श्री त्रिवेदी मेवाड़ा ब्राह्मण समाज के दो नक्षत्र हुए असमय अस्त : एक का था समाज उत्थान से तो दूसरे का स्वस्थ समाज से सरोकार
हरमुद्दा
मंगलवार, 4 मई। रविवार और सोमवार के दो दिन श्री त्रिवेदी मेवाडा ब्राह्मण समाज के लिए काफी वेदना पूर्ण रहे। श्री त्रिवेदी मेवाड़ा ब्राह्मण समाज मध्य प्रदेश और राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष अनिल जोशी रविवार को अनन्त यात्रा पर चले गए, वहीं सोमवार को चिकित्सक डॉ. जगदीशचंद्र जोशी को भी नियति के क्रूर हाथों ने छीन लिया। दोनों नक्षत्रों के असमय अस्त होने से श्री त्रिवेदी ब्राह्मण समाज स्तब्ध है। श्री जोशी का उद्देश्य समाज उत्थान रहा तो डॉ. जोशी का लक्ष्य स्वस्थ समाज की बुनियाद को मजबूत करना था। उल्लेखनीय है कि डॉक्टर जोशी की माता जी का निधन 10 दिन पूर्व ही हुआ।
श्री त्रिवेदी मेवाड़ा ब्राह्मण समाज मध्य प्रदेश और राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष श्री अनिल जोशी की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर जिले के छोटे से गांव हातोद में हुई। उच्च शिक्षा इंदौर में प्राप्त करते हुए सिविल इंजीनियर बने। बेहतरीन कॉलोनी में रहने की तमन्ना रखने वाले लोगों के सपनों को साकार करते थे। इंदौर में प्रसिद्ध कॉलोनाइजर में इनका नाम शुमार था।
सामाजिक समरसता का किया सूत्रपात
ऊर्जावान समाजसेवी और धर्मनिष्ठ श्री जोशी ने श्री त्रिवेदी मेवाडा ब्राह्मण समाज के प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभालते ही सामाजिक समरसता का सूत्रपात किया। समाज को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। समाज का दशकों का सपना साकारकर भूत भावन श्री महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में श्री त्रिवेदी मेवाड़ा ब्राह्मण समाज का भव्य भवन अतिथिगृह ने समाजजनों के सहयोग व अथक प्रयास से मूर्त रूप दिया। समाजजनों के सुख-दुख में तत्काल पहुंचने वाले श्री जोशी के अंतिम समय में समाज जन शामिल नहीं हो सके। इसका समाजजनों को काफी मलाल है। समाज के लिए जिन्होंने इतना सब कुछ किया, उन्होंने समाजजनों को अंतिम दर्शन करने तक का मौका नहीं दिया कोरोना काल में।
शत्रु को मित्र बनाने की कला थी उनमें
उल्लेखनीय है कि रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य, वैदिक, पौराणिक, याग्निक स्वर्गीय बसंतीलाल भट्ट के सबसे छोटे भांजे थे और श्री गजानन-कृष्णा जोशी के सबसे छोटे सुपुत्र थे। श्री जोशी राजनीति में दखल रखने वाले मिलनसार, मृदुभाषी, आत्मीय व्यवहार करने वाले शत्रु को भी अपना बनाने की कला में पारंगत, अच्छे वक्ता और तर्क कुशल व्यक्तित्व के धनी थे। श्री त्रिवेदी मेवाड़ा ब्राह्मण समाज ने एक प्रमुख आधार स्तंभ खो दिया।
मरीज को देखने के लिए आधी रात को भी चले जाते थे उनके घर
मिलनसार और सेवाभावी प्रवृत्ति के डॉक्टर जगदीश चंद्र जोशी रतलाम जिले के पिपलौदा तहसील के छोटे से गांव रियावन में जन्मे। पिता श्री दामोदर जोशी एवं माता सरस्वती देवी ने वहीं पर प्रारंभिक शिक्षा दी। क्षेत्र में डॉक्टर जोशी काफी प्रसिद्ध रहे हैं। इनका मुख्य उद्देश्य मरीजों को ठीक करना था ना कि रुपया कमाना। आधी रात को भी जब कोई परिजन आता तो उसके साथ मरीज को देखने चले जाते। आत्मीयता से भरे डॉ. जोशी मिलनसार और मृदुभाषी थे।
रतलाम के ज्योतिषाचार्य स्वर्गीय द्वारकाप्रसाद त्रिवेदी के छोटे जमाई थे। समाज में काफी मान प्रतिष्ठा थी।
सेवा का संस्कार नानी जी और माता जी से मिला
आमजन की सेवा का जोश, जुनून और उत्साह उनके मन में था। कई बार तो मरीज के पास दवाई लेने के पैसे भी नहीं होते थे तो वह अपनी जेब से दवाई के रूप में भी दे देते थे। लोगों की सेवा का संस्कार उन्हें अपनी नानी जी व माताश्री से मिला। उनकी नानी नर्स थी और वह भी ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों की सेवा में तल्लीन और तत्पर रहती थी। कुछ महीने पूर्व ही नानी जी का निधन 102 वर्ष की उम्र में हुआ।
11 दिन के अंतराल में मां बेटे का हुआ निधन
उल्लेखनीय है कि डॉक्टर जोशी की माता श्रीमती सरस्वती देवी स्वास्थ्य विभाग में नर्स थी और रतलाम, जावरा, पिपलौदा क्षेत्र क्षेत्र में 23 वर्ष की शासकीय सेवा के दौरान आम जनों का काफी सहयोग किया। इनका भी नाम क्षेत्र में काफी था। इनके घर के दरवाजे हर एक परेशान मरीज के लिए 24 घंटे खुले रहते थे।और 22 अप्रैल को ही इन्होंने भी अंतिम सांस ली। 11 दिन के अंतराल में मां और बेटे दोनों चले गए। घर खाली खाली सा हो गया।