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अकर्मण्य जनप्रतिनिधि, अपाहिज अधिकारी और जार जार शहर, हर तरफ मुश्किल का कहर

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हरमुद्दा

रतलाम, 26 मार्च। बात अगर सफाई की हो तो इंदौर का नाम सामने आता ही है। राष्ट्रीय स्तर पर इंदौर की सफाई के मामले में शिखर की स्थिति और इंदौर नगर निगम के कर्ताधर्ताओं की सफाई के प्रति सजगता ने इंदौर को अलग प्रतिष्ठा दिलाई है । वहीं रतलाम शहर सफाई के मामले में निकृष्टतम शहरों में अपना स्थान बनाए हुए हैं। रंग पंचमी के उत्सव में सड़कों की हालत इंदौर की भी खराब हुई थी लेकिन सफाई कर्मियीं ने शाम ढलते ढलते सड़कों की मुकम्मल सफाई कर सड़कें चका चक कर दी। रतलाम के प्रसिद्ध सराफा बाजार में मंगलवार दोपहर तक सड़कों पर बिखरे चिथड़ों से ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ा हादसा हो गया है, लाशें उठा ली है और कपड़े पड़े है।

यह दुर्भाग्य ही है शहर का, जिसे कर्महीन जनप्रतिनिधि और निकम्मे अधिकारी सालों से मिलते रहे हैं। सफाई की निरन्तर अनदेखी शहर की जनता के बीच आक्रामक उबाल का कारण निर्मित करती है। शहर के हाल मोहनजोदड़ो की खुदाई और पुरातात्विक दृष्टि से कुछ भी हासिल न होने के बाद काम छोड़ कर चले गए इतिहासकारों की तलाश कर ही रहा है। शहर की कोई सड़क गली और मोहल्ला नहीं है, जिसमें खुदाई की मिट्टी और निगम अधिकारियों के भ्रष्टाचार के अवशेष ना पड़े हो।IMG_20190326_172441
सच पूछे तो लोकसभा चुनाव के समय वोट की मांग को लेकर दरवाजा खटखटाने वाले सभी पार्टियों के नेता यह सोचकर कर भयभीत हैं कि धूल, मिट्टी और गंदगी से रोज परेशान होते लोगों की प्रतिक्रिया कहीं आक्रामक होकर जूतम पेजारी तक न आ जाए। शहर की नालियां कचरे के दबाव से त्राहि-त्राहि कर रही है। सड़कें धूल का गुबार बनी है।
लेना चाहिए सबकIMG_20190326_134052
रंग पंचमी के मौके पर शहर में सफाई कर्मियों की अकर्मण्यताऔर नगर निगम आयुक्त की उपेक्षा का नजारा हर तरफ साफ साफ दिखाई दे रहा है। जनचर्चा में रतलाम को अघोषित कब्रिस्तान बताया जा रहा है। शहर कभी समस्याओं को लेकर मुखर आंदोलन कर जिम्मेदारों के होश ठिकाने लगाने वाले रणवीरों से भरा पड़ा था लेकिन आज संघर्ष करने वाले न तो नेता रहे न चिमटी भरने वाली जनता ।चांदनीचौक से चौमुखी पुल तक का नजारा ऐसा है जैसे कोई गम्भीर हादसा हुआ हो। IMG_20190326_162608सराफा व्यापारी डॉ. राजेन्द्र शर्मा का कहना है कि लोग रोष में सड़कों पर फटे हुए कपड़ों के सैलाब को दिखा रहे हैं, जो माकूल सफाई ना होने के कारण जहां के तहां पड़े हैं। सड़कों पर बिखरी गंदगी और कीचड़ भरे रास्तों ने आम लोगों का चलना फिरना मुश्किल कर दिया है। रतलाम की महापौर व अधिकारियों को इंदौर से सबक लेना चाहिए। रतलाम की जनता में इंदौर के सफाई कर्मियों की मुस्तैदी और सफाई के लिए सक्रियता, यहां सराहना का कारण बनी है।
“यथा राजा तथाप्रजा” की कहानी बयांScreenshot_2019-03-26-16-27-21-574_com.whatsapp
प्रबन्धक उदित अग्रवाल का कहना है कि रतलाम की सडकों पर चारों तरफ फैली गंदगी है। जनहित के तथाकथित रक्षक जनप्रतिनिधि को मुंह चिढ़ा रही है। अकर्मण्य नेता और नगर निगम के आयुक्त को अपाहिज होने की पोल खोल रही है। बहरहाल बेशुमार गंदगी के बीच मिट्टी और धूल के लगातार प्रहार झेल रही जनता द्वारा अव्यवस्था के विरुद्ध अब भी कोई आंदोलन नहीं दिखाई देना “यथा राजा तथा प्रजा” की कहानी बयां कर रहा है।
कोई कार्य योजना नहींScreenshot_2019-03-26-16-25-22-923_com.whatsapp
ब्रजेश त्रिवेदी का कहना है रंग पंचमी उत्सव की कोई कार्य योजना नहीं थी। कुल मिलाकर अकर्मण्य जनप्रतिनिधि, अपाहिज अधिकारी और जार जार शहर, हर तरफ मुश्किल कहर ही है। इंदौर में तीन घण्टे तक अतिरिक्त जल प्रदाय किया, वहीं रतलाम में पीने का पानी ही देर शाम को मिला।
इंदौर सफाई और रतलाम गंदगी की मिसालScreenshot_2019-03-26-16-26-36-198_com.whatsapp
शिक्षिका निकिता तिवारी का कहना है सफाई के मामले में इंदौर ने अपना प्रभुत्व राष्ट्रीय स्तर पर बना लिया है। इंदौर सफाई और रतलाम की गंदगी एक दूसरे के विरुद्ध खड़ी मिसाल है। शहरों में फैली गंदगी से स्पष्ट होता है कि रोजमर्रा की सफाई और रंग पंचमी के हुड़दंगी उत्सव के बाद सड़कों पर आवाजाही निर्बाध करने के लिए नगर निगम की ओर से की जाने वाली सफाई को लेकर कोई योजना नहीं थी।
आतंकी गन्दगी को बर्दाश्त करते लोग
यहां तो विडंबना ही है कि नगर निगम की आतंकी गन्दगी को लगातार बर्दाश्त करने वाले इस शहर में नगर निगम आयुक्त को फ़र्ज़ समझाने वाला कोई सक्रिय जनप्रतिनिधि नहीं है।
आम जनता है कि लगातार आतंकी गंदगी को बर्दाश्त कर रही है। चुनाव के वक्त वोट मांगने वाले छुट भैया सड़कों पर गन्दगी को ठिठोली में टाल रहे हैं, जो चुनाव में वोटों की अफरा-तफरी का सबब बन सकता है। मुख्य सड़कों पर होली बाजो के ढेरों कपड़ों के चिथड़े पड़े हुए हैं, जो एक बानगी देखने पर लगता है शहर में कोई बड़े हादसे के गुजर जाने की तस्वीर पेश कर रहे हो।

पक्ष की गुंजाइश ही नहीं
इस “मुद्दे” पर “हरमुद्दा” ने अकर्मण्य प्रतिनिधि और अपाहिज अधिकारियों से पक्ष जानने की जरूरत नहीं समझी। क्योंकि वे कुछ बोलने का अधिकार ही नहीं रखते है। “हरमुद्दा” शहरवासियों को लज्जतदार या आश्वासनी विचार पढ़ाने के पक्ष में नहीं है।

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