अपनों को खोने से कहीं ज्यादा अंतिम समय में नहीं मिल पाने व देखने का दुख
🔲 कोरोना की मार से हर कोई लाचार–बेबस, व्यवस्थाअों में सुधार की जगह अौर बिगड़ रहे हालात
🔲 पारदर्शिता के लिए भर्ती मरीजों की अंदरुनी गतिविधियाें पर सीसीटीवी कैमरे से नजर रखना जरूरी
🔲 हेमंत भट्ट
रतलाम, 17 अप्रैल। देश–प्रदेश के साथ जिले में कोरोना संक्रमण की दूसरी खतरनाक लहर ने हर किसी को लाचार अौर बेबस कर दिया है। हर स्तर पर व्यवस्थाअों में सुधार की बजाय हालात लगातार बिगड़ रहे हैं अौर स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। ऐसे में कोरोना की चपेट में अाए परिवारों को अपनों को खोने से ज्यादा अंतिम समय में उन्हें देखने अौर ना मिल पाने की टीस जीवन भर साथ रहेगी। अपनों की याद के दौरान पीड़ित परिवारों को कोरोना महामारी के खतरनाक/भयावह मंजर के दृश्य आंखों में तैरते नजर अाएंगे।
मुद्दे की बात तो यह है कि शासन–प्रशासन द्वारा लगातार व्यवस्थाअों में सुधार के बड़े–बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी जुदा है। स्वजनों को न तो अस्पतालों में भर्ती मरीजों की स्थिति का पता लग पा रहा है अौर न ही वे अपनों की सेवा कर पा रहे हैं। अस्पतालों की पारदर्शिता के लिए हर तरफ से अंदरुनी गतिविधियाें पर सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से नजर रखने की मांग उठ रही है, लेकिन जिम्मेदार मूक दर्शक की भूमिका में नजर अा रहे हैं।देशभर में कोरोना संक्रमण की दूसरी भयावह लहर ने एक अनार अौर सौ बीमार वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है। देश में कहीं भी महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त इंतजामों के अभाव में हर दिन मौत का अांकड़ा राकेट की गति की तरह बढ़ता जा रहा है अौर अस्पतालों में अपनों को खोने वालों की सिसकियां थमने का नाम नहीं ले रही है।
जिम्मेदार नहीं जाग रहे हैं कुंभकर्णी नींद से
लगातार एंबुलेंस के साइरन की गूंज ने हर किसी को खौफजदा कर दिया है। अस्पतालों में मरीजों की समुचित देखभाल नहीं करने अौर अन्य अव्यवस्थाअों को लेकर हर दिन अाक्रोश के स्वर मुखर हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार कुंभकर्णी नींद से नहीं जाग रहे हैं।
अव्यवस्थाअों से धूमिल हो रही मेडिकल कालेज की छवि
कहने को जिलेवासियों को करोड़ों रुपए के शासकीय मेडिकल कालेज की सौगात मिली है, लेकिन व्याप्त अव्यवस्थाअों से सरकारी मेडिकल कालेज की छवि धूमिल होती जा रही है।लगातार मौताें से कोरोना पीड़ितों के स्वजनों में मेडिकल कालेज की व्यवस्थाअों से भरोसा उठता जा रहा है। ऐसे भयावह दौर में भी कई लोग अापदा को अवसर बनाने में बाज नहीं अा रहे हैं। निजी अस्पतालों के भारी–भरकम बिल भरने के बाद भी हालात बेकाबू है। स्थिति गंभीर होने पर निजी अस्पतालों द्वारा पल्ला झाड़ते हुए मरीजों को सरकार के भरोसे छोड़ा जा रहा है। सरकारी अमले के साथ कई समाजसेवी अौर सामाजिक संगठन अपने–अपने स्तर पर व्यवस्थाअों में सुधार के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के बढ़ते कहर से तमाम प्रयासों पर पानी फिरता नजर अा रहा है।
अंतिम संस्कार की तुलना में संदेह पैदा कर रहे मौत के अांकड़े
कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों के फेफड़े तीन दिन में खराब होने की बात सामने आ रही है। ऐसी स्थितियों में मरीज की रिपोर्ट अगर तीन से पांच दिन में आ रही है तो आप समझ सकते हैं कि मरीज अपनी जान से ही हाथ धो बैठेगा। कालेज में डाक्टरों के राउंड भी समय पर नहीं हो रहे हैं। जबकि प्रत्येक दो घंटे में मरीजों के पास पहुंचकर उसकी जानकारी ली जाना चाहिए। मरीजों की रिपोर्ट को 4 से 5 घंटे में आना तय किया जाना चाहिए। कालेज से प्राप्त मरीजों की मौत के आंकड़े प्रतिदिन दो–तीन–चार बताए जा रहे हैं और कोविड मरीजों के मुक्तिधाम पर 10 से भी ज्यादा शव अंतिम संस्कार के लिए पहुंच रहे हैं। इससे हर किसी में संदेह की स्थिति निर्मित हो रही है।
हर जगह अापदा को अवसर बनाने वालों की कमी भी कमी नहीं
कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में भी कई लोग अापदा को अवसर बनाने में पीछे नहीं हट रहे हैं। निजी अस्पतालों में लूट–खसोट का धंधा तेजी से फल–फूल रहा है। कोरोना के साथ निजी अस्पतालों के भारी भरकम बिल निम्न अौर मध्यम वर्गीय परिवारों की जान निकाल रही है। संकट की घड़ी में निजी अस्पताल सेवा की बजाय चांदी काटने में लगे हैं। तरह–तरह की जांच रिपोर्ट के नाम पर पीड़ितों के स्वजनों से हजारों रुपए वसूले जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अापदा की घड़ी में सभी मरीजों की छाती पर अारी चला रहे हैं। कुछ ईश्वर के दूत बनकर मरीजों व स्वजनों की पीड़ा को समझते हुए दिन–रात सेवा का जज्बा दिखा रहे हैं, लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है।
निचले अमला ही असली कोरोना योद्धा, सेवाअों को करें नमन
डाक्टर को लोग भगवान का दूसरा रूप मानते हैं, लेकिन अापदा के इस सबसे भयावह दौर में कई भगवान (डाक्टर) भी निष्ठुर बनकर सेवा से परहेज कर रहे हैं। ये स्थिति जहां मानवता को शर्मसार कर रही है, वहीं पीड़ितों की अकारण मौत का कारण बन रही है। इसके विपरीत सरकारी अौर निजी अस्पतालों में निचला अमला बिना भय के असली कोरोना योद्धा का फर्ज अदा कर रहे हैं। कोरोना पीड़ितों की हर छोटी–बड़ी जरूरत का ध्यान रखने में निचला स्वास्थ्य अमला कोई कसर बाकी नहीं रख रहा है। ऐसे कोरोना योद्धा ही असली सम्मान के हकदार है। कई डाक्टर तो संक्रमितों को हाथ लगाना तो दूर निकट जाने में भी परहेज कर रहे हैं।