध्याय ने बताया दोल जात्रा बंगाल में होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं। सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है। दोल का अर्थ झूला है। झूले पर राधा-कृष्ण की मूर्तियां रखकर कीर्तन किया जाता है। गुलाल और रंगों से होली खेली जाती है। शांति निकेतन में यह उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाते है।

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