वे दिखावे के लिए नहीं सिखाने के लिए संदेश देते हैं सफाई का
हरमुद्दा
रतलाम, 28 मार्च। माना कि शहरवासी उत्सव प्रेमी है। उत्सव मनाना परंपरा में शुमार है लेकिन उत्सव की सार्थकता तभी है, जब त्योहार का आनन्द अपने पीछे अनुशासनहीनता और निरंकुशता की निशानियां न छोड़ जाए। आज के दौर में जब सफाई जन जागरूकता का एक महत्वपूर्ण कैम्पेन बनी है। तब भी सड़क समारोह और जुलूसों के गुजरने के बाद सड़कों पर भीषण गंदगी फैली दिखाई देती है और सड़क की गंदगी उस सामाजिक उसत्व और उत्सव मनाने वाले समाज अथवा धर्म पंथों की आंतरिक अनुशासन और नागरिक सुविधाओं के प्रति सहभागिता जैसे आचरणों के लिए सम्मान की भावना को साफ कर जाती है।
साथ ही यह भी स्पष्ट कर जाती है कि समाज की शैक्षिक और जन दुविधाओं के प्रति व्यक्तिगत समझदारी की स्थिति क्या है। निःसन्देह कुछ धर्म पंथों के प्रमुखों ने स्वच्छता और व्यक्तिगत अनुशासन के निर्वाह को धर्म संदेशों में सबसे ऊपर रखते हुए एक मिसाल कायम की है लेकिन इसके विपरीत धार्मिक उच्चता और सबके प्राचीन धर्म के अनुयायी होने की शेखी बघारने का कोई अवसर छोड़ते नहीं लेकिन सामाजिक चल समारोह या सड़क पर आयोजित समारोहों के बाद फैलाई गई गंदगी को देख कर उनकी जन दुविधाओं को दूर करने में खुद उनकी पहल, नीयत और सोच स्पष्ट हो जाती है। ऐसा ही एक सिंहावलोकन “हरमुद्दा” की टीम ने किया और पाया कि “शहर की परेशानियों बढाने में लापरवाह समाज की अपनी क्या भूमिका है” विषय पर पड़ताल की तो हाल हकीकत जो सामने आई वो भटकों को राह दिखाने का काम करती है ।
स्वच्छता में अव्वल बोहरा समाज
शहर में बोहरा समाज सिख समाज जब कोई उत्सव मनाता है तो सड़कों की सफाई की कार्य योजना पहले से बनती है। यह दिखावे के लिए नहीं बल्कि आम जनता के बीच राष्ट्रीय होने के छोटे छोटे काम करके देश और व्यवस्था निर्माण में अपनी सहभागिता का सबक छोड़ जाती है ।
सिख समाज देता है सफाई का संदेश
सिख समाज के कोई भी चल समारोह अथवा आयोजन हो तो समाज के लोग सज धज कर आगे चलने को शान समझने के बजाए झाड़ू लेकर सफाई करने का काम संभालते है। हजारों लोगों के सड़क से गुजर जाने के बाद पहले से बेहतर सड़क सफाई को देख कर सराहना से कोई आने आपको रोक नहीं सकता ।
दूसरे धर्मावलम्बी नहीं सीखते सफाई में योगदान का महत्व
विडंबना है कि शहरवासी और दूसरे समाज इससे सीखते नहीं है। खासकर सनातन और मुस्लिम धर्मावलंबी और इनसे जुड़ी सामाजिक संस्थाएं अपने त्योहारी जुनून में सड़कों पर गंदगी का भयावह मंज़र छोड़ जाते हैं । आयोजन के तहत सरेराह स्वागत करती संस्था एवं परिजन। सभी लोग सड़कों पर कचरा, प्लासिक, डिस्पोजल फेंक कर चले जाते हैं।
बताते हुए अफसोस होता है। लेकिन बात सही है और जो सही होता है वह कड़वा भी होता है। सनातनी और मुस्लिम धर्मावलंबियों के जो आयोजन सड़कों पर होते हैं, उनके निशान अगले दिन तक मौजूद रहते हैं। उनके सामाजिक नियंत्रण में सफाई में अपनी खुद की भूमिका का कोई पाठ नहीं होता। गंदगी हम करेंगे और सफाई कोई और करेगा ये सोच घातक है। गौरतलब है कि फूलों से स्वागत करते हैं तो सड़कों पर फूलों की परत जमा हो जाती है जिससे वाहन फिसलते हैं। चालक चोटिल हो जाते हैं। ऐसी संस्थाएं स्वागत के बाद फूलों को साफ कर फेंकने की व्यवस्था भी करें। इसके लिए प्रशासनिक अमला भी मुस्तैद रहें। सहयोग की जरूरत हो तो जिम्मेदार प्रशासन से मदद की बात करें।
जब सनातनी का समारोह सड़कों पर निकलता है और कचरा सड़कों पर पड़ा रहता है, तो बहुत दुख होता है। जिनका उत्सव मना रहे हैं, वे यह संदेश नहीं देते कि अपने प्यारे शहर को गन्दा करो। कचरा फैलाओ। सनातनी को भी चाहिए कि वे उत्सवी परंपरा का पालन करें, लेकिन सफाई का विशेष ध्यान रखें। दिमाग के दिवालियापन का परिचय ना दें।
जब शहर में गुरु नानकदेव जी का चल समारोह निकलता है तो प्रारंभ में सड़कों को पानी से साफ करते हैं।अंत में कई सारे लोग कचरा उठाकर गाड़ी में डालते रहते हैं। उसमें कोई छोटा बड़ा नहीं होता। यह सेवा होती है। बोहरा समाज भी जब उत्सव मनाता है कचरे की सफाई की जिम्मेदारी लेते हैं। आका मौला कि बातों का जीवन में निर्वाह करते हैं। अपने शहर को साफ और स्वच्छ रखने में आगे रहते हैं तो फिर हम सनातनी इस मामले में पीछे क्यों रह जाते हैं? सोचने की बात है चिंतन करने की बात है और अमल करने की बात है।
300 साल पुरानी परंपरा स्वच्छता की
गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा के ज्ञानी मानसिंह जी ने हरमुद्दा से चर्चा में बताया वैसे सभी धर्म और पंथ सनातन धर्म की शाखाएं हैं गुरु गोविंद सिंह जी के समय से सेवा पंथी मिशन चल रहा है। उनके साथ कन्हैया जी सेवक थे जो मुगलों से युद्ध में घायल सिख व मुगलों को मलहम लगाते थे। दोस्त और दुश्मन में भेद नहीं रखते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने पट्टी देकर कहा जख्म पर मलहम लगाने के साथ पट्टी भी बाधों। तब से मुगल उन पर आक्रमण नहीं करते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा है जहां सफाई, स्वच्छता और पवित्रता होती है, वहां सच्चाई होती है। नगर कीर्तन या गुरुदेव की शोभायात्रा।मपहले मश्क से पानी छिड़काव कर रास्ते को साफ करते थे। 300 साल पुरानी परंपरा का पालन आज पर्यंत तक किया जा रहा है।
आदेश का पालन सर्वोपरि
बोहरा समाज के प्रवक्ता सलीम आरिफ का कहना है कि धर्मगुरु की हर एक बात का पालन समाज करता है। धर्मगुरु डॉ. मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब का संदेश था “ग्रीन इंडिया क्लीन इंडिया”। हमारे जो भी आयोजन होते हैं, चाहे जमात खाने में हो या फिर शहर में। सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं। देशभर के साथ रतलाम में भी नजाफत कमेटी बनी है। जिसके सदस्य सफाई की पूरी व्यवस्था का ध्यान रखते हैं। पिछले कुछ सालों में चल समारोह के दौरान आतिशबाजी और फूलों से स्वागत को भी बंद कर दिया गया है। समाज में कमेटी सदस्य सड़कों पर से कचरा साफ करते हैं, वहीं जमात खाने में भी अन्न का दाना तक फेंकने नहीं दिया जाता।खाद्य सामग्री फेंकना भी गुनाह है। धर्म और समाज की परंपरा का पालन करना सभी का फर्ज है
जागरूकता लाएंगे
सनातन सोश्यल ग्रुप के अध्यक्ष मुन्नालाल शर्मा ने कहा कि बात तो सही है। सनातन संस्कृति के आयोजनों में सफाई के लिए कार्य योजना नहीं बनती, जबकि सनातन धर्म में भी स्वच्छता को महत्व दिया गया। सिख व बोहरा समाज के स्वच्छता सन्देश का अनुकरण किया जाएगा। आयोजनों में इसके लिए जागरूक किया जाएगा।
होगा स्वच्छता के सन्देश का अनुकरण
शहर काजी अहमद अली ने कहा कि अपने शहर को स्वच्छ एवं सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास होने चाहिए। मुस्लिम समाज को भी चाहिए कि वह अपने आयोजन के दौरान सफाई व्यवस्था का पूरा ध्यान रखें। जो भी संस्थाएं स्वागत करती है। खाना पीना करती है, तो वहां पर आसपास जो कचरा हो जाता है। उसे समेटकर डस्टबिन में डालने का कार्य करें। स्वागतकर्ता ऐसे कार्यकर्ता भी नियुक्त करें, ताकि सफाई बनी रहे। शहर में होने वाले आयोजनों के लिए इस बात की समझाइश दी जाएगी। स्वच्छता के सन्देश का अनुकरण किया जाएगा।